कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है। लेकिन परंपरागत कृषि से अधिक लाभ प्राप्त नहीं होने की स्थिति में लोगों को लगता है कि कृषि फायदे का सौदा नहीं है। हालांकि, यदि किसान परंपरागत कृषि से हटकर कुछ अलग फसलों की खेती करें तो लाभ अर्जित कर सकते हैं।
इसका ताजा उदाहरण हैं किसान नरेंद्र कुमार गरवा (Narendra Kumar Garwa), जो मोती की खेती (Pearl Farming) से लाभ कमाने के साथ ही सफलता की नई इबारत लिख रहें हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि कृषि का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है तथा साथ ही इससे मुनाफा भी बहुत है। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं उनके बारें में विस्तार से-
नरेंद्र कुमार गरवा (Narendra kumar Garwa) राजस्थान के रहने वाले हैं और स्नातक तक की पढ़ाई की है। उनके पिता की एक किताब की दुकान है जहां वह पिता के काम में हाथ बटाते हैं। इसके साथ ही वह मोती की खेती करने के सपने को भी पूरा कर रहे हैं।
न्यूज चैनल योरस्टोरी से बातचीत कर दौरान वह बताते हैं कि, खेती करना उनका शौक है, ऐसे में वह दूकान की काम से फुर्सत निकालकर यूट्यूब पर इसके लिए वीडियो देखते हैं। लेकिन अपनी जमीन नहीं होने के वजह से उन्हें लगता था कि खेती करने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। तभी एक शख्स के द्वारा उन्हें एक यूट्यूब वीडियों के बारें में पता चला, जिसे उन्होंने देखा तो पाया कि हर फसल की खेती करने के लिए जमीन का होना जरुरी नहीं है। कुछ फसलों की खेती बिना जमीन के भी की जा सकती है, मोती की खेती (Pearl Farming) इसका एक सटीक उदाहरण है। उस वीडियों से प्रेरणा लेकर उन्होंने मोती की खेती करने का फैसला लिया।
मोती को कृत्रिम तरीके से भी उगाया जा सकता है लेकिन सभी को इसके बारें में जानकारी नहीं होती है। नरेंद्र को भी इस बारें में जानकारी नहीं थी, ऐसे में उन्होंने इसके बारें में विस्तारपूर्वक जानने के लिए मोती की खेती का वीडियों देखना शुरु किया। साथ ही अब वह इसकी खेती से जुड़े सभी बातों को सही तरीके से समझने के लिए अधिक वक्त देने लगे। क्योंकि उनके पास दृढ इच्छाशक्ति, कुछ कर गुजरने का जुनून और घर में जगह भी थी, लेकिन सभी कुछ होते हुए भी इन्सान बिना मार्गदर्शन के कुछ नहीं कर सकता है। उनके पास भी मार्गदर्शन की कमी थी।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्युट ऑफ़ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर संस्थान (CIFA) के वैज्ञानिकों के मुताबिक अच्छी गुणवात्ता वाली मोती का खेती किया जा सकता है। नरेंद्र को इस संस्थान के बारे में जानकारी मिली तो पर्ल फार्मिंग के बारें में और अधिक जानने और समझने के लिए उन्होंने वर्ष 2017 में इस संस्थान में 5 दिनों का फ्रेशवॉटर पर्ल फार्मिंग ऑन एंटरप्रेन्योर डवलपमेंट का कोर्स किया।
आमतौर पर मोती कई आकृतियों और आकार के होते हैं। नरेंद्र भी डिजाइनर और गोल दोनों प्रकार की मोती का उत्पादन करते हैं। इन मोतियों का अच्छे से विकास एक से डेढ़ वर्ष में होता है। कई बार लोगों को लगता है कि इसकी खेती के लिए किसी बड़े क्षेत्र और अधिक रुपयों की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन नरेंद्र ने बहुत ही कम देखभाल और महज 40 हजार रुपये का निवेश करके सिर्फ 10×10 फीट के क्षेत्र में पर्ल फार्मिंग से 4 लाख रुपए का मुनाफा कमाते हैं। ऐसे में आप भी मोती की खेती के बारें में जानकारी प्राप्त करके आप भी इसकी खेती से अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं।
मोती की खेती कैसे करें
नरेंद्र ने इसकी खेती के लिए कंक्रीट के 5 फीट गहरे कृत्रिम तालाब का निर्माण किया है। जिस प्रकार अन्य खेती करने के लिए कुछ मशीनों और खाद-बीज की आवश्यकता होती है, जिसे किसान भाई अपनी आवश्यकता के अनुसार बाजार से खरीदते हैं। नरेंद्र ने भी खेती में इस्तेमाल होनेवाले कुछ मशीनें (सर्जरी के सामान, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, दवाइयां, माउथ ओपन और पॉलिन्यूक्लियर्स आदी) खरीदी। इसके साथ ही खेती में मददगार शैवाल को भोजन की जरुरत होती है, ऐसे में उन्होंने गोबर, यूरिया, सुपरफॉस्फेट और मसल्स से उसके लिए खाना तैयार किया।
