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Toilet on Wheels: पुरानी बसों को टॉयलेट में बदलकर महिलाओं को सुविधा देने का एक अनूठा प्रयास

आधुनिकीकरण के इस युग में विकास काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन अभी जमीनी स्तर पर महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है। भारत में घर से बाहर निकलने वाली हर महिलाओं को टॉयलेट की समस्या का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यहां पब्लिक एरिया में सार्वजनिक शौचालय (Public Toilet) की सुविधा नहीं के बराबर है। वहीं शहरों में जिन जगहों पर इसकी सुविधा उप्लब्ध हैं वहां साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है।

ऐसे में बाहर निकलने वाली महिलाओं को टॉयलेट की सुविधा नहीं मिलने की वजह से उन्हें पेशाब कंट्रोल करना पड़ता है, जिससे औरतों को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं देखने को मिलती है। महिलाओं की इस समस्या का समाधान करने के लिए एक दंपति आगे आए है और अपने द्वारा किए गए कार्यों से सभी को एक प्रेरणा दे रहे हैं| आइए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से-

बसों को कर रहें हैं पब्लिक टॉयलेट में तब्दील

ऐसे में एक ऐसे कपल हैं, जो औरतों के इस समस्या को हल करने में जुटे हैं। जी हां, पुणे (Pune) के रहनेवाले कपल उल्का सादलकर (Ulka Sadalkar) और राजीव खेर (Rajeev Kher) पुरानी बसों को पब्लिक वॉशरूम में तब्दील करने का सराहनीय कदम उठाया है। वर्ष 2006 से वे दोनों महिलाओं की इन समस्याओं का हल निकालने के लिए कार्य कर रहें हैं। इसके अलावा वे सैनेटरी उद्योग से भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में दंपति ने मिलकर “साराप्लास्ट प्राइवेट लिमिटेड” की स्थापना की। यह भारत में स्वच्छता सम्बंधी मुहीम चलाने का काम करती है।

सेन फ्रांसीस्को का मॉडल देख किया अपनाने का फैसला

इस काम की शुरुआत राजीव और उल्का ने वर्ष 2016 में की थी, जब देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा था। पुरानी बसों को टॉयलेट में तब्दील करने का आइडिया उस समय आया, जब उल्का ने साल 2010 में सेन फ्रांसिस्कों में इस मॉडल को देखा था। उसी समय उन्होंने भी इसे अपनाने का निर्णय लिया, ताकि महिलाओं की समस्याओं का निदान होने के साथ ही पुरानी बसों का भी इस्तेमाल किया जा सकें।

राजीव और उल्का बसों को बदल रहे टॉयलेट में

हालाँकि, दोनों अब बसों को टॉयलेट में बदलने का अच्छा कार्य कर रहें हैं, जिससे पुरानी बसें भी सुविधाघर में तब्दील हो गई हैं। जानकारी के अनुसार, इस बस में कई प्रकार की सुविधाएं दी गई हैं। इसमे जगह के अनुसार 3-4 वेस्टर्न और इंडियन टॉयलेट का निमार्ण किया गया है। इसके अलावा इन बसों में बच्चों को दूध पिलाने के लिए फीडिंग रूम और सैनेटरी पैड और पैकेज्ड फूड खरीदने की सुविधा भी दी गई है।

मराठी में रखा गया है बसों का नाम

बता दें कि इन बसों को एक कैफे की तरह बनाया गया है जहां पार्किंग फूड की सुविधा भी उप्लब्ध है। ऐसी सुधिआओं से लैस 13 बसों को शहर में चलाया गया है जिसमें कुल लागत 1.3 करोड़ रुपए का आया है। इन बसों का नाम मराठी भाषा मे “महिलासाठी स्वच्छतागृह” रखा गया है। इन बसों में सस्टेनेबिलिटी का भी ध्यान रखा जाता है।

सोलर पैनल से चलते हैं सभी उपकरण

महिलासाठी स्व्छ्तागृह नामक इन बसों में सोलर पैनल की व्यवस्था भी की गई है, जिसकी मदद से बसों में लगे बिजली के सभी उपकरण जैसे, गैजेट्स,वाई-फाई और मौजूद लाइट्स आदि चलते हैं। हालांकि, बारिश के मौसम में ग्रिड इलेक्ट्रिसिटि की आवश्यकता पड़ती है। बता दें कि साफ-सफाई का ध्यान रखने के लिए बसों में एक अटेंडेंट भी रखा गया है।

5 रुपये में उप्ल्ब्ध है यह शौचालय

इस काम के लिए राजीव और उल्का को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। आरंभ में लोगों को लगा था कि आधुनिक सुविधाओं से लैस इन बसों में फीस अधिक लगती होगी, लेकिन बता दें कि इनमें सिर्फ ₹5 ही लिए जाते हैं। इन बसों से 45 हजार रुपये की आमदनी भी होती है।

राजीव खेर (Rajeev Kher) और उल्का सादलकर (Ulka Sadalkar) द्वारा किया जा रहा यह प्रयास काफी सराहनीय है और यह प्रयास पूरे पुणे में मशहूर है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि उनका यह प्रोजेक्ट देशभर में स्वच्छ भारत अभियान की मिसाल पेश कर रहा है तथा साथ ही लोगों को भी इससे प्रेरणा दे रहा है।

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