क्या आपने कभी सुना है किसी ऐसे 22 वर्षीय युवा के बारे में जो समाज में शिक्षा व ज्ञान का प्रसार करने की इच्छा रखता हो लेकिन उसे समाज द्वारा ही उत्पन्न अनेक अवरोधों का सामना करना पड़े। इतना ही नही, व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते उसे अधिक से अधिक अत्यंत गरीब व पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने की पहल से रोका जाये।
वर्तमान में 1 हज़ार से भी ज़्यादा बच्चों को जवाहर नवोदय विधालय और सैनिक स्कूलों की प्रवेश परिक्षाओं (Entrance Exams for Jawahar Navodaya and Army Schools) की तैयारी कराने के लिए शुरु किये गये अभियान एम-2 प्रयास निःशुल्क शिक्षण अभियान(M-2 Prayas Nishulk Shikshan Abhiyaan) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जिसको एक लंबे समय तक शिक्षा को कमाई का ज़रिया समझने वाले निजी स्कूलों व कोचिंग इंस्टीट्यूटस द्वारा अपनी आय बंद होने के डर के चलते कई बार न केवल रोकने बल्कि बंद करवाने के प्रयास भी किये गये। 2013 से लेकर अब तक अनेकानेक बच्चों को शिक्षित करते व सभी अवरोधों को पार करते हुए M-2 अभियान न केवल आज तक अस्तित्व में बना हुआ है बल्कि शिक्षा का दायरा बढ़ाने में दिन-ब-दिन सफलता प्राप्त कर रहा है।
हाल ही में M-2 प्रयास निःशुल्क शिक्षण अभियान जिसे M-2 Classes कहकर भी संबोधित किया जाता है को शुरु करने वाले 29 वर्षीय मनोज मीणा (Manoj Meena) जी से The Logically की बात हुई जिसमें उन्होनें इस अभियान के मुख्य उद्देश्य से लेकर उसे स्थायित्व देने में आई बाधाओं के बारे में भी बताया। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि M-2 Classes के पीछे की कहानी क्या है ?
2013 में मनोज द्वारा उठाया गया कदम
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के गंगरार ब्लॉक(Gangrar Block in Chhitorgarh District, Rajasthan ) में 2013 में बी.टेक थर्ड ईयर (3rd year, B.Tech) के छात्र मनोज मीणा(Manoj Meena) ने शाम को खाली समय में पांचवी कक्षा के तीन बच्चों को मुफ्त में जवाहर नवोदय विधालय की प्रवेश परीक्षा हेतु पढ़ाना शुरु किया जिनमें से एक बच्चे का सिलेक्शन नवोदय विधालय में हो भी गया। इस सफलता को देखकर कई पेरेंट्स ने अपने बच्चों को पढ़ाने का उनसे निवेदन किया। लेकिन दुर्भाग्यवश 3rd year B-Tech में होने वाले प्रैक्टिकल्स और ट्रेनिंग के चलते मनोज उन्हे समय नही दे पाये।
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एक छोटी बच्ची से किये वादे ने इसी दिशा में आगे काम करने के लिए किया प्रेरित
इस दिशा में काम करने के लिए मनोज को प्रोत्साहित करने की कहानी भी काफी रोचक है। जिसमें 2013 में एक चौथी कक्षा की छात्रा से अगली कक्षा में पढ़ाने के वादे ने उन्हे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। दरअसल, अगले साल इस छोटी सी छात्रा ने एक अत्यंत मर्मस्पर्शी पत्र लिखा जिसमे उसने कहा कि – “भैया मैंने सुना था कि आप बच्चों को पढाने का अपना वादा कभी नही तोड़ते लेकिन आपने मेरे साथ किया वादा तोड़ा जो ठीक नही है” बच्ची की इन्ही बातों से प्रेरित हो उन्होनें वापस गंगरार आकर एक स्कूल और अभिभावकों से बात करते हुए तेरह बच्चों को लेकर नवोदय विधालय के एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी करवानी शुरु कर दी।
