कोरोना संक्रमित मरीजों को सांस लेने में हो रही दिक्कत और ऑक्सीजन सिलिंडर की किल्लत के मद्देनजर “प्रोनिंग” तकनीक काफी चर्चा में है। सोशल मीडिया समेत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने भी COVID मरीजों की सेल्फ केयर के तौर पर इसे लेकर एक विस्तृत गाइडलाइन जारी किया है।
एक्सरसाइज नहीं, पोजिशन मात्र है प्रोनिंग
बता दें कि प्रोनिंग (Proning) कोई एक्सरसाइज नहीं है, बल्कि एक ‘पोजिशन’ है जैसा कि नाम से पता चलता है। इसमें मरीज को अपनी छाती और पेट के बल लेटना होता है और गहरी सांस लेनी होती है। ये पोजिशन खासतौर पर उन मरीजों में ऑक्सीजन लेवल को बेहतर बनाने में मदद करता है जो गंभीर हैं, ताकि वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत कम हो।
क्या कहती है स्टडी?
स्टडी अनुसार मॉडरेट से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) वाले मरीज जो वेंटिलेटर पर थे, उनकी मृत्यु दर में 16 घंटे की प्रोनिंग से काफी कमी आई, खासकर अन्य मामलों की तुलना में जिसमें प्रोनिंग को छोड़कर बाकी सब कुछ किया गया था।
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जानिए पूरा लॉजिक और सपाइन पोजिशन
इसके अलावा, “जब कोई व्यक्ति सपाइन पोजिशन(Supine Position) पीठ के बल पर लेटा होता है, तो दिल फेफड़ों पर दबाव डाल रहा होता है। इस वजह से फेफड़ों के कुछ हिस्से पूरी तरह से फूल नहीं पाते हैं। लेकिन जब वेंटिलेटेड मरीज को प्रोन पोजिशन में रखते हैं तो दिल का वजन छाती की हड्डियों और छाती की दीवारों पर पड़ता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह से फूल जाते हैं, जिससे हवा की बेहतर आवाजाही होती है।
प्रोनिंग को मिला पॉजिटिव रिस्पांस
वेंटिलेशन का समान वितरण और पूरे ऑक्सीजेनेशन में सुधार। वेंटिलेशन(लंग का फूलना) के साथ परफ्यूजन(ब्लड सप्लाई) में मदद। गुरुत्वाकर्षण के कारण, फेफड़ों से स्राव भी वेंटिलेटर से जुड़े निमोनिया के जोखिम को कम करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स का अनुसार जो लोग रात को प्रोन पोजिशन लेते हैं तो वे बेहतर महसूस करते हैं। आप ऑक्सीजन मास्क के साथ भी प्रोन पोजिशन में सो सकते हैं।