जब भी कोई इंसान गरीब घर में पैदा होकर किसी बड़े मुकाम पर पहुंचता है तो घरवालों के साथ-साथ पूरे देशवासियों के लिए प्रेरणादायक होता है। आज हम एक ऐसे इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी कहानी प्रेरणादायक से कम नहीं है क्योंकि ये भी एक गरीब परिवार के रहने वाले थे लेकिन आज इन्होंने अपनी सोच और समझ से एक बहुत बड़ा बिजनेस खोल लिए हैं और साथ हीं कई लोगों को रोजगार देने का भी काम कर रहे हैं।
दरअसल हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु (Tamilnadu) में मदुरै (Madurai) के मेलाक्कल (Melakkal) गांव में रहने वाले एक स्कूल ड्रॉपआउट इंसान के बारे जिन्होंने केले के कचरे से करोड़ों की कमाई कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इनका नाम है मुरुगेशन (Murugeshan)। ये वही हैं जिन्होंने केले के कचरे से बैग, टोकरी आदि बनाकर न सिर्फ आत्मनिर्भर बने हैं, साथ हीं सैकड़ों लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है। हालांकि मुरुगेशन ने एक खास मशीन भी बनाई है, जिसकी मदद से केले के कचरे को रस्सी बनाया जा सकता है। जो इनके अच्छे सोच को प्रदर्शित करता है।
मुरुगेशन (Murugeshan) ने साबित कर दिया है कि अच्छे काम करने के लिए बड़ी शिक्षा एवं डिग्री की कोई जरूरत नहीं है। इन्होंने महज 8वीं वर्ग तक की शिक्षा हीं ग्रहण किया है। उन्हे अपने निजी कारणों से बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। हालांकि इसके बावजूद जिस तरह से उन्होंने केले के कचरे का इनोवेशन किया वो वास्तव में काफी प्रेरणादायक है। एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुरुगेशन ने एक गरीब किसान परिवार एक समय गरीब हुआ करते थे। उनके पिता ने उन्हें जैसे-तैसे उनके स्कूल भेजा। मगर, 8वीं के बाद उनके पिताजी के पास पर्याप्त पेसे नहीं थे जिससे कि वो मुमुरुगेसन की पढ़ाई जारी रख सकें।
मुरुगेशन(Murugeshan) छोटी उम्र से हीं अपने पिता के साथ खेतों पर काम करने के लिए मजबूर हो गए। साथ हीं मुरुगेशन ने खेती में कई तरह के प्रयोग किए थे। जिसमे उन्हें लगातार असफलताएं मिलती रही। मगर, उन्होंने हार नहीं मानी और निरंतर मेहनत करते रहे। इसी सिलसिले में साल 2008 में मुरुगेशन ने अपने परिवार के साथ मिलकर केले के पौधे के कचरे का उपयोग करने को लेकर शुरू कर दिए।
इसके बाद उन्होंने सबकी सहमति से तय किया कि वो केले के कचरे का उपयोग करेंगे। हालांकि इससे पहले कई लोग पहले से ही केले के धागे का इस्तेमाल माला में फूलों को पिरोने के लिए कर रहे थे। लेकिन मुरुगेशन कुछ नया प्रयोग करना चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने नारियल की भूसी से रस्सियां बनाने के लिए यूज होने वाली मशीन में केले का कचरा डाला। उन्हें उम्मीद थी कि ऐसा करने से उन्हें केले की रस्सी मिल जाएगी।
दुर्भाग्य से कह सकते हैं कि उनकी यह सोच सफल नहीं हुई। इसी तरह आगे ऐसे कई प्रयासों के बाद 2017 में मुरुगेसन ने साइकिल पहिया, रिम्स और पुलीज का उपयोग करके केले के कचरे की कताई के लिए अपनी खुद की एक मशीन तैयार कर लिए। इस मशीन को बन जाने के बाद जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद से संपर्क किए। उन्होंने संस्थान से मदद मांगी और उन्हें मशीन देखने के लिए बुलाया गया।
इसके बाद संस्थान के उच्च स्तर के अधिकारियों ने अपने दौरे में मुरुगेशन (Murugeshan) की मशीन की खूब तारीफ की और उसे अत्यंत उपयोगी बताया।इसके बाद इन्होंने अधिकारियों के तारीफ से प्रेरित होकर अपनी मशीन को बेहतर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपए का और निवेश किया और उस अपने नाम पेटेंट करा लिया। इस प्रकार मुरुगेशन अब न सिर्फ आत्मनिर्भर हैं, बल्कि 300 से अधिक लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि उनके साथ काम करने वाली अधिकतर महिलाएं हैं।
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अगर हम अभी मुरुगेशन(Murugeshan) की कमाई की बात करें तो उनके एमएस रोप्स प्रोडक्शन सेंटर का सालाना टर्नओवर करीब 1.5 करोड़ रुपए है। इसके अलावा उनकी कंपनी कई अलग-अलग पुरस्कार अपने नाम कर चुकी है। नाम भी क्यों न करें जब कोई इंसान इतने शिद्धत से किसी मशीन को तैयार कर खुद रोजगार पैदा कर दिया है। इस दौर में ये काम किसी महान कामों से कम भाई है।
मुरुगेशन का जीवन (Life of Murugeshan) हम सब के लिए सैकड़ों सिख देता है और शिक्षा को लेकर एक अलग संदेश देता है। साथ हीं इनका जीवन दर्शाता है कि सफलता थोड़ी मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं।