Sunday, December 10, 2023

विदेश की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ सुपारी के पत्तों से सामान बनाकर स्थापित किया लाखों का व्यापार

आजकल लोग ऐसी-ऐसी चीजें बना रहे हैं जिसे देखकर आश्चर्य होता है। बेकार की चीजों से बेहद हीं आकर्षक और काम लायक चीजें बनाना हुनर की पराकाष्ठा हीं कही जा सकती है।

अनोखी चीजों के निर्माण में केरल के निवासी देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) और सारण्या (Saranya) का नाम भी उल्लेखनीय है। उन्होंने अपनी सोंच को नया मुकाम देने के लिए अच्छी खासी नौकरी को छोड़ कर खुद के व्यापार की शुरुआत की। इन दोनों ने अपनी पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से की। सन 2014 में इन दोनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई दिल्ली से पूरी कर ली। इसके बाद दोनों की यूएई में नौकरी लग गई। सारण्या (Saranya) एक वाटर प्रूफिंग कंपनी में काम करने लगी और देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) टेलीकॉम सेक्टर में काम करने लगे। थोड़े दिनों बाद इनकी शादी हो गई। ये दोनों अपना जीवन अच्छे ढंग से व्यतीत कर रहे थे।

नौकरी छोड़कर गांव आने का फैसला

एक अच्छी खासी नौकरी होने के बावजूद इनके मन में हरदम यही रहता था कि अपने देश और गांव में जाकर कुछ ऐसा काम करें जिससे अपने जीवन को स्वतंत्र बनाकर रोजगार करें एवं गांव के लोगों को भी रोजगार देकर उन्हें बेरोजगार मुक्त करें। पर उनके मन में यही संदेह होता कि किस तरह से इसे शुरू किया जाए। इन्हीं सब में उनके 4 साल बीत गए। फिर उन्होंने निष्कर्ष किया कि नौकरी छोड़ कर अपने गांव में जाकर इस काम की शुरुआत किया जाए। वे दोनों सन 2018 मे गांव में रहने के लिए आ गए।

Making many products from betel leaves

परिवार के विरुद्ध जाकर अपने काम की शुरुआत

देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) ने अपने परिवार के समक्ष अपने व्यापार की बात को रखी पर उनके परिवार ने इसे करने से मना कर दिया। उनके परिवार का मानना था कि इतनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़ कर इस छोटे से व्यापार से कुछ नहीं होने वाला है। देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) के पास ना तो बहुत ज्यादा पैसे थे और ना ही कोई फैमिली बैकग्राउंड। लेकिन देव कुमार ने अपने परिवार को भरोसा दिलाया कि यदि व्यापार नहीं चल पाया तो वापस वे दोनों नौकरी ज्वाइन कर लेंगे। तब वे दोनों अपने काम को आरंभ करने मे जुट गए।

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सुपारी (Betel) के पत्ते से प्रोडक्ट्स बनाने का आइडिया

देव कुमार अपने काम के बारे में बताते हैं कि उस समय दुनिया में प्लास्टिक फ्री अभियान चल रहा था। तब ही हम दोनों ने योजना बना ली थी कि कुछ इसी तरह के प्रोडक्ट का काम करेंगे। हमारे गांव में सुपारी (Betel) के प्लांट ज्यादा मात्रा में होते हैं और उनके सूखे पत्तों से नए प्रोडक्ट बनाने का योजना बन गया। जब हम नौकरी कर रहे थे उसी समय में इसके बारे में रिसर्च करके जानकारी प्राप्त कर ली थी।

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कम लागत और योजना के तहत कार्य का आरंभ

देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) और सारण्या (Saranya) ने सबसे पहले गांव में जगह का चुनाव किया। काम शुरू करने के लिए कुछ प्रोसेसिंग मशीनों को खरीदा। गांव के ही कुछ मजदूरों को प्रोडक्ट बनाने के लिए चुनाव किया। इन सभी कार्यों में लगभग 5 लाख रुपए की लागत लग आई। देव कुमार और सारण्या ने अपने जमा किए गए पैसों को ही खर्च में लगाया। सुपारी के पत्तों से वे कप,प्लेट,एवं कटोरी सहित एक दर्जन प्रोडक्ट बनाए। पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना गिरने वाले पत्तों को ही उपयोग में लाते। इस कार्य में गांव के ही महिलाओं को भी शामिल किया। महिलाएं गिरे हुए पत्तों को समेट कर उनकी प्रोसेसिंग (Processing), मैन्युफैक्चरिंग (Manufacturing) और पैकेजिंग (Packaging) का काम करती है। जिससे महिलाओं को भी रोजगार इस माध्यम से मिल जाता है।

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प्रोडक्ट बनाने का तरीका

देव कुमार नारायण (Dev Kumar Narayan) अपने इस प्रोडक्ट को बनाने के बारे में बताते हैं कि सुपारी (Betel) के सूखे हुए पत्तों को सबसे पहले चुनकर पानी से साफ करते हैं कुछ देर तक पानी के अंदर ही पत्तों को छोड़ देते हैं। अच्छी तरह से जब पत्ते पानी में मिल जाते हैं तब उसे धूप में सुखाने के लिए दे देते हैं। इस प्रोडक्ट में सिर्फ पानी का प्रयोग किया जाता है। सूख जाने के बाद मशीन की सहायता से उन्हें हिट और कंप्रेस करके मशीन में अलग-अलग साइजों की स्लैट्स मे से प्लेट और कटोरी जैसे कई प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। इसके बाद ही पैकेजिंग और मार्केटिंग का काम होता है।

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खुद से की मार्केटिंग

सारण्या (Saranya) बताती हैं कि उनके पास बजट कम था और वे नहीं चाहते थे कि काम को करने के लिए ज्यादा खर्चा आए इसलिए वे दोनों खुद से ही मार्केटिंग का जिम्मा लिया। सभी दुकानों और स्टोरों में जाकर अपने प्रोडक्ट का प्रचार किया और उसे बेचने का भी काम किया। शुरुआत में तो उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा। लगभग 1 साल के बाद उनका व्यापार अच्छी तरह से विकसित होने लगा। उसके बाद उन्होंने इस व्यापार में 10 लाख रुपए की पूंजी लगाई जिससे उनके व्यापार मे उन्नति हुई।

कोरोना ने व्यापार को किया बाधित

इस व्यापार के ऑफलाइन होने से एक जगह से दूसरे जगह तक प्रोडक्ट का डिमांड कम होता था। कोविड-19 के आ जाने से इसकी व्यापार प्रक्रिया एकदम से बंद हो गई। जो भी डिमांड बाहर से होता था सारे आने बंद हो गए। कुछ महीनों तक हम लोगों को घाटा ही हुआ। फिर हमने इस व्यापार को ऑनलाइन रूप दे दिया। इसके तहत हमने सोशल मीडिया के अंतर्गत अपने प्रोडक्ट को प्रचार प्रसार कर के ऑर्डर लेना चालू कर दिया जिससे इसके डिमांड में भी बढ़ोतरी हो गई। ऑनलाइन करने से इस व्यापार का फिर से विकास होना शुरू हो गया। हमने अपनी वेबसाइट भी बना कर उस पर काम किया जोकि इस व्यापार के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। हमारा प्रोडक्ट अपने देश से लेकर विदेश में भी जैसे कि यूएई, यूएसए जगहो में भी डिमांड के तौर पर जाने लगा। इस प्रोडक्ट के अंतर्गत एक रुपए से लेकर ₹100 तक के प्रोडक्ट आते हैं। वर्तमान समय में महीने का 1.5 लाख की कमाई हो जाती है।

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