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बचपन मे ही पिता छोड़ गए, माँ ने सब्जी बेचकर पालन-पोषण किया, बेटा खेलरत्न से समान्नित हो रहा है

ऐसा मानना है कि पिता के ना होने के बावजूद भी मां अपने बच्चों को बेहतर ज़िन्दगी देती है। वहीं अगर मां नही हो तो पिता को बच्चे संभालने में काफी दिक्कतों का समाना करना पड़ता है। एक औरत होने के नाते मां को हर दुःख सहन करने की शक्ति खुदा ने दी हैं। आज की इस कहानी के माध्यम से हम आपको एक सब्जी बेचने वाली मां और उनके दिव्यांग बेटे की सफलता के बारे में बताएंगे। लोगों का मानना है कि दिव्यांग होना अपमानजनक है। कुछ लोग दिव्यांग जनों की की निंदा करते हैं, जो गलत है। ये कहानी है “गोल्ड मेडलिस्ट मरियप्पन” की जिनका पैर 5 वर्ष की उम्र में ही एक एक्सीडेंट में चोटिल हो गया था।

Mariyappan Thangavelu

मरियप्पन थान्गावेलु ( Mariyappan Thangavelu) का जन्म 28 जून 1995 को तमिलनाडु (Tamilnadu) के सलेम (Salem) शहर में हुआ। गरीब परिवार में जन्म लेने के उपरांत कुछ ही दिनों में इनके पिता दुनिया से चल बसे। इनके घर का सारा जिम्मा इनकी मां (Saroja Devi) के ऊपर आ गया। उन्होंने जीवन यापन करने के लिए ईंट ढोने का काम को शुरू किया। दुर्भाग्यवश कुछ दिनों बाद उन्हें सीने में परेशानियां होने लगी। इस वजह से उन्होंने यह काम छोड़ दिया। कुछ रुपए कर्ज़ ले कर अपना इलाज कराई। जब ठीक हुई तो उन्होंने सब्जी बेचने का काम शुरू किया और उससे दो वक्त की रोटी का गुजारा होने लगा।

5 वर्ष की उम्र में हुए विक्लांग

मरियप्पन की मां अपने घर का गुजारा कर ही रहीं थीं तब तक एक और दुर्घटना ने उन्हें झंझोर कर रख दिया। मरियप्पन की उम्र अभी 5 साल की थी। एक दुर्घटना में अधिक चोट लगने के कारण वह दाहिने पैर से विकलांग हो गये। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अब उनकी मां को चिंता होने लगी कि वह अपने बेटे का इलाज कहां से कराये? इनकी मां ने जैसे-तैसे कर्ज़ के तौर पर लभगभ 3 लाख रूपये लिए और क़ानून से भी मदद मांगी। इनकी मां ने हार नहीं मानी और कानूनी लड़ाई लड़ती रहीं। लगभग 17 वर्षों तक वह कानूनी लड़ाई लड़ी तब जाकर उन्हें विकलांग बेटे के पैर के लिए मुआवजा मिला।

पढ़ाई को रखा जारी

Mariyappan Thangavelu की मां ने इतनी कठिनाइयों के बीच भी अपने लड़के की पढ़ाई नही रुकने दी। मरियप्पन पढ़ाई के साथ खेल में बहुत रुचि रखते थे। इनके अंदर के इस हुनर को इनके एक शिक्षक ने पहचाना और उन्हें प्रतियोगिता की ट्रेनिंग देने लगे। जब वह 14 साल के थे तब प्रथम प्रतियोगिता में भाग लेकर सबको हक्क-बक्का कर दिये। इन्होंने पहली बार में ही “सिल्वर मेडल” जीत अपनी हुनर को सबके सामने साबित किया।

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विकलांग होने के बावजूद भी लगाया 1.78 मीटर का हाई जम्प

मरियप्पन खेल में वॉलिबॉल बहुत पसंद करते थे और इसी खेल के खिलाड़ी थे। वह जिस कोंच से ट्रेनिंग लिए उनका नाम सत्यनारायण है। सत्यनारायण ने इन्हें वॉलीबॉल को रोक, हाई जम्प की सलाह दी। मरियप्पन ने भी उनकी कदर कर इसे ही अपना लक्ष्य बनाया और जीत के लिए संघर्ष करने लगे। इन्होंने सबको आश्चर्यचकित उस दिन किया जब यह 1.78 मीटर की हाई जम्प ट्यूनेशिया ग्रैं प्री में लगाई। उस वक़्त सब इन्हें देखते रह गये, एक विकलांग लड़का इतनी ऊंची जम्प कैसे लगा सकता है? लेकिन जो सच था, उसे अपनी आंखों से देखने के बाद भी लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था।

देश के लिए गोल्ड मेडल जीता

एक विकलांग लड़के की ऐसी लगन और जम्प देख इनका चयन “रियो ओलिंपिक” के लिए हुआ। मरियप्पन ने 1.89 मीटर की जम्प “रियो ओलिंपिक गेम के फाइनल में लगा कर देश और अपनी शक्ति से सबको परिचित कराया। इन्होंने इस खेल में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता। साथ ही यह पैरालंपिक खेलों में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले तीसरे व्यक्ति बनें।

मिले हैं कई पुरस्कार

पैरालंपिक गोल्ड मेडल विजेता मरियप्पन थांगवेलु (Mariyappan Thangavelu) को 29 अगस्त के दिन वर्चुअल सम्मेलन में खेल रत्न का पुरस्कार मिला है। साथ ही यह पद्मश्री (Padam shri), अर्जुन अवॉर्ड और पारा अथिलेटिक्स पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके हैं।

Mariyappan Thangavelu विकलांग होने के बावजूद भी देश के लिए गोल्ड मेडल लाकर देश का नाम गौरवान्वित किये। The Logically. Mariyappan के हुनर की प्रशंसा करते हुए इन्हें सलाम करता है।

Khushboo loves to read and write on different issues. She hails from rural Bihar and interacting with different girls on their basic problems. In pursuit of learning stories of mankind , she talks to different people and bring their stories to mainstream.

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