कोरोना संक्रमण से मृत व्यक्तियों के शव को लोग छूने से डर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं यह बीमारी उन्हें भी अपने चपेट में ना ले ले। बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं, जिनका कोई अपना नहीं है कि वह मृत शव को श्मशान ले जाकर उसका दाह संस्कार करे, या कब्रिस्तान ले जाकर उन्हें दफ़नाए।
ऐसे में हमारे देश के कुछ कोरोना वॉरियर्स लोगों की हर सम्भव मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। चाहे वह मदद लोगों को प्लाज्मा, ऑक्सीजन या भोजन पहुचाने की हो। इतना ही नहीं मरणोपरांत वे वॉरियर्स शव का अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं। इस कोरोना काल में लखनऊ (Lucknow) के युवाओं ने एक टीम का निर्माण किया है, जो शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। इस ग्रुप का नाम है, “कोविड-19 तदफिन”, जिसमें 15 युवाओं की टीम लोगों की मदद कर रही है।
किस तरह शुरू हुआ सफर?
इस टीम के ग्रुप लीडर इमदाद (Imadad) हैं, जो गोपालगंज (Gopalganaj) के निवासी हैं। उन्होंने ने यह जानकारी दिया कि 65 वर्षीय सुरेश छाबड़ा (Suresh Chhabda) खुर्देश बाग के निवासी थे। उनकी मृत्यु कोरोना के कारण हो गई थी, तब उनकी पत्नी और बच्ची अस्पताल में अपनों के इंतज़ार में बैठी रही, फिर भी कोई अंतिम संस्कार के लिए नहीं आया। इस बात की जानकारी जब इमदाद को मिली, तब वह उनका अंतिम संस्कार किए और तब से उन्होंने यह निश्चय किया कि वह लोगों की मदद करेंगे।
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दोस्तों के साथ मिलकर बनाई टीम
एक की मदद करने के उपरांत इमदाद रुके नहीं बल्कि वह आगे बढ़ने लगे। उन्होंने इस नेक कार्य की जब शुरुआत की, तब घर वालों के लोगों का विरोध सहना पड़ा। घरवालों ने कहा कि इस कोरोना महामारी से हर कोई डर रहा है। बहुत से लोग हैं, वो आगे क्यों नहीं आ रहे? तुम लोग ऐसा क्यों आ रहे हो? इतना सब सुनने के बावजूद भी ये रुके नहीं क्योंकि इन्हें लगा यह नेक कार्य है, जिससे लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी।
शहर में जितने भी कब्रिस्तान समुदाय के मेम्बर हैं, उन लोगों के पास इस ग्रुप का नंबर है और जरुरत अनुसार लोग उन्हें कांटेक्ट कर बुला सकते हैं।
लगभग 70 शव का कर चुके हैं अंतिम संस्कार
“कोविड-19 तदफिन”, टीम के मुख्य सदस्य काजिम रजा सआदतगंज से सम्बंध रखते हैं। वहीं अन्य सदस्य मेराज हुसैन लखनऊ से सम्बंध रखते हैं। आशिर आगा और मेहंदी रजा कश्मीरी मुहल्ला से सम्बंध रखते हैं। इमदाद ने यह जानकारी दिया कि अब तक उन्होंने लगभग 70 शवों का अंतिम संस्कार किया है, जिसमें बहुत से लावारिस लाशें हैं। इन शवों के धर्मों की पहचान उनके शव पर मिले प्रतीक से हुई है, और उसके अनुसार ही उन्हें अंतिम विदाई दी गई है।
रखते हैं खुद का भी ध्यान
आशिर ने यह जानकारी दिया कि जब हमें शव के विषय में जानकारी मिलती है, तो हम घर से निकलने के पहले पीपीई कीट के साथ वहां जाते हैं और अंतिम संस्कार करने के उपरांत खुद को पूरी तरह से सेनेटाइज कर, लगभग दो-तीन घंटे घर से बाहर रहते हैं फिर घर आते हैं। ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं, जो हमसे डर के कारण दूर रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो हमारा हौसला भी बढ़ाते हैं।
The Logically उनकी इस टीम की प्रसंशा करता है। इतने मुश्किल समय में इंसान ही इंसान के काम आते हैं, जिसे लोग सच करके दिखा रहे हैं।