क्या है जवाहर नवोदय विधालय स्कूल प्रवेश परीक्षा
जवाहर नवोदय विधालय जो कि आवासीय विधालय के नाम से भी जाने जाते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा में 75% ग्रामीण बच्चों को फ्री-एजुकेशन देने की व्यवस्था है। इसी के चलते गरीब व पिछड़े तबके के बच्चों को तैयारी कराने का काम M-2 Classes कर रहा है।
नवोदय प्रवेश परीक्षा हेतु इन कक्षाओं की सफलता ने कराया कई अवरोधों का सामना
उपरोक्त तमाम बातों के बाद साल 2013 में ही 13 बच्चों के साथ अगला बैच आरंभ हुआ जिसमें उन्हे शाम 5 से 7 बजे तक पढाया जाता था। परिणामस्वरुप उस बैच से भी 3 बच्चों का सिलेक्शन जवाहर नवोदय विधालय के लिए हो गया। सभी काम निशुल्क और स्वैच्छिक रुप से एकदम सामान्य व सरल भाव से हो रहे थे। लेकिन एक कहावत है न कि किसी अच्छे काम को करने में बाधाओं का मुंह भी देखना पड़ता है ठीक ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ। दुविधा देखें गंगरार जो एक छोटा सा कस्बा है और जिसकी कुल आबादी 8 से 10 हज़ार है उसमें 2014 आने तक इन कक्षाओं की प्रसिद्धि काफी बढ़ने लगती है। लेकिन, यह बात आर्थिक स्वार्थ के अंधे व कुबुद्धि के मारे निजी स्कूलों व संस्थानों को पंसद नही आती, शायद उन्हें अपनी आय का साधन बन चुकी कोचिंग क्लासेस का भविष्य अंधेरे में नज़र आने लगा था। इसलिए उन्होंने छोटे स्तर पर इन कक्षाओं के लिए रोड़े अटकाना शुरु कर दिया।
साल 2014 के अंत तक प्राइवेट स्कूलों द्वारा दबाव बनाना शुरु कर दिया गया
बता दें कि इस दौरान बिना किसी नाम या टाइटल के ही प्रवेश परीक्षा संबंधी ये कक्षाएं अपने उद्देश्य में दिन-प्रतिदिन सफलता हासिल कर रही थीं। 2014 का अंत आते-आते नवोदय विधालय प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए फ्री में दी जा रही इन कोचिंग को बंद करने के लिए निजी स्कूलों द्वारा थोड़ा-बहुत दबाव दिया जाता है जिसमे कहा जाता कि फ्री में पढ़ाना ठीक नही और इस तरह आप हमारे बच्चों को बहका रहे हैं।
अब दोस्तों व अभिभावकों का मिलने लगा था साथ
दिल्ली से इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज(Indian Engineering Services) की तैयारी के लिए दिल्ली ही शिफ्ट हो चुके मनोज हर दो महीनों के भीतर गंगरार आकर अपनी पढाई और कक्षाओं के बीच किसी तरह तालमेल बिठा रहे थे। इन सबके बीच एक सुखद बात यह रही कि अब तक उनके इस प्रयास में उनके कुछ दोस्त व बच्चों के माता-पिता भी शामिल हो चुके थे।
2015 में इस शिक्षा अभियान को M-2 Classes नाम दिया गया
लगातार प्राइवेट स्कूल द्रारा दी जाने वाली धमकियों और समाज में नैतिकता की कमी को देखते हुए 2015 में यह तय किया गया कि इस अभियान का नाम नैतिकता पर ही आधारित होना चाहिये और इसे नैतिक-बुद्धि यानी ‘Moral-Mind(M-2)प्रयास निःशुल्क शिक्षण अभियान’ नाम दिया गया और एक बार फिर से M-2 को और ज़्यादा आर्गनाइज़्ड तरीके से शुरु किया गया। इस बीच शिक्षा के महत्व को समझते हुए आस-पास के गांवों और पेरेंट्स का भी काफी सपोर्ट मिलना शुरु हो गया था।
