छूने पर इसकी पत्तियां शर्मा कर सिकुड़ जाती हैं, इसी कारण इसे शर्मीली भी कहा जाता है। अगर इस पौधे को आप छुईमुई समझ रहे हैं तो बिल्कुल सही। छुईमुई अपनी इसी विशेषता के कारण काफी लोकप्रिय पौधा है। ऐसे में भला कौन इसे अपने गार्डन में नहीं लगाना चाहेगा। लाजवंती, शर्मीली या छुईमुई कई नामों से इसकी पहचान है और उपयोगी भी। (Touch me not plant)
कई नामों से मशहूर है छुईमुई का पौधा
छुईमुई की 4000 प्रजातियाँ पाई जाती है। अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामों से पुकारा जाता है, बंगाली में इसे लज्जबती कहते है, मलयालम में तिन्तार्मानी, अंग्रेजी में सेंसिटिव प्लांट, तेलगु में अत्तापत्ति और पेद्दनिद्रकन्नी, तमिल में तोत्तालादी और थोत्ताल्चुंगी और कन्नडा में लज्जा, नाचिका और मुदुगु दवारे कहा जाता है। (Varieties of sensitive plant)
छुईमुई के औषधीय गुण
छुईमुई जितना अपनी अनोखी विशेषता के लिए मशहूर है उतना ही स्वास्थ्य के लिए भी गुणकारी है। जानिए इस पौधे के पांच खास गुण। (Medicinal qualities of touch me not plant)
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छुईमुई को आदिवासी बहुगुणी पौधा मानते हैं उनके अनुसार यह पौधा घावों को जल्द से जल्द ठीक करने के लिए बहुत ज्यादा सक्षम होता है।
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छुईमुई की जड़ और पत्तों का चूर्ण दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भगंदर रोग ठीक होता है।
यदि छुईमुई की 100 ग्राम पत्तियों को 300 मिली पानी में डालकर काढ़ा बनाया जाए तो यह काढ़ा मधुमेह के रोगियों को काफी फायदा होता है।
छुईमुई की पत्तियों और जड़ों में एंटीमायक्रोबियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते हैं जिनकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है और मजे की बात ये भी है कि आदिवासी अंचलों में हर्बल जानकार आज भी त्वचा संक्रमण होने पर इसकी पत्तियों के रस को दिन में 3 से 4 बार लगाने की सलाह देते हैं।
टांसिल्स होने पर इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लगाने से जल्द ही समस्या में आराम मिलता है। प्रतिदिन 2 बार ऐसा करने से तुरंत राहत मिल जाती है, जिन्हें गोईटर की समस्या हो उन्हें भी इसी तरह का समाधान अपनाना चाहिए।