अगर बात कचरों की करें तो हम यह बहुत ही अच्छे से जानते हैं कि यह हमारे और पर्यावरण के लिए कितना दुष्प्रभावी है। लोगों का मानना है कि अगर हम प्लास्टिक का यूज ना करें तो इससे कम प्रदूषण फैलेगा। लेकिन सिर्फ कहने से कुछ नही होता। अगर हम मार्केट जाते हैं तो कोई थैला नहीं ले जाते क्योंकि हम यह जानते हैं कि हमे जो भी समान खरीदना है वह प्लास्टिक के पन्नी में पैक्ड होगा।
हमारी आज की यह कहानी एक ऐसी मां की है जो अपनी बेटी की परेशानी दूर करने के लिए एक ऐसे अभियान की शुरुआत की हैं जो सबके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ। यह महिला प्रत्येक वर्ष 750 टन कचरा रीसायकल करती हैं।
मुम्बई की मोनिशा नारके
45 वर्षीय मोनिशा नारके (Monisha Narke) मुंबई ( Mumbai) की निवासी है। यह एक व्यापारी होने के साथ मां भी है। जब इनके 4 साल की बेटी ज्यादा खांसने लगी तब इन्होंने इसकी वजह ढूंढने की कोशिश की। वह अपनी बेटी के परेशानी का कारण जानना चाहती थी। बेटी बहुत छोटी थी, इसलिए वह उसे कोई दवा नहीं देना चाहती थी। वह इस खांसी के तह तक गई। उन्होंने पता किया कि ये सारी प्रॉब्लम कचरा डंप कर उसे जलाने से हो रहा है। हम जानते हैं कि अगर कोई भी कचरा जलता है तो उससे वायु प्रदूषित होती है और वायु प्रदूषण हमारे लिए कितना हानिकारक है। वायु प्रदूषण से कई बीमारियां होती है, एलर्जी, खांसी-जुकाम, सांस लेने में परेशानी। तब उन्होंने तय किया कि मैं कुछ ऐसा करूंगी कि जिससे मेरी बेटी की भी परेशानी दूर हो और अन्य लोगों को भी इससे छुटकारा मिले।
तब मोनिशा ने तय किया कि वह कचरा प्रबंधन से खाद कैसे बनता है यह जानकारी प्राप्त करेंगी। फिर उन्होंने घर के कचरे से खाद बनाकर उसमें तरबूज उगाया और वह बहुत अच्छे तरीके से उपज भी गया। मोनिशा को इस बात की बहुत खुशी हुई। फिर उन्हें लगा कि जब मैं घर पर ऐसे कचरे से इतनी अच्छी फसल उगा सकती हूं तो अगर बड़े पैमाने पर कचरे को रिसाइकल किया तब तो इससे सबको लाभ मिलेगा।
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महिलाओं के साथ मिलकर किया संगठन का निर्माण
मोनिशा की बेटी जिस स्कूल में पढ़ती थी वह वहां गईं और बाकी बच्चों के मां से उन्होंने इस विषय मे बात की। सभी महिलाओं ने 2009 में स्वयंसेवक समूह की स्थापना की और उस समूह का नाम आरयूआर रखा गया। इसका मतलब है कि ” आरयूआर रिड्यूजिंग, रियूजिंग, रिसाइक्लिंग“। यह संगठन कार्य करने लगा तो बहुत ही अच्छा प्रभाव दिखा। लगातार 10 वर्षों से यह संगठन कार्य कर रहा है और इसका बहुत ही अच्छा प्रभाव भी दिखाई दे रहा है। मोनिका और उनका संगठन प्रत्येक साल 750 टन से अधिक कचरे को रिसाइकल कर देता है। साथ ही साल में लगभ 80 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को कम करता है। इन्होंने अपनी वर्कशॉप की मदद से 30 लाख से अधिक व्यक्तियों को भी शिक्षित किया है और कचरा प्रबंधन के बारे में बताया है।
आरयूआर ग्रीनलाइफ की हुई स्थापना
