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श्रीराम को नेपाली बताने वाले प्रधानमंत्री ओली आखिर चाहते क्या हैं?

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत जियो और जीने दो वाले सिद्धांत पर विश्वास रखता है जिसमें कि संसार को एक कुटुंब की भांति मानकर सभी के हितों का ध्यान रखते हुए स्वतंत्रता एवं सहिष्णुता के साथ जीने का मार्ग प्रदर्शित करता है।

समय-समय पर हमने देखा है कि हमारे इन सिद्धांतों पर कुछ ताकतों ने चोट करने की कोशिश की है। आक्रमणकारियों के समय-समय पर अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं परंतु उनका लक्ष्य सदैव हमारी विचारधाराओं को नष्ट करना ही रहा है। विषम परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद भारतीय संस्कृति की अविरल धारा अनवरत रूप से प्रवाहित होती रही है। भारत और नेपाल हजारों सालों से सांस्कृतिक धार्मिक आर्थिक रूप से एकजुट होकर रहते आए हैं। यहां रहने वाले लोग बिना किसी भेदभाव के मिलजुल कर रहते हैं। जैसे कि भारत के रक्षा मंत्री का रोटी और बेटी वाला वक्तव्य भारत और नेपाल के रिश्तो की मजबूती को दर्शाती है। धार्मिक ग्रंथों के साक्ष्यों के आधार पर भी इन दो देशों के मध्य रिश्तो की मजबूती स्पष्ट दिखाई देती है।

फ़ोटो साभार : thewire.in

हाल के दिनों में नेपाली प्रधानमंत्री श्री केपी शर्मा ओली द्वारा दिए गए भारत विरोधी वक्तव्य ने आम जनमानस के मध्य अविश्वास पैदा कर दिया है। जैसे कि दोनों देशों के मध्य मौजूद विवादास्पद मुद्दों का वैश्वीकरण करना, अचानक से भारतीय चैनलों पर प्रतिबंध लगाना एवं भगवान राम जो कि नेपाल में भी उसी प्रकार पूजनीय हैं जिस प्रकार भारत में हैं, उनके जन्म स्थान के साथ छेड़छाड़ करना शामिल है।
नेपाल के प्रधानमंत्री को यह अधिकार आखिर कौन देता है कि वह नेपाली जनता एवं भारतीय जनता की धार्मिक भावनाओं को आहत करें। विशेष रुप से आज हम सबको यानी नेपाल एवं भारत की जनता को यह अवश्य सोचना चाहिए कि अचानक से नेपाल के प्रधानमंत्री का यह रवैया किस से प्रेरित है या इसके पीछे क्या कारण है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारा पड़ोसी मुल्क चीन का भारत के साथ रवैया हमेशा से अनीति पूर्ण रहा है। जहां हमने उस पर विश्वास करने की कोशिश की वहीं उसने हमें सदैव धोखा ही दिया है। पड़ोसी देशों को कर्ज में डूबने की बात हो या विस्तार वादी नीतियों से दूसरे देशों की सीमाओं पर अतिक्रमण करना हो या फिर किसी स्वतंत्र देश पर अपना अधिकार जमाना हो, चीन के साथ भारत का 1962 का छल पूर्ण युद्ध हो या डोकलाम एवं गलवान घाटी जैसे संघर्ष, यह सब चीन की नियत पर सवाल खड़े करते हैं।

