Wednesday, December 13, 2023

मटका ठिम्बक पद्धति, पौधरोपण की सबसे पुरानी पद्धति जिससे सैकड़ों साल तक पौधे को स्वतः पानी मिलते रहता है

हम अनेकों प्रकार से पौधे रोपण की विधियां जानते है जिनमें एक खास पद्धति है मटका थिंबाक। इस विधि से पौधा रोपण करने के से पेड़ लंबे समय (100 से अधिक सालों) तक जीवित रहते है। इस कारण से यह पद्धति बहुत खास मानी जाती है। हाल ही में राम मंदिर का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। साथ ही वहां एक खास कार्य नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया जो है – मटका थिंबक पद्धति द्वारा पौधा रोपण।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया पौधा रोपण

यह कोई पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री द्वारा पौधा रोपण किया गया। पहले कई बार नरेंद्र मोदी अपने हाथों से पौधा रोपण करके आम जनता में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता फैलाए है। लेकिन मन्दिर के प्रांगन में जो पौधा रोपन प्रधानमंत्री ने किया वह आम जनता के लिए इसीलिए ख़ास है क्योंकि उस समय उनके द्वारा पहली बार मटका थिम्बक पद्धति द्वारा पौधा रोपण किया गया। यह पद्धति लगभग हजारों साल पुरानी है। इस विधि से पौधा रोपण करने से पौधे आयु लम्बी होती है।

मटका थिम्बक पद्धति है हजारों साल पुरानी




मटका थिम्बक पद्धति पौधा रोपण का सबसे पुराना तरीका है। भारत में इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन पुराण में इसका जिक्र है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह प्रक्रिया चीन में लगभग 2 हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है। वहीं अफ्रीका में यह पद्धति 4 हज़ार साल पहले से चलती आ रही है। साथ ही इस प्रक्रिया को इंडोनेशिया, जर्मनी, ईरान, दक्षिण अमेरिका, ब्राजील जैसे देशों ने भी अपनाया है।

मटका थिम्बक पद्धति द्वारा पौधा रोपण की विधि

मटका थिम्बक पद्धति में पौधे से कुछ हीं दूरी पर मिट्टी के मटके के तली में छोटे-छोटे छिद्र करके जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता है। मटके के छिद्र में जुट की रस्सी बांधी जाती है। पौधा रोपण के पश्चात मटके के निचले हिस्से को भी पौधे जड़ की तरह ही मिट्टी से ढक दिया जाता है जबकि मटके का मुंह खुला ही रहता है। इसमें जब पौधे में पानी डालने की आवश्यकता होती है तब सीधे पौधे में पानी न डाल कर मटके में डाला जाता है। मटके में लगी जुट की रस्सी के जरिए पौधे की जड़ों में बूंद-बूंद करके पानी जाता है, जिससे पानी की बचत भी होती है और पौधे लंबे समय तक जीवित रहते है। एक बार मटके में पानी भरने के बाद 5 दिनों तक पानी डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में या जहां कहीं भी पानी की कमी रहती है, वहां पौधे की भी वर्षा के लिए बहुमात्रा में आवश्यकता होती है। वैसे जगहों पर मटका थिम्बक पद्धति द्वारा कम पानी में भी पौधा रोपण किया जा सकता है।




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इस अनूठे तरीके को लोगों ने खूब पसंद किया

भले ही प्रधानमंत्री ने नेशनल टेलीविजन पर मटका थिम्बक पद्धति द्वारा पहली बार पौधा रोपण किया लेकिन वहीं गुजरात में किसान पहले से ही इस पद्धति को अपनाकर खेती करते है। वहीं अब मध्यप्रदेश में भी सरकार ने मटका थिम्बक पद्धति के जरिए पौधे रोपण का प्रक्रिया शुरू कर दिया है। साथ ही आंध्र प्रदेश के अनंतपुर, कुर्नूल और चित्तूर जिले में 400 एकड़ जमीन में मटका थिम्बक पद्धति को अपनाकर फलों और सब्जियों की खेती की प्रक्रिया शुरू की गई है। अब ज्यादा से ज्यादा किसान इस पद्धति को अपनाकर खेती कर रहे है।

एक तीर से दो निशाने वाली कहावत तो हमने सुनी ही है। हजारों साल पुरानी मटका थिम्बक पद्धति को अपनाकर हम पर्यावरण संरक्षण के साथ जल संरक्षण में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। The logically अपने पाठकों से इस पद्धति को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाने की अपील करता है।