26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान (Constitution) लागू हुआ था। इस दिन को हम गणतंत्र दिवस (Republic Day) के रूप में जानते हैं और प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को झंडा फहराकर गणतंत्रता दिवस मनाई जाती है। इस दिन पूरे देश में हर्षो-उल्लास का माहौल रहता है लेकिन इस बार मेरठ में गणतंत्र दिवस अनोखे तरीके से मनाई जाएगी।
जी हाँ, क्रान्ति की नगरी कहा जाने वाला मेरठ (Meerut) इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर बहुत ही स्पेशल तरीके से अपनी खुशियां जाहिर करेगा और इसके लिए पूरी तैयारी भी हो चुकी है। दरअसल, साल 2023 के गणतंत्र दिवस को मेरठ में 21 लाख रुपये की लागत लगाकर पतंग तैयारी की गई है और इसे उड़ाकर वहां गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं इस पतंग की खासियत के बारें में-
21 लाख की लागत से बनी सोने की पतंग
दरअसल, मेरठ के सर्राफा व्यापारियों ने सोने का पतंग (Gold Kite) बनाया है जिसे बनाने में कुल लागत 21 लाख रुपये आई है। सर्राफा व्यापारी अंकुर ने बताया कि, इसे विशेष तौर पर गणतंत्र दिवस के लिए बनाया गया है जिसे बनाने के लिए 7 कारीगर लगे थे और उन सभी ने मिलकर 16 दिन में इसे तैयार किया है। इस खास पतंग पर सोने की परत चढ़ाई गई और इसकी डोरी तथा चरखी भी सोने से बनाई गई है।
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परिवार की तीन पीढियाँ करती हैं झंडे बनाने का काम
जानकर हैरानी होगी कि, मेरठ (Meerut) में बनाए गए तिरंगे की काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक फहराया जाता है। बात करें तो यहां के तिरंगे की एक अनोखी कहानी है। दरअसल, मेरठ में एक ऐसा परिवार रहता है जिसकी तीन पीढ़ियां देश की आन बान शान तिरंगा बनाने का काम करती हैं। इसी परिवार ने भारत की आजादी के सबसे पहले तिरंगे का निर्माण किया था।
निराली है तिरंगे बनाने वाले इस परिवार की कहानी
मेरठ (Meerut) की हम जिस परिवार की बात कर रहे हैं वह परिवार है नत्थे सिंह की, जिनका जन्म साल 1925 में मेरठ के सुभाष नगर में हुआ था। नत्थे सिंह के इस दुनिया से जाने के बाद भी उनकी पीढियाँ झंडे बनाने का काम करती है। स्वर्गीय नत्थे सिंह के बेटे का कहना है कि, वे अपनी अन्तिम सांस तक झंडा बनाएँगे और उसी में लिपटकर इस दुनिया से अलविदा कह जाएंगे।
स्वर्गीय नत्थे सिंह के बेटे रमेश बताते हैं कि, उनके पिताजी ने बताया कि जब पहली बार तिरंगा बनाने के लिए क्रान्तिकारियों की एक स्पेशल टीम मेरठ आई थी और महज 2 दिन में तिरंगा तैयार करने के लिए कहा था। उसके बाद उन्होंने रातोरात ही तिरंगा तैयार किया और तब वह टीम उस तिरंगे को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुई। वर्तमान में मेरठ में इस परिवार के आलवा अन्य जगहों पर भी तिरंगा बनाया जाता है और सभी झंडा बनाना अपनी शान समझते हैं।