इसकी खेती के लिए जब मसल्स को तालाब में डाला जाता है तो डालने से पहले उसे 15 घंटे तक ताजे पानी में रखा जाता है। उसके बाद जब उसका मृत्यु दर को कम करने या तय करने के लिए 15 दिनों तक खाना दिया जाता है। इससे उनकी जरूरतों के बारे में पता चलता है, जिसके बाद उसमें पर्ल न्युक्लियस डालने की प्रक्रिया को आरंभ किया जाता है।
नरेंद्र के अनुसार, सभी मसल्स के अंदर पर्ल न्युक्लियस को बहुत ही सावधानीपूर्वक डालकर पानी में डुबाया जाता है। इस प्रक्रिया को 15 से 30 डिग्री सेल्सियस पर किया जाता है। मसल्स के लिए शैवाल को उसके भोजन के तौर पर जोड़ा जाता है।
इस प्रक्रिया के एक वर्ष बाद न्युक्लियस, एक मोती थैली देता है जिसमें मोती के गोले से कैल्शियम कार्बोनेट इकट्ठा हो सके। इस थैले को नाभिक अनेकों परतों से कवर करने में मदद करता, जो आगे चलकर एक बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण मोती का निर्माण करता है।
मोती की खेती (Pearl Farming)के लिए जिस कृत्रिम तालाब का इस्तेमाल किया जाता है उसे अधिक देखरेख या उसमें अधिक पैसे खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है। जरुरत होती है तो बस मसल्स का सेहत, तालाब का जल स्तर और शैवाल की उपस्थिति को सुनिश्चित करने की।
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पर्ल फार्मिंग करने के दौरान धैर्य रखना जरुरी है
नरेंद्र कहते हैं कि मसल्स की मृत्यु दर से बचने के लिए जरुरी है कि PH लेवल 7 से 8 के बीच रहे, क्योंकि यदि अमोनिया जीरो नहीं रहने पर 50% पानी को बदलना पड़ेगा या पीएच के स्तर को बढ़ाने के लिए उसमें चूना को मिलाना पड़ता है। किसी ने सही कहा है सब्र का फल मीठा होता है, ऐसे में अच्छे उत्पादन के लिए अपना धैर्य बनाएं रखें।
जब मोती का उत्पादन हो जाता है तो उसकी गुणवत्ता को जांचने के लिए नरेंद्र प्रयोगशाला भेजते हैं। उत्तम मोती की कीमत 200 से 1 हजार रूपए तक है। हालांकि, वर्तमान समय में उन्होंने उत्पादन में कुछ सुधार करके करीब 3 हजार मोती की पैदावार कर लेते हैं। वहीं मसल्स की मृत्यु दर में भी गिरावट है जो पहले 70% था और अब घटकर 30% रह गया है।
दूसरों को भी देते हैं मोती की खेती का प्रशिक्षण
किसी भी काम को करने के लिए उसके बारें में प्रशिक्षित होना जरुरी है। नरेंद्र भी प्रशिक्षण का मह्त्व बहुत ही अच्छे तरीके से समझते हैं। यही कारण है कि वे वैसे लोगों के लिए मोती की खेती पर क्लास का संचालन कर रहे हैं, जो इसकी खेती करना चाहते हैं या जो इसके शौकीन हैं। उनकी क्लास में हर आयुवर्ग के तकरीबन 100 भी ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है।
गाँव में चलाते हैं NGO
नरेंद्र (Narendra Kumar Garwa) ने बताया कि, जब वे इस काम को करने के लिए आगे बढ़े तो उनके परिवार के सदस्यों ने उनकी हंसी उड़ाई और कहा कि घर में मोती का उत्पादन करना सम्भव नहीं है। घरवालों ने हतोत्साहित करने के बाद भी वह आगे बढ़ते रहे और लोगों को भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रमाण पत्र के साथ दो दिनों की कक्षाएं शुरु की। वह अपने गांव में Alkha Foundation नामक एक NGO का संचालन करते हैं, जो उनके लिए अतिरिक्त लाभ कमाने का एक साधन बन गया है।
मोती की खेती से मिलती है सुरक्षित आजीविका
नरेंद्र कहते हैं कि, मोती की खेती में कम लागत के साथ मोटी कमाई की जा सकती है। चूँकि भारत मोती का आयात करने में प्रति वर्ष अरबों रुपये खर्च करता है। ऐसे में यदि किसान भाई इसकी खेती करते हैं तो इससे एक सुरक्षित आजीविका मिलती है और अन्य किसी भी प्रकार की टेंशन भी नहीं रहती है।
अगले वर्ष तक दोगुना उत्पादन होने की है उम्मीद
कोरोना पैंडमीक में नरेंद्र के किताब की दुकान पर ग्राहकों की कमी आई है। वहीं मोती की खेती (Pearl Farming) घर पर ही करने के कारण वह इस काम में अपना अधिक योगदान दे रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना महामारी में जो समय मिला उसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया, जिससे आने वाले वर्षों में वे मोती की उत्पादन को दोगुना करने की उम्मीद जताई है।