हमारे देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। यहां पढ़े-लिखे युवा भी रोजगार की तलाश में इर्द-गिर्द भटकते नजर आते हैं। आज के समय में कुछ युवा परीक्षा देकर उसके परिणाम का इंतजार कर रहे है, तो कई परीक्षा पास कर नौकरी का। सभी लोग अलग-अलग तरीके से अपनी आवाज़ उठा रहे है।
बीते 17 सितंबर को हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन था। पूरे देश में लोगों ने अलग-अलग तरीके से अपनी उत्सुकता जाहिर की। वहीं देश के युवाओं ने इस दिन को राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मनाया। उस दिन बहुत सारे युवा थाली चम्मच लेकर सड़क पर उतर आए। इलाहाबाद में युवाओं ने थाली पीटते हुए जुलूस भी निकाले।
बेरोजगारी के आलम में थरिया पीटत बानी…
बिहार से बेरोजगार बोलत बानी.#बेरोजगारी_दिवस #nehasinghrathore #dharohar pic.twitter.com/jdOle2kVNv— Neha Singh Rathore (@NehaFolksinger) September 17, 2020
आज कल सोशल मीडिया पर एक वीडियो सुर्खियों में है जिसे एक लड़की ने अपनी आवाज़ में गाकर ट्विटर पर शेयर किया है – “रोज़गार देब कि करब ड्रामा, कुर्सिया तहारा बाप के ना ह” इस गाने को बिहार की रहने वाली नेहा सिंह राठौर ने भोजपुरी में अपने बेख़ौफ़ अंदाज़ में बहुत ही मीठे स्वर में गाया है।
रोजगार देबा कि करबा ड्रामा
कुर्सिया तोहरे बाप के ना है…#बेरोजगार_दिवस pic.twitter.com/QHUYGTFCzP— Neha Singh Rathore (@NehaFolksinger) September 17, 2020
साथ ही नेहा ने बेरोजगारी के मुद्दे पर और भी 3 गाना गाया है। सभी गाने को देश के आम नागरिक के साथ कई फिल्मी सितारों ने भी ख़ूब सराहा है।
देत कंपटीशन साहेब झर गइले बार जी…#बेरोजगारी_गीत#Unemployment_Day pic.twitter.com/3sey1CqMOv
— Neha Singh Rathore (@NehaFolksinger) September 17, 2020
कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में ही जब शहर से मजदूरों का अपने गांव की ओर पलायन होने लगा था तब भी नेहा राठौर ने अपनी आवाज़ में गीतों के माध्यम से मजदूरों के दर्द को बयां किया था। उस गीत को अबतक लाखों लोग सुन चुके है। नेहा का यह प्रयास अभी भी जारी है। वह यूट्यूब और फेसबुक के माध्यम से आम जनता तक अपना संदेश पहुंचाती हैं।
नेहा मजदूरों के दर्द समझने के साथ-साथ बेसहारा महिलाओं के दर्द की भी आवाज़ बनती है। वैसी महिलाएं जो पुरुषों की भीड़ में सड़क पर बच्चे जनती, दिहाड़ी मजदूरी करती, एक स्त्री होते हुए स्त्री और पुरुष दोनों की ही जिम्मेदारियां उठाती हैं। उन महिलाओं के पीड़ा को अपने आवाज़ के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया।
शहर से गांवों की तरफ पलायन करने वाले मजदूरों के दर्द को अपने कविता के माध्यम से बयां किया है –
मजूर कबिता
ऊ ठेहुना ना टेकलें
ना झुकलें बदहाली के आगे
मरज़ाद के पूंजी कांख में दबाइके
निकल पड़लें छोड़ ई महादेश के भटूरा नगरी
महानगरन के ई किसान
सड़की के थरिया बनाके
खइलें दाल-भात-सतुआ-पिसान
सुति गइलें उहे थरिये में
जगले, औरि चल पड़िले थरियवे में
केहू पहुंचले ठेकाना ले
केहू थरिये के भेंट चढ़ि गइलें
कहरत, बकबकात मुर्छाइल कहे
परदेस आपन ना ह
देसौ आपन ना ह.
The Logically, Neha Singh Rathaur को बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे पर बेख़ौफ़ आवाज़ उठाने के लिए आभार प्रकट करता है। उम्मीद है कि नेहा की आवाज़ आम जनता के साथ सरकार तक भी पहुंचेगी और सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम जरूर उठाएगी।