साल 2015 लेकर आया मुश्किलों भरा दौर
मुफ्त व बेहतर शिक्षा, बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार और उनकी अच्छी देखभाल को लेकर ही M-2 Classes इतनी प्रसिद्धि पा चुकी थी कि 2015 तक कई प्राइवेट स्कूलों व कोचिंग इंटीट्यूटस में इस कदर डर समा गया कि उन्होनें 27 दिसंबर 2015 में इस प्रयास के खिलाफ पहली बार गंगरार थाने में एफआईआर(First Information Report- FIR) दर्ज करवा दी। उस एफआईआर में ये तक कहा गया कि – क्योंकि मनोज मीणा बैकवर्ड क्लास (Backward Classes) से संबंध रखते हैं इसलिए वे संबंधित नियम-कायदों का नाजायज़ फायदा उठा रहे हैं। कहना गलत न होगा कि इन संस्थाओं द्वारा कक्षाओं के खिलाफ गलत माहौल बनाकर समाज को भड़काने की पूरी कोशिश की जा रही थी। समय का चक्र देखें कि मुफ्त शिक्षा को बढ़ावा देने की बजाये खिलाफ चल रहे इन संस्थानों को कुछ क्षेत्रीय राजनैतिक दलों का साथ भी मिला। हालात इतने बद्दतर बना दिये गये कि न केवल टीम को मार-पीट भरी धमकियां मिलने लगी बल्कि पूर्व में जो विधालय इन कक्षाओं को चलाने के लिए जगह प्रोवाइड करवा रहा था उसने भी हाथ पीछे खींच लिया।
बाल- उत्पीड़न के आरोप तक लाये गए M-2 Classes पर
आप ये समझें कि निजी स्कूल व कोचिंग सेंटर्स व समाज का अमीर वर्ग सब मिलकर इस सीमा तक M-2 Classes के खिलाफ हो गये थे कि 2015 में ही एक बार फिर बाल-उत्पीड़न का झूठा केस बनाकर शिकायत दर्ज करवाई गई। ये तक न सोचा गया कि इससे बच्चों के भविष्य पर विपरित असर पड़ेगा। इस कदर अफवाहें फैलाई गई कि हफ्ते भऱ तक कक्षाओं को बंद रखने की नौबत आ गई। लेकिन इस बीच सकारात्मक पहलू यह रहा कि शिक्षा के महत्व को समझने वाले बहुत से लोगों ने M-2 Classes के प्रति इन दुःखद परिस्थितियों में भी हरदम शारीरिक व मानसिक रुप से साथ बनाये रखा जिससे सबकुछ सामान्य होने में काफी मदद मिली।
विषम परिस्थियों ने M-2 Classes के इरादों को और मज़बूती दी
अपने सद्कार्य के खिलाफ समाज को इस तरह उठ खड़ा देख भावुक हुए मनोज का साथ कई पेरेंट्स और दोस्तों ने कभी नही छोड़ने की ठान ली। इन तमाम बातों के चलते उन्होनें ये प्रण कर लिया कि भले ही उन्हें अपनी IES की तैयारी अधूरी क्यों न छोड़नी पड़े लेकिन ये सब ताकतें बच्चों को पढ़ाने के M-2 Classes के उद्देश्य को नही ड़िगा सकती और वे वापस जयपुर शिफ्ट हो गये। इन सब उठा-पटकों के बीच सबसे अच्छी बात यह रही कि आगामी वर्षों में M-2 Classes के अधिक से अधिक छात्र नवोदय प्रवेश परीक्षाओं में पास होते जा रहे थे जिससे पेरेंट्स में भी इन कक्षाओं के महत्व को लेकर और अधिक जागरुकता बढ़ने लगी थी।
2017 में सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षाएं भी पास करने लगे थे बच्चे
