कहते हैं ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने सभी के जीवन में मां को बनाया, जो बच्चों को अपनी ममता की छांव में पाल-पोष कर बड़ा करती है, उसे काबिल बनाती है ताकि समाज में उसे इज्जत और पहचान मिल सके। एक मां अपनी सारी उम्र बच्चों को दे देती है लेकिन जब उसी मां को अपने बच्चों की जरूरत पड़ती है तो वहीं बच्चे उन्हें भूख और गरीबी का सामना करने के लिए अकेले छोड़ देते हैं और उनकी तरफ देखते तक नहीं हैं।
पूर्णिमा देवी, बिहार
कुछ ऐसी ही भावुक कर देनेवाली कहानी है पूर्णिमा देवी (Purnima Devi) की, जो बिहार (Bihar) के पटना (Patna) में अपना जीवन गुजार रही हैं। वह “मानो तो मैं गंगा माँ हूं न मानों तो बहता पानी” गाने से काफी लोकप्रिय हुईं थीं। बहुत अच्छी गायिका होने के बावजूद भी उन्हें उस स्तर पर पहचान नहीं मिली जिसकी वह हकदार थीं। आज 90-95 साल की उम्र में उनका जीवन इस कदर कष्टदायी है कि जिसे देखकर पत्थर दिल भी पिघल जाएगा लेकिन उनके अपनों को उस बूढ़ी मां की कोई चिन्ता नहीं है।
बेहद कष्टमय जीवन गुजारने को मजबूर हैं पूर्णिमा देवी: वीडियो देखें
पूर्णिमा देवी (Purnima Devi) के पति एक डॉक्टर थे जो इस दुनिया को बहुत पहले अलविदा कह गए। उनके दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी, जिसमें से बेटा मानसिक रुप से विकलांग और बेटी उनके साथ नहीं है। एक ऐसी उम्र जब लोग ईश्वर का भजन-कीर्तन गाने और आराम करने में व्यतीत करते हैं उस उम्र में पूर्णिमा देवी दो वक्त की रोटी के लिए दरभंगा हाऊस के काली मंदिर के गेट पर बैठकर गाना गाती थीं और अपना तथा अपने बेटे का पेट भरती थी।
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लेकिन उम्र के इस पड़ाव में अब उनकी शारीरिक स्थिति बहुत ही अधिक खराब हो गई है। उनसे खाना नहीं खाया जा रहा, पैर से चलने में असमर्थ हैं, आंखों दे दिखाई भी कम देती है। इतना ही नहीं वह कष्ट और गरीबी की ऐसी मार झेल रही हैं जहां उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं। वह अभी पटना के खाजांची रोड स्थित अनुग्रह सेवा सदन में रहने को मजबूर हैं जहां आसपास कचरे का ढेर लगा हुआ है और बदबू से सांस लेना भी दूभर है। इतनी गंदगी और बदबूदार जगह पर रहने के लिए भी उन्हें हर महीने 1500 रुपये किराया देना पड़ता है।
वास्तव में दादी (Purnima Devi) की जिंदगी बेहद कष्टपुर्ण हैं और उन्हें लोगों से मदद की उम्मीद है। यदि आप उनकी मदद करना चाहते हैं तो जैसे भी सम्भव हो जरुर करें क्योंकि उन्हें दवा, खाना हर चीज की बहुत जरुरत है।