अंग्रेजी में एक कहावत है- Take your broken Heart and make it into Art: Meryl Streep
चंद लोग ऐसे होते हैं जो अपने तकलीफ से गुज़रने के बाद दूसरों के तकलीफ को दूर करने में अपनी ज़िंदगी लगा देता है. बिल्कुल ऊपर लिखे गए वाक्य की तरह. अपने भांजे के कैंसर को झेलना. उसे कैंसर जैसी बीमारी में खो देना. वो एक ऐसा लड़का था जिसने कभी कोई नशा नहीं किया और न उसे स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या ही थी अपने जीवन में.
लेकिन इतना कुछ झेलने के बाद भी दूसरों के तकलीफ को दूर करने में अपने टूटे दिल को लगा देना कोई मामूली बात नही होती. ये सब झेलने के बाद उस व्यक्ति पर क्या गुज़री होगी ये सिर्फ वही जानता है जो इस भयावह हादसे से गुजरा हो.
दुख के पहाड़ का टूटना
मुजफ्फरपुर(Muzaffarpur) के नाज़ ओजैर (Naaz Ozair)ने तकरीबन पांच साल पहले अपने भांजे को कैंसर से खो दिया था. इस घटना से अत्यंत दुखी नाज़ इसका कारण ढूंढने में लगे थे. हैरानी की बात है कि उनका भांजा न ही कोई नशा करता था और न ही स्वास्थ्य से जुड़ी कोई दिक्कत थी.
प्लास्टिक में कैंसर होने की बात
नाज़ ओज़ैर(Naaz Ozair) नाम के एक व्यक्ति के जीवन आया यह तूफान उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था. वो इस उधेड़बुन में लगे थे कि आखिर कैंसर हुआ कैसे?
उधर डॉक्टरों से इस बात की मालूमात होते कि प्लास्टिक के अंदर कैंसर के छोटे-छोटे कण पाए जाते हैं, इस बात को जानकर वो इस ओर अत्यंत गंभीर और संवेदनशील हो गए.. इस बात को जानने के बाद कई सालों से नाज़ इस खतरनाक प्लास्टिक का विकल्प खोजने में जुटे हैं. (Naaz ozair from muzaffarpur innovates eco friendly products)
शोध कार्य को कैंसर के खिलाफ प्रयोग करना
भांजे की मृत्यु ने उन्हें इस तरह काम करने को मजबूर कर दिया. उनके शोध कार्य ने एक नया मोड़ ले लिया. उन्होंने प्लास्टिक के छोटे-छोटे और हर रोज़ उपयोग किए जाने वाले प्रोडक्ट को प्राकृतिक चीज़ों से बदलने का फैसला कर लिया.
M. Tech की पढ़ाई और मकई के दाने में संभावना दिखाई देना(Naaz Ozair innovation)
बात उन दिनों की है जब उनकी M. Tech. की पढ़ाई हो चुकी थी और वो अब इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा रहे थे. उसके बाद भी वह बांस और पपीते के पेड़ से कुछ प्रोजेक्ट बनाने की कोशिश में लगे थे. लेकिन उन्हें इस कार्य में सफलता नहीं मिल पा रही थी. तभी एक बार उन्होंने देखा कि मकई के खेत में दाने निकलने के बाद भी उनके छिलके लम्बे समय तक ख़राब नहीं हुए थे. नाज़ कहते हैं, “मुझे उस दिन लगा कि प्रकृति हमें चीख-चीखकर कह रही है कि मेरा इस्तेमाल करो.” बस उन्होंने कुछ पत्तों से रिसर्च करना शुरू कर दिया.
Research को ज्यादा समय देने के लिए स्कूल की नौकरी शुरू कर दी(Naaz ozair research time)
उनके पिता प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं. नाज़ भी कॉलेज की नौकरी छोड़कर पांच सालों से स्कूल में ही पढ़ा रहे हैं, ताकि ज्यादा समय अपने रिसर्च पर दे सकें.
बना डाली कई Product
दुनिया के लिए सोचने वाले एक ही चीज़ पर कहाँ रुकते हैं. कहाँ तो अभी एक चीज़ का भी विकल्प नही सूझ रहा था और अब वो कई चीज़े बनाने में लगे हैं. मकई के छिलके से एक प्रोडक्ट बनाने के बाद, उन्हें विश्वास हो गया कि इससे वह कई और चीजें बना सकते हैं.धीरे-धीरे वह कप, प्लेट, बैनर, बैग्स जैसे प्रोडक्ट्स बनाने लगे.
आज उनके पास मकई के छिलके से बने 10 प्रोडक्ट्स मौजूद हैं. उन्होंने कई सरकारी अधिकारियों को अपने प्रोडक्ट्स दिखाए हैं. आस-पास के कई लोगों से उन्हें धीरे-धीरे कुछ ऑर्डर भी मिलने लगे हैं. नाज़ ने अपने इस आविष्कार का पेटेंट भी करवाया है.
वैज्ञानिकों ने किया तारीफ
कहते हैं ना कि मेहनत और कभी लगन बेकार नही जाती. उनके काम की गूंज वैज्ञानिकों तक पहुंची. उन्होंने बताया कि ‘डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर’ से वैज्ञानिकों की एक टीम ने उनके प्रोडक्ट को काफी सराहा और इस शोध को आगे बढ़ाने को भी कहा. नाज़ भी ऐसा ही करना चाहते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में अपनी रिसर्च को आगे नहीं बढ़ा पा रहे. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें सरकारी मदद मिलेगी और वह और अच्छा काम कर पाएंगे.
इको-फ्रेंडली (Eco Friendly) प्रोडक्ट्स (Products) की तरफ रुख
नाज़, आने वाले दिनों में इससे और कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाने पर भी काम कर रहे हैं. इन इको-फ्रेंडली (Eco Friendly) प्रोडक्ट्स (Products) को बनाने के लिए कच्चा माल (Raw Material) भी उन्हें आसानी से मिल जाता है.
इसके अलावा वो इस तरफ भी ध्यान ले जाते हैं कि साल में तीन बार मक्के की खेती की जाती है. ऐसे में अगर सरकार द्वारा उन्हें इस काम के लिए सहयोग मिल गया तो उनका मानना है कि इससे किसानों को अपनी आय बढ़ाने का भी मौका मिलेगा.
The Logically, उनके इस मानवीय कार्य के आगे नतमस्तक है.