देश में ऐसे कई बच्चे हैं जो अपने माँ-बाप या अपने परिवार से बिछड़ जाते हैं ! बिछड़ने के पश्चात् उन बच्चों की जिंदगी या तो खत्म हो जाती है या फिर उनकी जिंदगी मजबूरियों , लाचारियों और अन्य प्रकार के समस्याओं के आगोश में समा जाती है ! उनके लिए पुन: अपने परिवार से मिल पाना या घर लौटना असम्भव सा होता है ! ऐसे में एक शख्स जिनका नाम “मूर्ति” है अब तक 50 सालों में अपने निरन्तर प्रयासों से लगभग 48 हजार बच्चों को उनके परिवार से मिलवा चुके हैं ! अपने परिवार से पृथक हुए बच्चों को परिवार से मिलवाना मूर्ति द्वारा किया अद्भुत व अमूल्य कार्य है !
मूर्ति के सफर की शुरूआत
यह बात 1964 की है जब 10 वर्ष के मूर्ति को एक पुलिस इंस्पेक्टर ने खोए हुए बच्चों की घोषणा करने हेतु नियुक्त किया गया था ! दस साल की छोटी सी उम्र से हीं उनकी आवाज बेहद प्रभावकारी थी ! तब उन्होंने यह सोंचा भी नहीं होगा कि यह कार्य उनका जीवन उद्देश्य बनने जा रहा है ! खोए हुए बच्चों के बारे में घोषणा करने की उनकी आवाज इतनी असरकारक थी कि उस जिले के एक प्रशासनिक अफसर ने मूर्ति को 100 रूपये का बड़ा इनाम दिया ! साठ के दशक में 100 रूपए की राशि बहुत बड़ी राशि थी ! प्रभावकारी आवाज के कारण पुलिस विभाग मूर्ति को बड़े-बड़े धार्मिक अनुष्ठानों और कार्यक्रमों में बुलाना शुरू कर दिया ! इस तरह खोए बच्चों की घोषणा कर उनके माँ-बाप से उनको मिलन करवाने का उनका सफर शुरू हो गया !
अपनी नौकरी को बनाया जीवन का कर्तव्य
मूर्ति ने अपनी उद्घोषक वाली नौकरी को अपना जीवन कर्तव्य और जीवन उद्देश्य बना लिया ! वे अपनी नौकरी को नौकरी की तरह नहीं बल्कि अपना कार्य समझकर , समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निर्वहन समझकर करते रहे ! कर्तव्यपरायणता का अनुकरणीय उदाहरण पेश करते हुए अपने 50 साल से चले आ रहे सफर को इस कार्य से निरन्तर बेहतर आयाम प्रदान करते रहे !
कई भाषाओं में करते हैं धोषणा
मूर्ति समय के साथ-साथ खुद में कई भाषाओं की जानकारी का संचार किया और उन्होंने तमिल , अंग्रेजी , मराठी , गुजराती , कन्नड़ , तेलेगु व हिन्दी में घोषणा करना सीख लिया ! बहुभाषीय घोषणा करने की इस प्रतिभा के कारण उन्हें बड़े धार्मिक स्थानों पर बुलाया जाने लगा ! चूँकि बड़े धार्मिक स्थानों पर कई प्रदेशों के लोग आते हैं , भारत बहुभाषीय देश है तो हर जगह की भाषा में अंतर होता है , जिस प्रदेश का बच्चा गुम होता था मूर्ति उसी प्रदेश के भाषा में धोषणा शुरू कर देते जिससे बच्चा मिलने की संभावना बढ जाती थी ! मूर्ति कहते हैं “मेरे लिए वह क्षण बेहद संतोषप्रद होता है जब कोई खोया हुआ बच्चा अपने माँ-बाप से मिलता है” !
बिना किसी चीज की परवाह किए निभा रहे अपने कर्त्तव्य
उत्सवों में भीड़ होने के कारण उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है पर वे उन सभी समस्याओं के बिना परवाह किए वे खोए हुए बच्चों को उनके परिवार से मिलाने हेतु अपने कर्तव्य का निर्वहन करते रहते हैं ! कई बार उनको इस काम में अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ी ! खोए हुए बच्चों के अलावा मूर्ति खोए हुए सामानों को भी उसके मालिक तक पहुँचाने हेतु खूब कोशिश करते हैं साथ हीं वे अपनी कुशलता और व्यवहार से अबतक कई चोरों को सामान लौटाने हेतु प्रेरित भी तर चुके हैं !
“माइक मूर्ति” नाम से हैं प्रसिद्ध
मूर्ति तो इनका असली नाम है पर खोए हुए कई बच्चों को अपनी घोषणा के तौर-तरीकों से उन्हें उनके परिवार से मिलवाने की अजब कुशलता के कारण इन्हें “माइक मूर्ति” कहा जाने लगा ! वे अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हैं ! जब कभी कोई बड़ा आयोजन होता मूर्ति को अवश्य बुलाया जाता !
बछड़े हुए बच्चों को पुन: परिवार से मिलाने का जो अद्भुत कार्य मूर्ति कर रहे हैं वह लोगों के लिए प्रेरणा और अनुकरणीय है ! Logically माइक मूर्ति जी को सादर नमन करता है साथ हीं अपने सभी पाठकों और दर्शकों से अपील करता है कि अगर आपको भी कहीं कोई भटका या बिछड़ा बच्चा मिले तो उसे आप भी उसके परिवार से मिलवाने की हर संभव कोशिश करें !