बिहार के कई इलाके इन दिनों बाढ़ के कारण जलमग्न हैं। जानमाल की हानि के साथ आम जनजीवन भी अस्त-व्यस्त हो गया है। इन परेशानियों के बीच में भी लोग लीक से हटकर काम करते हुए जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिशों में जुटे हैं। कटिहार के मणिहारी इलाके के तीन युवा बाढ़ के बीच ‘नाव की पाठशाला’ चलाकर बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। Naav ki paathshala
हर साल इस इलाके में आती है बाढ़
मारालैंड बस्ती जो भौगोलिक रुप से गंगा की बेसिन में स्थित है। हर साल यहां बाढ़ (Bihar flood) है तो पूरी की पूरी बस्ती डूब जाती है। यहां के लोग बांध शरण में चले जाते हैं। इस दौरान इलाके में पढ़ाई लिखाई पूरी तरीके से ठप हो जाती है। क्योंकि सरकारी से लेकर निजी विद्यालय और कोचिंग तक पानी में डूब जाते हैं।
लोगों ने एडजस्ट करना सीख लिया, बच्चे भी हैं निपुण
इस इलाके में लगभग सभी परिवारों के पास बड़े नाव हैं और बाढ़ प्रभावित होने की वजह से हर उम्र के लोग बाढ़ के साथ खुद को एडजस्ट कर चुके हैं। यहां के छोटे-छोटे बच्चे भी नाव चलाना और तैरना जानते हैं। इसलिए नाव में लगने वाली खतरनाक पाठशाला से किसी को डर नहीं लगता है।
ये दृश्य बिहार के कटिहार ज़िले के मनिहारी प्रखंड का हैं जहां निशुल्क कोचिंग देने वाले शिक्षक आजकल नाव पर पढ़ा रहे हैं @ndtvindia @Anurag_Dwary pic.twitter.com/cjYO5ID24G
— manish (@manishndtv) September 5, 2021
तीन युवाओं ने मिलकर निकाली “नाव की पाठशाला” तरकीब
तीनों शिक्षकों कुंदन, पंकज और रविंद्र कुमार मंडल ने अलग-अलग विषय में बीए पास किया है। पिछले 3 महीने से यहां के बच्चे पढ़ने के लिए नाव में सवार होकर गंगा की धारा में चले जाते हैं और बांध के दूसरी तरफ नाव को किनारे लगा कर वहीं पढ़ाई शुरू हो जाती है नियमित स्कूल की तरह यहां पंकज, कुंदन और रविंद्र बच्चों को पढ़ाते हैं और उनका टेस्ट भी लेते हैं।
Bihar: Three youth in Katihar’s Manihari area teach students on boat ‘Naav ki Pathshala’ amid flood in the area
— ANI (@ANI) September 6, 2021
“There is flood-like situation for 6 months here. We have no other option but to teach local students on the boat,” says Pankaj Kumar Shah, a teacher pic.twitter.com/IIShbzAFxG
तीनों युवाओं का कहना है कि उन्होंने भी ऐसी परिस्थिति का सामना किया है। पढ़ाई लिखाई में जो परेशानी उन्हें हुई है उसे वे खुद महसूस करते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि इलाके के दूसरे बच्चे संसाधन के अभाव में पढ़ाई लिखाई से वंचित नहीं हों। नाव इस इलाके की लाइफ-लाइन है। इसलिए नाव पर उन्हें कोई खतरा महसूस नहीं होता। बच्चे भी नाव पर पढ़ने में काफी कंफर्टेबल हैं। नाव में पढ़ते हुए उन्हें कभी डर नहीं लगता है क्योंकि उन्हें नाव की आदत लग चुकी है। गांव के सभी पढ़ने वाले बच्चे जमा होते हैं वहीं शिक्षक पहुंचते हैं फिर एक साथ कई नाव लेकर सभी भीड़ से दूर कहीं छांव में निकल जाते हैं और वही पढ़ाई होती है।