नेपाली प्रधानमंत्री चीनी राष्ट्रपति के साथ

आज चीन के प्रभाव में आने वाले देश चीन की ही भाषा बोलते हैं। उसकी अवधारणा एवं विचारों को आगे बढ़ाते हैं भले ही इसकी कीमत उन्हें पारंपरिक पड़ोसी देशों के साथ रिश्तो में खटास लाकर ही क्यों ना चुकानी पड़े।
अप्रत्यक्ष रूप से चीन सिर्फ चीन तक ही सीमित नहीं रहा। वह तिब्बत के रूप में, हांगकांग के रूप में एवं उन सभी देशों के रूप में विस्तार पूर्वक फैल चुका है जो उसके चंगुल में फंस चुके हैं।इस तरह गौर करें तो पाएंगे कि उसने भारत को घेरने के लिए उसके पड़ोसी देशों में जिससे भारत के सामरिक धार्मिक एवं आर्थिक रिश्ते हमेशा से चले आ रहे थे उसमें सेंधमारी कर दी है। यह चीन के छद्म युद्ध में शामिल एक विशेष कूटनीति है जिसके तहत वह भारत को सिर्फ सीमा के मुद्दों पर ही उलझाए नहीं रखना चाहता, वह हमारे मनोबल के साथ भी खेलना चाहता है, वह हमारे ऊपर दबाव बनाना चाहता है क्योंकि शायद उसे इस बात का भी डर है कि भारत के विकास करने से उसके पड़ोसी मुल्कों का भी विकास होगा, जिसके चलते उसकी दक्षिण एशिया में धाक जमने में कमी आएगी। फिर वह किसी को डराया धमकाया भी नहीं पाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन एक लंबे अरसे से इसी नीति को चलाते आ रहा है जिसके तहत उसने तिब्बत और हांगकांग पर छल पूर्वक अधिकार किया एवं दक्षिण चीन सागर एवं वहां मौजूद द्वीपों पर भी अपना अधिकार जताता है। इसी कड़ी में हद तो तब हो गई जब उसने हाल ही में भूटान के आंतरिक हिस्से पर भी अपना दावा ठोक दिया।

हांगकांग में चीनी सरकार के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन की एक झलक।

इसलिए आज हमें इस बात की बिल्कुल अनदेखी नहीं करनी चाहिए की नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए वक्तव्यों के पीछे एक प्रमुख कारण चीन द्वारा प्रायोजित है। चीन के इस प्रपंच में आज नेपाल की सरकार भी फस चुकी है। अब यह सोचने वाली बात है कि आखिर ऐसी क्या वजह है या लाभ है जिसके चलते नेपाल अपने पड़ोसी देश जो सदा से उसका मित्र रहा है यानी भारत के साथ अपने रिश्तो को खराब कर रहा है।
सत्ताधारी नेपाली सरकार ने हाल ही में भारत की जनता के साथ-साथ नेपाल की जनता को धोखा दिया है एवं उस को आहत किया है। संबंधों का स्तर गिराया है। आज जब हमारे दोनों देशों के मध्य ऐसी स्थितियां प्रकट हुई है तो हम दोनों देशों के जिम्मेदार नागरिकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम किसी के बहकावे में आए बिना तथ्यात्मक रूप से स्थिति पर विचार करें और सही गलत का निर्णय लें।

नेपाल की जनता को भी अपनी सरकार को अपनी भावनाओं से अवगत कराना चाहिए। उन्हें यह भी तथ्यात्मक रूप से याद दिलाना चाहिए कि भारत हमारा हमेशा से एक सच्चा हितैषी मित्र राष्ट्र रहा है एवं उसने कभी भी नेपाल की संप्रभुता एवं अखंडता के साथ या वहां के लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया है। यहां तक कि भारत नेपाली लोगों के लिए अपने घर की तरह ही रहा है और साथ ही साथ आजीविका का एक प्रमुख केंद्र भी रहा है। आज यदि कोई बाहरी अथवा आंतरिक शांति नेपाल के लोगों में भारत देश के प्रति नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न कर रहा है तो उसका खंडन हमारे नेपाली भाइयों को एकजुट होकर करना चाहिए।यही एक मित्र राष्ट्र की दूसरे मित्र राष्ट्र से अपेक्षा है एवं यही एक मित्र राष्ट्र का दूसरे मित्र राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व है।

Saloni is doing intern with Logically. She has been a house wife but the writer inside her forced her to join Logically. She is a Mathematics graduate and wishes to fulfill her dreams through writing.

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