कुछ व्यक्ति अपनी अच्छाइयों के लिए जाने जाते हैं तो कुछ अपनी बुराइयों के लिए। ऐसे ही अच्छाई को अपनाकर अपनी पहचान बनाने वाले उत्तर बंगाल के निवासी दंपति की कहानी आज हम आप सभी से साझा कर रहें हैं। यह दंपति मजदूर बच्चों को शिक्षा की सामग्रियां निःशुल्क वितरित कर रहें हैं। वहां के बच्चे इनके आने का बेसब्री से इंतजार करतें हैं। इन बच्चों को शिक्षा के लिए सिर्फ सामग्रियां ही नहीं मिलती बल्कि इन्हें मात्र 10 रुपये में महीने भर पढ़ने का मौका भी मिलता है। यह दंपति लगभग 30 गांव के बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
दंपति अनिबार्न और पौलमी
पति अनिबार्न नंदी और पत्नि पौलमी चाकी नन्दी, ये दोनों दार्जलिंग में चाय बागानी एरिया के 30 गांव के बच्चों को पढ़ाने में लगे हैं। ये दोनों पति पत्नी काफी पढ़े लिखे हैं। अनिबार्न ने आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) से पढ़ाई की है और पौलमी सोशल साइंस और अर्थशास्त्र में शोधकर्ता है। लेकिन जिस तरह हम यह जानते हैं कि कोरोना के कारण सभी कार्य बंद है उसी तरह इनका भी कार्य बंद है और यह दंपति अपने घर पर है।
मोबाइल लाइब्रेरी
यह दंपति चाय बागानी मजदूरों को शिक्षा के महत्व को बताकर उनका कल बेहतर बनाने में लगे हैं। लॉक-डाउन के दौरान यह दम्पति अपनी गाड़ी में किताब, पेन, पेंसिल, भरकर यहां बच्चों के पास आते हैं। इन दोनों का खुद का अपना मोबाइल लाइब्रेरी है और यह इसी के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
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सोशल डिस्टेंसिंग का करतें हैं पालन
इस युगल का मानना है कि इन बच्चों के पास वह आधुनिक तकनीक नहीं है जिससे यह पढ़ाई कर सकें। इसलिए दोनों ने इस बात को ध्यान में रखते हुए बच्चों को पढ़ाने का कार्य शुरू किया।इनके द्वारा बच्चों को साइंस, अंग्रेजी, इकोनॉमिक्स, कंप्यूटर, पॉलिटिकल साइंस और भूगोल जैसे विषयों के बारे में जानकारी दी जाती है। साथ ही ये दोनों पति पत्नी उन बच्चों को पढ़ाई की सामग्रियां भी देते हैं। इन्हें पढ़ाने के दौरान ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं। सबसे खास बात यह है कि इन बच्चों को पढ़ाने के लिए पूरे 1 महीने के लिए मात्र 10 रुपये ट्यूशन फी के तौर पर लगता है।
इस कार्य का आइडिया कहां से आया
एक रिपोर्ट के अनुसार यह जानकारी मिली कि जब अनिबार्न छोटे थे तो वह ऐसे इलाके में रहे थे जहां पढ़ाई का कोई साधन नहीं था। पढ़ाई करने के लिए नदी को क्रॉस करके जाना पड़ता था जिसपर पुल नहीं था। इन्हें पढ़ाई के लिए ट्यूशन भी नहीं मिलता था। इसीलिए उन्होंने निश्चय किया कि मैं जो तकलीफ भुगत चुका हूं वह चाय के बागान के बच्चों को नहीं झेलने दूंगा। इसीलिए उन्होंने इस कार्य को शुरू किया है।
10 रुपये में 1 माह का ट्यूशन
इन्होंने इन बच्चों को पढ़ाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया है। इन्हें लगा कि इन्हें थोड़ा सा प्रोत्साहित किया जायेगा तो यह जरूर आगे बढ़ेंगे। पहले तो इन्होंने इन बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने के लिए सोचा लेकिन फिर इन्हें महसूस हुआ कि अगर हम बच्चों को फ्री में क्लास देंगे तो वह इसे फ्री समझकर हीं पढ़ेंगे। वहीं अगर पैसे लेकर पढ़ाया जाता है तो इन्हें यह लगेगा कि हम पैसे दे रहे रहे हैं तो हमारा पैसा जाया नहीं जाना चाहिए। इसलिए इन्होंने 10रुपये से इन बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि इस गांव के आदिवासी क्षेत्रों में लगभग 30 गांव हैं जहां 16 सौ व्यक्ति हैं। यह कार्य लड़कियों के शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हुआ है। वहां पहले लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई साधन नहीं था इसलिए इन्होंने यह कार्य शुरू किया। इनके लिए खुशी की बात यह है कि इन लड़कियों को पढ़ा रही है और ये लड़कियां भी पढ़ाई के महत्व को समझ भी रही है।
सबसे खास बात है कि वहां की एक छात्रा है रानीमा जो अपने नवजात शिशु को लेकर पढ़ने आती है। उनका बच्चा 5 महीने का है, इनकी पढ़ाई की ललक तो देखिए कि वह अपने बच्चे को लेकर पढ़ाई करती है। वहां के सभी बच्चे इस बात से खुश हैं कि इस लॉकडाउन के दौरान उनके पास ना ही नेटवर्क की व्यवस्था थी और ना ही स्मार्टफोन की जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई रुक गई थी, लेकिन इन दोनों दंपति ने इन्हें पढ़ाया वह इसके लिए बहुत खुश हैं।
जिस तरह ये दम्पति निःस्वार्थ भाव से इन बच्चों को पढ़ाने के लिए रोजाना यहां आतें हैं और जिस तरह इन्हें पढ़ाते हैं वह अनुकरणीय है। इसके लिए The Logically अनिबार्न और पौलमी जी को सैल्यूट करता है।