मोनिशा ने वर्ष 2010 में अपने इस अभियान को जागरूक करने के लिए सामाजिक उद्यम में परिवर्तित किया। फिर इन्होंने आरयूआर ग्रीनलाइफ़ की स्थापना की। इनके समूह के सदस्यों ने भी इनका हर स्थान पर सहयोग दिया। मुंबई में इस उधम ने स्कूलों, ऑफिस, हाउसिंग कम्युनिटी में वर्कशॉप के माध्यम से से अपशिष्ट प्रबंधन जारी हुआ। फिर इन्होंने “ट्रेटा पैक इंडिया” के साथ साझेदारी कर “गो ग्रीन विद ट्रेटा पैक” को लांच किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से मुंबई भर के यूज हुये टेट्रा पैक को जमा किया जाने लगा।आगे इन डिब्बों को रिसाइकिल कर गार्डन बेंच, स्कूल डेस्क, पेन स्टैंड और ट्रे का निर्माण होने लगा। फिर इन्होंने घरों, ऑफिसों और संस्थाओं में उपयोग के लिए “एरोबिक बायो-कंपोस्टर्स” का आविष्कार हुआ।
बचपन से सपना इंजीनियर बनने का था
मोनिशा के पिता और उनके बड़े भाई इंजीनियर हैं। वह अक्सर उनके ऑफिस में जाया करती थी और देखती थी कि मशीने कैसे कार्य करती है। इनका सपना बचपन से ही इंजीनियर बनने का था। इलेक्ट्रॉनिक से इंजीनियरिंग (Electronic Engineering) की डिग्री प्राप्त करने के लिए इन्होंने 1992 में मुंबई के वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (Veermata Jijabai Technological Institute) में अपना नामांकन कराकर पढ़ाई करने लगीं। 6 वर्ष बाद 1998 में उन्हें डिग्री हासिल हुई और वह यूएस में स्टैंडफोर्ड विश्वविद्यालय (U S A Standford University) में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग एवं इंजीनियरिंग मैनेजमेंट (Industrial Engineering and Engineering Management) में मास्टर करने के लिए निश्चय किया। फिर यह एक IT कंपनी कैलिफोर्निया में सन माइक्रोसिस्टम के साथ मिलकर कार्य शुरू की। वहां 2 साल तक काम करने के बाद में मुंबई वापस आईं। यहां आकर उन्होंने अपने पिता की कंपनी मैं काम करना शुरू कर दिया। यहां वह टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट मैनेजमेंट के तौर पर कार्य संभालती थी। इसी दौरान वह आरयूआर के कार्यों में शामिल हुई और उसे पूरी तरह से समझ गई । फिर उन्होंने यह नौकरी छोड़ दिया और आरयूआर को आगे ले जाने के बारे में निश्चय कर लिया।
कार्टन लाओ क्लासरूम बनाओ
मोनिशा ने एक अभियान की शुरुआत की वर्ष 2012 में। “कार्टन लाओ क्लासरूम बनाओ” यह अभियान को गो ग्रीन विद टेट्रा पैक” के तहत ही शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत डिब्बों को रिसाइकल कर बेंच आदि बनाए गए। फिर उसे जो सरकारी स्कूलों में डोनेट किए जाने लगे। फिर उन्होंने आगे “बिन से बेंच तक” अभियान की शुरुआत की। इस अभियान में डेस्क जो बगीचे में लगाए जाते थे। वह बनाए जाने लगे। यह बहुत ज्यादा ही प्रसिद्ध हुआ और लगभग 150 से अधिक गार्डन बेंच बनाए गए और स्कूलों के लिए 250 से अधिक डेस्क बनाएं गयें।
जैव खाद का निर्माण
वर्ष 2016 में आरयूआर ने अपना जैविक खाद का एक मॉडल लॉन्च किया। इस खाद को RGGC नाम मिला। किचन वेस्ट की मदद से लगभग हर रोज 800 ग्राम से 200 किलोग्राम तक का बायोडिग्रेडेबल खाद बनाया जाने लगा। आरजीजीसी एक्सएस,एस मॉडल वाले खाद की कीमत 15,000 रुपये और RGGC-L मॉडल वाले खाद की कीमत 62,000 रुपए है। इनके खाद का उपयोग आज वहां हर व्यक्ति अपने बागानी और खेतों उपयोग करते हैं। बड़े पैमाने पर खाद बनाने के लिए इनका कार्य जारी है। यह कचरा का प्रबंधन कर बीमारियों को दूर करना चाहती हैं।
The Logically मोनिशा को पर्यावरण संरक्षण के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हुये सलाम करता है।