असफल होने पर लोग अपनी किस्मत को दोष देते हैं। उनका कहना होता है कि यह हमारी किस्मत में ही नहीं था, परंतु कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो अपनी मेहनत से अपनी किस्मत को बदलकर सफलता प्राप्त कर लेते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है दिहाड़ी के 15 रुपये कमाने वाले एक मजदूर की। 15 रूपए से अपनी कराई की शुरूआत कर यह मजदूर आज 1600 करोड़ का मालिक बन चुका है। आज हम बात कर रहें हैं प्रसिद्ध कंपनी Ess Dee Aluminium Pvt. Ltd के संस्थापक सुदीप दत्ता (Sudip Dutta) की। यह जानकर हैरानी होगी कि मजदूरी से शुरूआत कर अब सुदीप एक बड़ी कंपनी के मालिक बन चुके हैं। – Struggle life of Sudip Dutta from West Bengal.
सुदीप दत्ता का जन्म पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर में एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके पिता भारतीय सैनिक थे और साल 1971 में भारत-पाक जंग में गोली लगने की वजह से वह हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो गए। ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई के ऊपर आ गई। बङे मुश्किल से बड़े भाई ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली। वह घर चलाने के साथ ही सुदीप को भी पढ़ाते थे। कुछ समय के लिए सब कुछ ठीक होता नजर आने लगा, लेकिन अचानक उनकी तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई ऐसे में उनके इलाज तक के लिए घर में पैसे नहीं थे। सही इलाज ना मिल पाने की वजह से उनके भाई की मौत हो गई। सुदीप के परिवार के लिए यह बहुत बड़ा झटका था, जो उनके पिता बर्दाश्त ना कर सके और वह भी चल बसे। उनके परिवार के लिए एक के बाद एक यह दूसरा झटका था।
दोस्तों ने मुंबई जाने हेतु दी हिम्मत
बड़े भाई और पिता के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी सुदीप के ऊपर आ गई। उस समय उनकी उम्र केवल 16 से 17 साल थी और वह बारहवीं पास कर चुके थे। इतनी कम उम्र में सुदीप के ऊपर 5 भाई-बहन और उनकी मां की जिम्मेदारी आ चुकी थी। छोटी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता। ऐसे में परेशान सुदीप वेटर का काम तथा रिक्शा चलाने जैसे कामों के बारे में सोचने लगे थे, लेकिन उनके दोस्तों ने उन्हें मोटिवेट करने के लिए अमिताभ बच्चन का उदाहरण देकर मुंबई जाने के लिए कहा। दोस्त के हिम्मत देने से सुदीप अपनी किस्मत आजमाने मुंबई चले गए। बहुत उम्मीद लेकर मुंबई पहुंचे सुदीप वहां जाकर मजदूर बन गए। आमतौर पर मुंबई को मायानगरी कहा जाता है, जो हर किसी का पहले परीक्षा लेता है।
40 किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे काम करने
साल 1988 में सुदीप ने अपने कमाने की शुरुआत एक कारखाने में काम करके किया, जिसमें उन्हें रोज के 15 रूपए मिलते थे। उस समय वह 12 लोगों की एक टीम के साथ कारखाने में पैकिंग, लोडिंग और डिलीवरी का काम करते थे। इस दौरान वह एक छोटे से कमरे में 20 लोगों के साथ रहते थे। इससे बड़ी दिक्कत सुदीप के लिए मीरा रोड पर रह कर जोगेश्वरी काम करने जाना था, जिसकी दूरी 20 किमी थी। पैसा बचाने के लिए सुदीप 40 किलोमीटर की दूरी तय कर काम पर पैदल जाया करते थे। दो-तीन साल तक लगातार ऐसे काम करने के बाद किस्मत उनपर मेहरबान हुई और उन्हें अपने सपने पूरा करने का मौका मिला।
दोस्तों से उधार लेकर खरीदा कारखाना
साल 1991 में सुदीप जिस कारखाने में काम करते थे उसके मालिक को काफी नुकसान हुआ इतना कि कारखाना बंद करने की नौबत आ गई। 3 साल काम करने के दौरान सुदीप इस काम को इतने अच्छे से जान चुके थे कि इस बिजनेस को आगे चला सकते थे। जब करखाने के मलिक ने कारखाना बेचने का फैसला किया तो सुदीप को आगे बढ़ने का मौका मिल गया और उन्होंने इस डूबती हुई कंपनी में अपना फायदा खोज लिया। सुदीप के पास इतना पैसा नहीं था कि वह इस कंपनी को खरीद सकते, ऐसे में वह अब तक की अपनी सारी बचत और अपने दोस्तों से कुछ उधार लेकर 16000 रुपये में इस किसी कंपनी को खरीद लिया। सुदीप का यह फैसला अजीब तो था कि कारखाने में काम करने वाला एक मजदूर कारखाना ही खरीद ले, लेकिन उनके अंदर कुछ बनने का ऐसा जुनून था जो उनसे कुछ भी करा सकता था।
जिस कंपनी में करते थे काम उसी को खरीद लिया
