हर एक बच्चे की ख्वाहिश होती है कि उसका खुद का एक घर हो जिसमें वह अपनी माता-पिता के साथ रहे ।
हमारे द्वारा थोड़ा सा देखभाल और प्यार किसी की जिंदगी सँवार सकता है, इसका जीता जागता उदाहरण ‘इच्छा फाउंडेशन’ है। इस फाउंडेशन में विकलांग बच्चों को परिवार का प्यार और घर का साया मिलता है । विशाखापट्टनम निवासी मधु तुगनैत के द्वारा संचालित इस संस्थान में उन विकलांग बच्चों को मां की ममता और करुणा देने की कोशिश की जाती है ।
मधु तुग्नैत पेशे से एक फैशन डिज़ाइनर हैं जिन्होंने 2010 मे अनाथ विकलांग बच्चों के लिए “इच्छा फाउंडेशन” का निर्माण किया।
विशाखापटनम से लगभग 54km दूर कोंडकरला गाँव है जहाँ यह फाउंडेशन स्थित है । यह संस्थान गरीब , विकलांग और अनाथ बच्चों के लिए एक घर जैसा है । यहाँ काम करनेवाले सदस्य भी यहीं रहते हैं। संगठन कि शुरूआत 2 बच्चो से हुई और आज यहां लगभग 20 बच्चें हैं , यहां इन बच्चों को खाना -पीना पढ़ाई- लिखाई और मेडिकल फैसिलिटी भी मिलती है।
कुल 20 बच्चों में से 10 बच्चे सामान्य हैं , 3 बच्चे शारीरिक तौर से विकलांग हैं और 7 बच्चों की स्थिति शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से कष्टकारी है । इच्छा फाउंडेशन में इन सब का ख्याल रखा जा रहा है और उन्हें एक बेहतर कल के लिए तैयार किया जा रहा है।
मधु ने इस फाउंडेशन की शुरुआत कैसे की
विशाखापट्टनम में मधु का खुद का फैशन डिजाइनिंग का कारोबार था लेकिन मधु हमेशा लोगों की भलाई के लिए कुछ करना चाहती थी इसी क्रम में उनको एक संगठन से जुड़ने का मौका मिला और वह अपने बिजनेस की जिम्मेदारी अपने साथ काम करनेवालो के हिस्से में बांट कर खुद संगठन को समय देने लगीं । मधु जानती थी कि वह इन कामों के लिए नही बनी हैं क्योंकि वह बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहती थीं।
मधु जब 25 साल की थी तब से ही उन्होंने इस बारे में सोच लिया था की उन्हें समाजसेवा में अपनी ज़िंदगी गुज़ारनी है । कुछ दिनों बाद मधु की शादी हुई तो वह अपने पति के साथ मुंबई गई। वह जिस इलाके में रह रही थी, वहां नरगिस दत्त फाउंडेशन नाम की एक संस्था विकलांगो के लिए काम कर रही थी। मधु भी नरगिस के साथ काम करना चाहती थी तब वो नरगिस से मिलने गई। उस समय मधु मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के बारे में फिल्मों के जरिए जानती थी इसलिए उन्होंने खुद उस फाउंडेशन में जाकर उन सब का निरीक्षण किया।
जब वह फाउंडेशन गई और उन्होंने उन बच्चों की स्थिति को देखा तो वह घड़बड़ा गई ,उन बच्चों के शरीर से गंदी बदबू आ रही थी यूरिन और उल्टी की बदबू के कारण उनका वहां रुकना मुश्किल हो रहा था। थोड़े समय बाद उन्होंने इन बच्चों के लिए कुछ करने का मन बना लिया। उसके बाद वह अपने घर आई और अपने बिजनेस को संभाला इसके साथ ही वह अलग-अलग जगहों पर रही लेकिन विकलांग बच्चों की सहायता की बारे में सोचती रही और नरगिस दत्त से भी जुड़ी रहीं। उन्होंने अपना राह चुन लिया और अपने सपनों को भी पूरा किया।
