एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है.कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है जीवन का मतलब तो, आना और जाना है दो पल के जीवन से, इक उम्र चुरानी है.तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूं तू मेरा सहारा है, मैं तेरा सहारा हूं आंखों में समंदर है, आशाओं का पानी है.
1972 में आई फिल्म शोर के इस गीत को हम आज भी नहीं भूले हैं। रैप पसंद करने वाले लोग भी अकेले में इस गाने को भाव विभोर होकर सुनते हैं लेकिन बॉलीवुड इसके गीतकार संतोष आनंद को शायद भूल गया है।
फिल्म “पूरब और पश्चिम” से की करियर की शुरुआत
मशहूर कवि और फिल्मी गीतों के लेखक संतोष आनंद का जन्म 5 मार्च 1940 को बुलंदशहर के सिकंदराबाद में हुआ था। इन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1970 में “पूरब और पश्चिम” से की थी। फिल्म का मशहूर गाना ‘पुरवा सुहानी आई रे’ उन्होंने ही लिखा था। दो वर्ष बाद 1972 में आई फिल्म ‘शोर’ के लिए इन्होंने अब तक के सबसे बेहतरीन गीतों में शामिल “एक प्यार का नगमा” लिखा था।
“एक प्यार का नगमा” संतोष आनंद जी का सबसे पसंदीदा गीत
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत से सजे इस गीत को लता मंगेशकर व मुकेश ने अपनी आवाज़ दी थी। संतोष आनंद जी का यह सबसे पसंदीदा गीत है। फ़िल्म में गीत की कुछ पंक्तियां शामिल नहीं की गईं थीं लेकिन वे भी काफ़ी असरदार और संतोष जी के दिल के बेहद क़रीब हैं। वह आज भी उन्हें गुनगुनाते हैं।
‘तुम साथ न दो मेरा, चलना मुझे आता है हर आग से वाक़िफ़ हूं जलना मुझे आता है तक़दीर के हाथों से एक उम्र चुरानी है ज़िंदगी और कुछ नहीं, तेरी मेरी कहानी है”जो बीत गया है वो अब दौर न आएगा इस दिल में सिवा तेर कोई और न आएगा घर फूंक दिया हमने, अब राख उठानी है ज़िंदगी और कुछ नहीं, तेरी मेरी कहानी है’
वर्ष 1974 में पहला फिल्म फेयर अवार्ड
वर्ष 1974 में संतोष आनंद ने फिल्म रोटी, कपडा और मकान के लिए कई गीत लिखें। फिल्म के एक गीत ‘मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी.. इन इन रस्मों को, इन कसमों को.. इन रिश्ते नातों को..’ के लिए इन्हें अपने करियर का पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला। इसे संगीत दिया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने तथा इसके गायक थे मुकेश कुमार और लता मंगेशकर।
ज़िन्दगी की ना टूटे लड़ी (फिल्म- क्रांति)
वर्ष 1981 में रिलीज हुई फिल्म क्रांति के लिए भी संतोष आनंद जी ने गीत लिखे थे। यह फिल्म उस वर्ष की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। ‘ज़िन्दगी की ना टूटे लड़ी.. प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी..’ को लोग आज भी सुनना पसंद करते हैं। इसी साल इन्होंने फिल्म प्यासा सावन के लिए ‘मेघा रे मेघा रे.. मत परदेस जा रे.. आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे’ लिखा था।
प्रेम रोग के गाने ने दिलाया दूसरा फिल्म फेयर अवार्ड
वर्ष 1982 में राज कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म प्रेम रोग को भी इन्होंने अपने गीतों से सजाया। ‘ये गलियां ये चौबारा, यहां आना न दोबारा.. अब हम तो भए परदेसी, के तेरा यहां कोई नहीं..’ इस गाने पर आज भी लड़कियां थिरकती नज़र आती हैं। इसी फिल्म का दूसरा गाना ‘मुहब्बत है, क्या चीज़, हमको बताओ.. ये किसने शुरू की, हमें भी सुनाओ..’ के लिए इन्हें फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
नशा होता है कैसा, बहकते हैं क़दम कैसे नज़र कुछ भी नहीं आता, ये मस्ती कैसी होती है एक दिन गुज़रे जो हम, मयकदे के मोड़ से एक मयकश जा रहा था, मय से रिश्ता जोड़ के हमने पूछा किसलिये तू, उम्र भर पीता रहा कुछ न बोला, अपनी धुन में बस यही गाता रहा मोहब्बत है क्या चीज़…
26 फिल्मों में 109 गाने लिखें
संतोष आनंद 1995 तक फिल्मी दुनिया में गाने लिखते रहें। इन्होंने भारतीय फिल्म जगत को एक से बढ़कर एक भावुक कर देने वाले और बढ़िया गीत दिए हैं। कुल 26 फिल्मों में 109 गाने लिखें हैं। इन्होंने अपने अप्रतिम गीतों से हमें प्यार का मतलब बताया है।
कविता एक तपस्या है, संवेदना का एहसास है
संतोष आनंद का मानना है कि कविता एक तपस्या है जो जीवन के दर्शन से आती है। रचनाकार अपनी जिंदगी को मथें। जितना मंथन करेंगे उसमें से उतना अच्छा मक्खन निकल कर आएगा। कविता का आधार संवेदनशीलता है। संवेदना का एहसास कविता नहीं करा पाए तो फिर वह कविता नहीं रहती।
पुरस्कार व सम्मान
• 1974 में आई फिल्म रोटी कपड़ा और मकान के गीत- मैं न भूलूंगा के लिए फिल्म फेयर अवार्ड
• 1983 में आई प्रेमरोग फिल्म के गीत- मुहब्बत है, क्या चीज के लिए फिल्म फेयर अवार्ड
• 2016 में यश भारती
इंडियन आइडल 12 में नज़र आएं लिरिसिस्ट संतोष आनंद
हाल हीं में इंडियन आइडल 12 मंच पर संतोष आनंद प्यारेलाल के साथ नजर आएं। 81 वर्षीय संतोष जी ने उम्र के इस पड़ाव पर अपने संघर्ष साझा किए। गुजरे जमाने में एक से बढ़कर एक गीत देने वाले गीतकार संतोष आनंद के पास कोई काम नहीं है और आर्थिक तंगी से जूझ रहें हैं। वे शारीरिक रूप से लाचार हैं। ह्वील चेयर पर बैठे हैं, उनका शरीर साथ नहीं दे रहा, लेकिन आत्मविश्वास और हौसला बुलंद है।
संतोष आनंद ने शो में कहा, “सालों बाद मुंबई में आया हूं। अच्छा लग रहा है। रात-रात भर जागकर मैंने गीत लिखे। मैंने गीत नहीं लिखे बल्कि अपने खून से कलेजे से लिखे हैं। आज मुझे ऐसा लगता है कि मेरे लिए तो दिन भी रात हो गया है।”
भावुक होकर नेहा कक्कड़ ने 5 लाख रुपये भेंट स्वरूप देने की बात कही। संतोष जी के मना करने पर नेहा ने कहा, ये समझकर रख लीजिए कि आपकी पोती की तरफ से हैं। इसके अलावा विशाल ददलानी ने भी संतोष आनंद से उनके लिखे गीत मांगे और उन्हें रिलीज करने की बात कही।