गुड़हल के फूलों (Hibiscus flowers) तथा पौधों के बारे में तो आपलोग बखुबी जानते हीं होंगे। धार्मिक पूजा-पाठ में इसका एक अलग हीं स्थान है। मान्यता के मुताबिक बीना गुड़हल के फुलों के बिना दुर्गा माता का पूजा सफल नहीं होता है। इस फूल का अनेंको फायदे है, तो आइए जानते हैं गुड़हल से जुड़ी सभी जानकारियां :-
क्या है गुड़हल का फूल?
गुड़हल के फूल का हिंदी नाम जवाकुसुम है, कुछ लोग इसे गुड़हल के नाम से जानते है और कुछ लोग इसके जवाकुसुम के नाम से जानते है। इसका वानस्पतिक नाम “हीबीस्कूस् रोज़ा साइनेन्सिस” है।
जया भारद्वाज (Jaya Bhardwaj) जो कि हरियाणा के नारनौल की रहनेवाली हैं और वे पेशे से एक बॉटनी की प्रोफेसर है और साथ हीं बागवानी करने की भी शौक़ीन हैं।
जया भारद्वाज के अनुसार, “गुड़हल के फूल को अच्छी सूरज की रौशनी और पानी की सही मात्रा का ध्यान रखकर आसानी से लगाया जा सकता है और आयरन और मैग्नीशियम की खाद इन पौधों के विकास के लिए जरूरी होती है।”
आइए जानते हैं, इसे अपने गार्डेन में कैसे उगाए
• जया बताती हैं कि, प्रूनिंग कटर की मदद से 45 डिग्री एंगल से गुड़हल की 10 इंच की एक डाली की कटिंग करें। डाली को काटते समय इस बात का ध्यान रखें कि, डाली वैसी होनी चाहिए जिसमे से फूल निकलते हो।
• फिर कटी हुई डाली से पत्ते निकल लें और
आप चाहे तो इसे सीधा ही गमले में लगाएं। लेकिन यदि आप पानी में इसे प्रॉपगेट कर रहे हैं तो किसी ग्लास में पानी भरकर इसे तेज धुप से बचाकर खिड़की के पास रखें।
• 15 दिन में आप देखेंगे कि इसमें जड़ निकल जाएगी। हर दिन आप इसका पानी बदलते रहें ताकि डाली को सही ऑक्सीजन मिलती रहे।
• डाली को आप 15 से 20 इंच के गमले या ग्रो बेग में बीचों-बीच लगाएं और एक गमले में एक ही पौधा लगाएं।
• गमले में सीधा लगाने पर भी डाली से जड़ निकलने में तकरीबन 20 दिन लग जाते हैं। तब तक इसे तेज धुप से बचाकर रखें। और हर दिन थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहें।
16 से 32 डिग्री का तापमान इसके लिए सबसे अच्छा होता है।
• दो महीने के अंदर आप देखेंगे कि इसमें कई पत्तियां निकल जाएंगी।
• आप फरवरी या मार्च में इसे लगाते हैं तो जुलाई-अगस्त में इसमें अच्छे फूल खिलने लगेंगे।
• जब इन पौधों से फूल निकलने लगे तो इसमें केले के छिलकों से बनी खाद दे सकते हैं और साथ हीं इस बात का ध्यान रखे कि पौधे में खाद डालते समय इसे अच्छी सूरज की रौशनी भी मिले तथा बारिश के समय आप केले के छिलकों की खाद न डालें।
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कई रंगों के होते हैं, गुड़हल के फूल
गुड़हल के फूल कई रंग के होते है, यह लाल, पीला, और सफ़ेद रंगो में होता है। गुड़हल के पौधे के आकर लगभग 10-15 फिट तक हो जाता है। इसके पत्तो का रंग गहरा हरा होता है, जिनका आकर सामान्य, भालाकार, और अंडाकार होता है। इसके पत्तियों के किनारो पर दांते होते है। गुड़हल के फूल के आकार की बात करें, तो इनका सामान्य आकर तुरही की तरह होता है, जिनका व्यास लगभग पांच से सात इंच का होता है, यह ऊपर से बड़े होते है।
शास्त्रों के अनुसार मान्यताएं
औषधीय गुणों से भरपूर गुड़हल का फूल बहुत ही ऊर्जावान माना जाता है। देवी और सूर्यदेव की उपासना में इसका विशेष रूप से प्रयोग होता है। मान्यता है कि नियमित रूप से देवी मां को गुड़हल का पुष्प अर्पित करने से शत्रु और विरोधियों से राहत मिलती है। गुड़हल का फूल डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करने से आपको दीघार्यु और आरोग्य की प्राप्ति होती हे।
वास्तु दृष्टि से भी सही
वास्तु की दृष्टि से भी गुड़हल का फूल बहुत ही शुभ माना जाता है। घर में गुलदस्ते में लगा गुड़हल का फूल परिवार के सदस्यों के बीच प्यार, अपनेपन और बॉन्डिंग को दर्शाता है। दांपत्य जीवन में जोश को बनाए रखने के लिए भी गुड़हल का फूल बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
धार्मिक उपयोग
गुड़हल के फूल को देवी और गणेश जी की पूजा में अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह माता रानी को अतिप्रिय है। ऐसी परम्परा है कि बिना गुड़हल के फूल का माता रानी का कोई भी पूजा सफल नहीं हो सकता है। फूलों के बीच धार्मिक दृष्टिकोण से इसका एक अपना अलग ही महत्व है।
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व्यवसायिक उपयोग
गुड़हल के फूल को प्राचीन कल से ही भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किया गया है। यह कई प्रजातियों में अलग-अलग रंग का होता है, सफ़ेद रंग के गुड़हल को पीसकर इसका पाउडर बनाकर इसको दवाइयों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गुड़हल की चाय भी सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। गुड़हल की एक प्रजाति ‘कनाफ’ का प्रयोग कागज बनाने में किया जाता है। एक अन्य प्रजाति ‘रोज़ैल’ का प्रयोग प्रमुख रूप से कैरिबियाई देशों में सब्जी, चाय और जैम बनाने में किया जाता है।
लगाने चाहिए गुड़हल के पौधे
तमाम अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला की गुड़हल के पौधे तथा फूल हमें अनेकों तरह से फायदे पहुंचा सकते हैं। धार्मिक दृष्टि से लेकर स्वास्थ तथा अन्य मामलों मे भी यह कारगर साबित हुआ है। इसलिए यह हर तरह से प्रकृति के द्वारा दिया गया एक धरोहर का रुप है और इसे स्वीकार करते हुए हमे इसकी देख-रेख करनी चाहिए।
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