यूं तो M-2 Classes को आरंभ से ही बहुत सी विपरित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था। एक मोड़ ऐसा भी आया जब छात्रों की संख्या 50 से घटकर केवल 29 रह गई। लेकिन, इसी बीच एक सराहनीय मोड़ ये आया कि M-2 Classes में पढ़ रहे बच्चों का सिलेक्शन आर्मी स्कूल प्रवेश परीक्षाओं के लिए भी होने लगा था। इस बात ने सभी दुर्दम स्थितियों में बदलाव लाते हुए खिलाफ चल रहे लोगों को भी ये समझाना शुरु कर दिया था कि वाकई M-2 Classes की टीम सही और बेहतरीन काम कर रही है। लगभग 2019 तक कई बार केस रजिस्टर और पुलिस वेरेफिकेशंस हुए, गलत तरीकों से फेडिंग जैसे आरोप लगाकर लगातार दबाव भी बनाये जा रहे थे। लेकिन इन सब बातों को एक चैलंज के रुप में लेते हुए व सब लड़ाईयों को पार करते हुए 30 बच्चों का सिलेक्शन नवोदय व सैनिक स्कूल के लिए हो जाता है। जिससे अधिकांश लोगों का साथ व सहानुभूति M-2 Classes को मिलना शुरु हो जाती है। इस तरह पिछले 7 सालों में 105 बच्चों के सिलेक्शन के बाद ये अभियान पूरी तरह से लोगों को समर्थन लेने में कामयाब हो चुका है।
M-2 Classes के लिए कोरोना का समय एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ
2020 तक धीरे-धीर लोगों का विरोध भी शांत होने लगा था। इस बीच M-2 Classes सैन्य स्कूल प्रवेश परीक्षा की तैयारी और दसंवी कक्षा के छात्रों को शिक्षा देने पर भी विचार करने लगा था। लेकिन कोरोना महामारी के चलते उसका ये प्लान मानों फेल होने की कगार पर आ गया। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए अब तक ये तो तय हो चुका था स्कूलों के जल्द खुलने की अभी कोई उम्मीद नही। ऐसे में M-2 Classes 3 जून 2020 को वापस एक नये प्लान के साथ सामने आया। जिसमें यह निश्चित किया गया कि प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर हाल में सितंबर तक हमें अपना कोर्स पूरा करवाना है। जिसमें यह तय किया जाता है कि M-2 Classes के पुराने छात्र जो प्रवेश परीक्षाओं में सिलेक्ट हो चुके हैं और जो नही हो पाये उन सभी बच्चों की मदद से नये बच्चों को पढ़ाया जाएगा। इसी प्रकार कक्षा में पढकर गये सीनियर कक्षाओं के बच्चों का बैच अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर एक तय संख्या में अपने से जूनियर क्लास के बच्चों के बैच को पहले से निश्चित टाइम पीरियड तक पढ़ायेगा। इस बीच यदि किसी बच्चे को ज़रा भी हेल्थ इश्यूज़ आते हैं तो उसके विकल्प के रुप में अन्य बच्चे को नियुक्त करने का भी प्रावधान रखा गया था। पूरी तरह प्री-प्लान्ड व ऑटोमेटेड तरीके से चलते व कोरोना चालित सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अलग-अलग ही सही लेकिन कुल मिलाकर 100 कक्षाओं के ज़रिये बच्चों के एक बहुत बड़े समूह को पढ़ाने का प्रयास करते हुए सफलता हासिल की गई।
M-2 Classes फ्री एजुकेशन देते हुए छात्रों से लेती है एक वादा
M-2 Classes फ्री एजुकेशन देते हुए छात्रों से एकमात्र वादा ये लेती है कि प्रवेश परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लेने के बाद जब वे नवोदय या सैनिक स्कूल से बारहवीं करके बाहर आयें तो उन्हे वापस आकर M-2 Classes के नये बच्चों को शिक्षित करने में मदद करनी होगी। यही वादा कोरोना काल में भी आगामी बैच को पढ़ाने में काफी मददगार साबित हुआ।
6 महीने से एक साल के भीतर प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए तैयार कर रहा छात्रों को M-2 Classes
