मांड्या मे रहने वाले जे.रामकृष्ण जब 2 साल के थे तभी पोलियो से ग्रसित हो गये। इसके बावजूद भी 400 से ज्यादा किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा वाले व्यवसाय शुरू करने मे सहायता किए।
जे. रामकृष्ण पहले कंप्यूटर ऑपरेटर थे, इन्होंने नौकरी छोड़ मशरूम की खेती करना शुरू किया । उनको यह पता था की मशरूम खाने से हृदय रोग और आयरन की कमी वाले बीमारी में मदद मिलती है, इसलिए उन्होंने अपने घर मे ओएस्टर मशरूम की खेती की शुरूआत की। कुछ महीनों बाद उन्होंने मशरूम की खेती करने की बहुत सारी तकनीक सीख ली और अपने गाँव के किसानों को मशरूम की खेती करने का सलाह दिए।
मशरूम की खेती से होने वाले दो समस्याएँ
पहला, मशरूम पर एक माईसीलियम नाम का बैक्टीरिया होता है, ये बैक्टीरिया अन्य बिमारियाँ उत्पन्न कर मशरूम की वृद्धि को रोक देता है, इस वैक्टरिया से मशरूम को बीमारी से बचाने के लिए फंगस के पास 100 गज की दूरी तक सफाई रखनी पड़ती है।
दूसरा, मशरूम की कटाई कर उसे ज्यादा देर तक नही रखा जाता,10 घन्टे के अंदर उसकी विक्री करनी पड़ती थी नही तो मशरूम खराब हो जाते हैं ।
कुछ महीने मशरूम की खेती करने के बाद मशरूम की खेती और कटाई की विधि सही तरीके से पता चल गया, कमरे का तापमान अनुकूल बनाने के लिए उन्होंने ह्यूमिडिफायर मशीनरी विधि का उपयोग किया। उन्होंने बैग मे मशरूम की खेती कर वहाँ के किसानों मे एक नई जोश जगा दिया। बैग मे मशरूम की खेती से 10 दिनों मे मशरूम की वृद्धि मे बढ़ोतरी होती है और कोई बीमारी भी नही लगती है। मशरूम की सिंचाई लगातार कई हफ्ते तक करनी पड़ती है। कोई मशरूम खराब ना हो उसके लिए मशरूम को सुखा कर उसके पाउडर से रसम पाउडर, पापड़ और बिस्कुट सहित अन्य 20 प्रकार के समाग्री बनाते है। इन उत्पादों को श्रम कल्याण विभाग और FSSI द्वारा मंजूरी भी मिला है, इनके बनाये हुए बिस्कुट पापड़ पूरे कर्नाटक के ऑर्गेनिक स्टोर और सुपर मार्केट मे बिकते हैं।
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मशरूम की खेती के साथ इनके जरिये एक संस्था भी चलाई जाती है जिसका नाम “इंस्टिट्यूट ऑफ़ मशरूम साइंस” है इसकी स्थापना 2013 में हुई, इस संस्था में मशरूम की खेती कैसे करनी है इसके बारे में किसानों को बताया जाता है, इनकी संस्था से प्रभावित होकर कर्नाटक के मांड्या मैसूर, तुमकुर, और अन्य राज्यों के लगभग 400 से अधिक किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं।
मशरूम की खेती से होने वाले मुनाफे
मशरूम से हुए मुनाफे और ग्राम सहायकों की मदद से उन्होंने मशरूम फार्मिंग यूनिट की शुरुआत की है, इस यूनिट के जरिए किसानों को मशरूम बैग दिया जाता है, इस बैग में कवक समाहित रहता है, किसान कम से कम 8 बैग तक बेच कर 3000 का मुनाफा कमा सकते हैं । इस मशरूम बैग की फसल को दुकानों होटलों और लोकल मार्केट में सीधे भेजा जा सकता है। जो मशरूम अच्छी कीमत पर नहीं बिकता उनका इस्तेमाल रामकृष्ण दूसरी वस्तु बनाने में करते हैं।
रामकृष्ण को 2017 में कर्नाटक कौशल विकास निगम के द्वारा सम्मान मिल चुका है, कर्नाटक अखबार ने 2018 में रामकृष्ण को “सुपरस्टार किसान” पुरस्कार दिया। उन्हे सरकार के द्वारा एक वैन दिया गया है, जिसमें बैठकर वो वहां के लोगों को मशरूम की खेती के बारे में बताते हैं।
हालांकि कोविड-19 के चलते सभी काम रुके हैं, कुछ दिन पहले ही इन्होंने अपने काम की शुरूआत की है, रामकृष्ण पापड़ बिस्किट जैसे प्रोडक्ट को ई-कॉमर्स के जरिये भी बेचना चाहते हैं। इनका मिशन है कि वह कर्नाटक में लगभग 6000 से अधिक किसानों को मशरूम की खेती कराके उसके फायदे दिखा सकें। Logically रामकृष्ण के दृढ़ संकल्प और किसानों को जागरूक करने के लिए नमन करता है।