Monday, December 11, 2023

जिन बीमारियों को लोग अछूत मानते थे, मदर टेरेसा ने उन रोगियों का इलाज़ करते-करते अपना उम्र बीता दिया: प्रेरणा

अपने लिए जिंदगी कई लोग जीते हैं लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरों के लिए जिंदगी जीते हैं। अपनी जिंदगी से कई लोगों को जीवन देना और खुद सेवा की पराकाष्ठा बन जाने का उदाहरण मदर टेरेसा से बेहतर नहीं हो सकता है। उनका पूरा जीवन परोपकार का प्रेरणा रूपी किरण है जिसकी रौशनी से कई लोगों ने खुद को प्रेरित किया है। आईए जानते हैं सेवा की मिसाल पेश करने वाली मदर टेरेसा जी के बारे में…

शुरूआती जीवन

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कॉप्जे(मेसीडेनिया) में हुआ था। उनका असली का नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू है ! उनके पिता एक व्यवसायी थे। मदर टेरेसा जब आठ वर्ष की थीं तो उनके सर से पिता का साया उठ गया। उस घटना के बाद मदर टेरेसा और उनके भाई-बहन के परवरिश के जिम्मेदारी उनकी माँ पर आ गई। मदर टेरेसा बचपन से हीं बेहद मेधावी और मेहनती लड़की थी। वे बचपन से हीं लोगों की सेवा करना चाहती थीं। जब वह 18 वर्ष की हुईं उन्होंने “सिस्टर्स ऑफ लोरेटो” में शामिल हो गईं ताकि वह अपना जीवन लोगों की सेवा में लगा सकें। दरअसल उनकी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने अंग्रेजी सिखना शुरू किया।

Mother Teresa

अपने जीवन को लोगों की सेवा में समर्पित करने का लिया संकल्प

यूं तो मदर टेरेसा को बचपन से लोगों की सेवा करने में बहुत रूचि थी। वह हर संभव मदद करती भी आईं। अपने पूरे जीवन को लोगों की सेवा में समर्पित करने के बारे में उन्होंने खुद लिखा है “वह 10 सितम्बर का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी। उसी समय अंतरात्मा से आवाज उठी कि मुझे सबकुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर एवं दरिद्र नारायण की सेवा करके कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।

ताउम्र करती रहीं लोगों की सेवा

मदर टेरेसा का जन्म मानों लोगों की सेवा कर उन्हें जिंदगी प्रदान करने के लिए हीं हुआ था। पूरी तरह से समर्पित होकर मदर टेरेसा ने अपनी सम्पूर्ण जिंदगी को लोगों की सेवा में लगा दिया। वह सर्वप्रथम सिस्टर्स ऑफ लोरेटो से जुड़कर बच्चों को पढाती थीं। उन्होंने 1940 में कोलकाता में “मिशनरीज ऑफ चैरिटी” की स्थापना की 1948 में वे स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता से ली थी। उनकी मान्यता रही कि प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है। वह बच्चों को पढाने के अलावा बीमार गरीब लोगों की सेवा करने लगीं।

Mother Teresa

स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान रहा। जिन बिमारियों को लोग छुआछुत मानते और बीमार लोगों के पास नहीं जाते वैसे लोगों को मदर टेरेसा सेवा करतीं। उन्होंने सेवा के लिए कभी भी किसी भी लोगों में कोई भेदभाव नहीं किया। अपने सेवा कार्य को निरन्तरता से करते हुए 1970 तक वे बहुत प्रसिद्ध हो गई थीं। वह अपने कार्यों को लगातार बढा रहीं थीं। संसार भर के कई देशों में कई मुद्दों पर लोगों के सेवार्थ वह कार्य कर रहीं थीं। अपने अंतिम समय तक वे विश्व के 123 देशों के 610 मिशन नियंत्रित कर रही थीं। उनके द्वारा जरूरतमन्दों के सेवार्थ किए जा रहे कार्यों के अंतर्गत स्वास्थ्य , शिक्षा , जागरूकता , भूखमरी आदि प्रमुख थे। एड्स , कुष्ठ और तपेदिक बिमारी से ग्रसित लोगों के लिए धर्मशालाएँ , भूखे लोगों को खाना खिलाना , विद्यालय , अनाथालय आदि कार्य प्रमुख थे।

पुरस्कार और सम्मान

यूं तो मदर टेरेसा को विश्व भर में कई पुरस्कार दिए गए। भारत सरकार द्वारा 1962 में “पद्मश्री” और 25 जनवरी 1980 को भारत का सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” दिया गया। 1979 में मानव कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर देकर अमूल्य योगदान देने के लिए उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उन्हें अलग-अलग वर्षों में कई देशों ने सदस्यता प्रदान की। 9 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को “संत” की उपाधि से विभूषित किया।

मदर टेरेसा ने जिस तरह अपने सम्पूर्ण जीवन को बेसहारों , जरूरतमन्दों व गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया वह अन्य लोगों के लिए प्रेरणापुंज है। The Logically महान संत और समाजसेवी मदर टेरेसा जी को उनके जन्मदिवस पर उन्हें श्रद्धेय नमन करता है।