कंपनी बेचने के बदले मालिक ने सुदीप के आगे यह शर्त रखी कि अगले दो साल तक उस फैक्ट्री से जितना भी मुनाफा होगा वह सब मालिक को दे देंगे। सुदीप को अपने उपर पूरा यकीन था कि वह इस कंपनी से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। सुदीप मालिक के सभी शर्त मान कर उस कंपनी के मालिक बन गए, जिसमें वह कभी मजदूरी किया करते थे। वह कंपनी के मालिक तो बन गए, लेकिन उनके ऊपर इतना खर्ज और पारिवारिक जिम्मेदारी थी कि वह इससे बाहर नहीं निकल पा रहे थे। जानकार बताते हैं कि उस समय एल्यूमीनियम पैकेजिंग व्यापार का बहुत बुरा समय चल रहा था। उस दौरान मार्केट में केवल दो ही कंपनियां थी जिंदल लिमिटेड और इंडिया फोइल। ऐसे में किसी छोटी कंपनी का चलना और सफल होना बहुत बड़ी बात थी। यह सब जानने के बावजूद भी सुदीप हार मानने वालों में से नहीं थे।
सुदीप को काफी मेहनत के बाद मिली सफलता
सुदीप मार्केट में बढ़ती लचीली पैकेजिंग की मांग को ही अपने कामयाबी का जरिया बना लिया। उस समय वह सबसे अच्छी पैकेजिंग देते हुए मार्केट में अपनी पहचान बना लिए। इस दौरान सुदीप खूब मेहनत किए अलग-अलग कंपनियों के प्रोडक्ट को अपने प्रोडक्ट के साथ तुलना किए तथा उस पर काफी रिसर्च किए, जिसके बाद उनकी कंपनी को सन फार्मा, सिपला, और नेस्ले जैसी बड़ी कंपनियों से ऑर्डर मिलने लगा। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन सुदीप के लिए मुश्किलें तब बढ़ी जब अनिल अग्रवाल अपनी कंपनी वेदांता के साथ पैकेजिंग के व्यापार में आ गए। उस समय मार्केट में वेदांता बेहद प्रसिद्ध थे फिर भी सुदीप धैर्य से काम लिए और काम में जुटे रहे। उनकी मेहनत से प्रोडक्ट की गुणवत्ता कई गुना बढ़ गई।
केवल 2 साल में देश भर में खोले 12 यूनिट
सुदीप के हौसले के आगे वेदांता को हार माननी पड़ी और 2008 में सुदीप ने वेदांता को 130 करोड़ रुपये में खरीद लिया और वेदांता का नाम मार्केट से पूरी तरह खत्म हो गया। बहुत ही जल्द सुदीप ने अपनी कंपनी Ess Dee Aluminium का विस्तार कर इसे Ess Dee Aluminum Company Expands Rapidly बना दिया। साल 1998 से 2000 के बीच केवल दो साल में वह पूरे देश में अपने 12 यूनिट खोल चुके थे। अब वह दौर आया था जब सुदीप की कंपनी भारत की नंबर 1 पैकेजिंग कंपनी बन चुकी थी। इस दौरान इनकी Ess Dee Aluminium कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के लिस्ट में भी शामिल हो चुका था। बता दें कि उस समय Ess Dee Aluminium कंपनी की मार्केट वैल्यू 1600 करोड़ से भी ऊपर जा चुकी थी। अपने पिछले दिनों को याद करते हुए सुदीप दत्ता ने गरीब लोगों की मदद के लिए सुदीप दत्ता फाउंडेशन की स्थापना की। साथ ही युवाओं की मदद के लिए प्रोजेक्ट हैलपिंग हैंड की शुरुआत किए।
दो बार हुए गिरफ्तार
सुदीप के जीवन में हर मोड़ पर उतार-चढ़ाव आता रहा। सब कुछ ठीक चल रहा था। सुदीप अब उस बुलंदी पर पहुंच चुके थे, जो कभी उन्होंने अपने सपने में भी नहीं सोचा था लेकिन समस्याएं अभी भी पीछा कहां छोड़ने वाली थी। उनके कंपनी में काम करने वाले मजदूर जो कभी उन्हें इज्जत से दादा कहकर बुलाते थे उन मजदूरों की तनख्वाह ना देने और पीएफ का पैसा हड़प जाने के जुर्म में सुदीप को गिरफ्तार किया गया और यह एक समय था जब सुदीप दत्ता की कंपनी Ess Dee Aluminium को दिवालिया घोषित कर दिया गया। साल 2017 में सुदीप पर 42 लाख रुपये प्रोविडेंट फंड बकाये का आरोप लगा और उन्हें प्रोविडेंट फंड डिफॉल्ट मामले में दुबारा गिरफ्तार किया गया। इस दौरान कंपनी का दावा था कि वह कामरहाटी यूनिट के कर्मचारियों को इसका भुगतान कर चुकी है।
कर्ज में डूबी की पूरी कंपनी ही बंद हो गई
एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार सुदीप ने वित्त मंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी संस्था के कर्मचारियों को तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक द्वारा गुमराह किया जा रहा था इसलिए उनके कर्मचारियों ने ऐसा किया। कुछ बड़ा करने की चाह में साल 2014 में जर्मनी सरकार के साथ सुदीप 450 करोड़ रुपये का लोन लेकर निवेश करने का फैसला किया लेकिन समय रहते लोन चुका नहीं पाए जिससे उनकी कंपनी कर्ज में डूब गई। जल्द ही उनकी सभी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बंद हो गईं और उनकी कंपनी का नाम खत्म हो गया। बता दें कि सुदीप अब अपने परिवार के साथ सिंगापुर में रहते हैं। सुदीप दत्ता का पूरा जीवन ही एक संघर्ष हैं। उनके जीवन की सबसे खास बात यह रही कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो उन्होंने कभी हार नहीं माना और हमेशा खैरियत से काम लेते हुए आगे बढ़े उनकी पूरी जीवनी ही एक प्रेरणा हैं। – Struggle life of Sudip Dutta from West Bengal.