बता दें कि पूरी प्लानिंग के साथ अपने प्रयास को साकार रुप देती M-2 Classes केवल 6 महीने से एक साल के भीतर इस तरह बच्चों को सक्षम बना रही हैं कि अधिकांश बच्चे जवाहर नवोदय विधालय व सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा पास करने योग्य बन रहे हैं।
वर्तमान में M-2 Classes के साथ में एक बड़ा जनसमूह है
वर्तमान में समाज के प्रति दायित्व व खासतौर पर गरीब बच्चों की शिक्षा पर कोरोना का जो नकारात्मक असर हुआ उसको संज्ञान में लेते हुए गंगरार और आस-पास के गांवों के लोग व आर्थिक रुप से समर्थ अभिभावक सभी भेदभाव, जाति-वर्ग को भूलाते हुए ये समझ गये हैं कि एक संस्था जो इन विषम परिस्थितियों के चलते हुए भी बच्चों को शिक्षित करने की दिशा में समर्पित है हमें उसकी बाधा न बनकर हर तरह से सहायक बनना चाहिये । इन तमाम बातों को समझते हुए आज वे बच्चों को फल, किताबों से लेकर स्टेशनरी, पढ़ाने के लिए स्थान जैसे मैरिज गार्डन या कम्यूनिटी हॉल तक प्रोवाइड कराने लगे हैं। वर्तमान में M-2 Classes की मेहनत, लगन व उद्देश्य को देखते हुए मानों प्रशासन भी ये समझ चुका है कि इस अभियान के पीछे का मकसद बेशक ही बेहतरीन है।
सामूहिक प्रयास का परिचायक है M-2 Classes
इन 7 सालों में ये बात तो पूरी तरह से तय हो चुकी है कि भले ही इस अभियान की छोटी से शुरुआत किसी एक व्यक्ति द्वारा हुई हो लेकिन, M-2 Classes ने अपने शिक्षा अभियान में जो व्यापकता व सफलता हासिल की है वो सामूहिक प्रयास का परिचायक है। यहां तक कि स्वंय अभियान के आरंभ कर्त्ता इस बात का श्रेय खुद न लेते हुए इसे एक कलेक्टिव एफ्अर्ट का रिज़ल्ट बताते हैं (result of collective effort) वो ये तक नही चाहते कि कहीं भी उनका नाम व्यक्तिगत रुप से लिया जाये।
कभी सोशल मीडिया का रास्ता नही अपनाया M-2 Classes ने
अपने शुरुआती दौर से लेकर आज तक सफलता के नये आयाम हासिल करती M-2 Classes के बारे में बामुश्किल ही आपको सोशल मीडिया पर जानकारी उपलब्ध हो पाएगी। क्योंकि इन कक्षाओं का ये मानना रहा है कि कई बार सोशल मीडिया के ज़रिये न केवल कुछ लोग दुष्प्रचार करते हैं बल्कि बेहतर ये होगा है कि लोग व्यक्तिगत रुप से इन कक्षाओं की उपयोगिता को समझते हुए यहां अपने बच्चों को भेजने के लिए प्रेरित हों।
लड़कियों को शिक्षित करने की दिशा में भी काम कर रहा है M-2 Classes
पिछले साल 65 बच्चों को सैनिक स्कूल के लिए एग्ज़ाम दिला चुकी हैं M-2 Classes, जिनमें से 20 लडकियां हैं। क्योंकि गंगरार एक छोटा सा कस्बा है जहां आज भी लड़कियों की शिक्षा में बोझिलता तो क्या बाल-विवाह जैसी कुरीतियों का वास है। ऐसे में M-2 Classes ने लड़कियों को न केवल शिक्षित कर बल्कि उन्हे नवोदय विधालयों के लिए तैयार कर वाकई प्रशंसनीय काम किया है। बताते चलें कि शुरु से ही M-2 Classes में केवल सरकारी स्कूलों के बच्चों को ही प्राथमिकता दी जाती रही है। यदि कोई निजी स्कूल का बच्चा आता है तो उससे पहले सरकारी स्कूल में दाखिले की मांग की जाती है और यह उम्मीद की जाती है कि निजी स्कूल में पढ़ने की वजह से उनमें शिक्षा को लेकर जो अवेयरनेस है उसका प्रसार वो इन सरकारी स्कूल के बच्चों में भी करें। The Logically भी ‘M-2 प्रयास निःशुल्क शिक्षण अभियान’ के इतिहास से प्रेरित होते हुए भविष्य में उसकी सफलता की कामना करता है।