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साल 2010 में उन्होंने ‘इच्छा फाउंडेशन’ की रजिस्ट्रेशन कराई ।
हालांकि यह सब काम उनके परिवार के सदस्यों को पसंद नहीं था लेकिन उनके पति ने इस फैसले में मधु को सपोर्ट को सपोर्ट किया । हर किसी की इच्छा होती है कि अपने परिवार के सदस्यों के साथ रहे इसलिए उन्होंने इस फाउंडेशन का नाम “इच्छा फाउंडेशन” रखा।
मधु के पास उस समय भिक्षाव्रीति में लिप्त बच्चों को अडॉप्ट करने का लाइसेंस नहीं था। इसलिए वह चाइल्ड वेलफेयर एंड विमेन सेंटर गई, उस समय सेंटर पर सिर्फ 2 ही दिव्यांग बच्चे थे। उस समय उन्हें नरगिस की याद आई उन्हें थोड़ी सी घबराहट हुई फिर उन्होंने सोचा कि मैं अब 25 साल की नहीं हूं अब हर जिम्मेदारी संभाल सकती हूं।
शुरुआती दौर में में उन्होंने बच्चों को अपने घर पर ही रखा,जब तक फाउंडेशन की तैयारी नही हुई वो खुद उन बच्चों का ध्यान रखने लगी ।उनको संभालना इतना आसान नहीं था लेकिन वह उन्हें छोड़ना भी नहीं चाहती थी क्योंकि उनको अपना सपना पूरा करना था। 2013 में उन बच्चों को मधु एक शेल्टर होम मे ले गयी और वहाँ उन्हें शिफ्ट कर दिया।
मधु का सपना था कि उनका घर ऐसी जगह पर हो जहां से उन्हें प्रकृति बेहद करीब दिखाई दे ,इसीलिए फाउंडेशन को झील के किनारे बनाया गया। शेल्टर होम बनाने और जमीन खरीदने में उन्होंने अपने गहने और प्रॉपर्टी बेंच दिए इसके अलावा मधु ने अपने दोस्तों और कुछ रिश्तेदारों से भी सहायता ली। थोड़े समय बाद बच्चों के लिए वहाँ बाहर से लोग खाना और कुछ जरूरत कि समान की सहायता देने लगे।
20 बच्चों के लिए “इच्छा फाउंडेशन” है खुद का घर है
इस फाउंडेशन के लिए मधु को सरकार से कोई सहायता नहीं मिली है । सरकार के अनुसार अगर बच्चे बढ़ेंगे तो उन्हें फंडिंग सहायता मिलने लगेगी। लेकिन मधु यह नहीं चाहती की पैसे के लिए वह बच्चों की संख्या बढ़ाएं । वह अपनी टीम के साथ इतने बच्चों का ही ख्याल अच्छे तरीके से रखना चाहती हैं। इच्छा फाउंडेशन में 15 सदस्य हैं जिसमें 2 किसान , दो स्पेशल टीचर, और एक फिजियोथेरेपिस्ट है। इनमे से 10 बच्चों का नामांकन स्कूल में हुआ है । यहां शेल्टर होम के आंगन में ही सदस्य खुद से ऑर्गेनिक सब्जियां उगाते हैं और यही बच्चों को खिलाई जाती है।
यहां गाय भैंस भी रखी गई है जिससे बच्चों को प्रचुर मात्रा में घी और दूध मिल सके,विकलांग बच्चों के इलाज और चेकअप के लिए हमेशा हॉस्पिटल भी ले जाया जाता है। बच्चों के लिए फाउंडेशन हर महीने 2.5 लाख तक रुपए खर्च कर रही है। मधु यहां आगे के लिए डांसिंग एंड पेंटिंग क्लास के साथ स्पेशल एजुकेशन सेंटर किसानी बच्चों के लिए खोलना चाहती है। मधु को इन अनाथ बच्चों को बेहतर कल देने के Logically नमन करता है।