Wednesday, December 13, 2023

पत्रकारिता की नौकरी छोड़ रवि विश्नोई बने किसान, आज खेती से लाखों रुपये कमाकर आत्मनिर्भर बन चुके हैं

रवि बिश्नोई (Ravi Bishnoi):  पत्रकारिता की नौकरी छोड़ बने किसान

अगर कोई बड़ी मीडिया चैनल में 14 सालों की अपनी नौकरी को छोड़ खेती करने अपने गृह राज्य आ जाए वो भी खेती करने तो आप उसे क्या कहेंगे?

Job Insecurity ने खेती की ओर प्रवृत्त किया

रवि बिश्नोई जो कि मूलतः राजस्थान के निवासी हैं ने अचानक से अपनी 14 सालों की नौकरी छोड़ दी. बात 2019 की है जब वह न्यूज 18 के बीकानेर डिवीजन के ब्यूरो चीफ के रूप में काम कर रहे थे तभी उनको जॉब को लेके Insecurity का एहसास हो रहा था,कुछ भी स्थाई नही लग रहा था. आखिरकार उन्होंने इन जद्दोजहद से निकलने का फैसला ले लिया अपनी 14 सालों की मीडिया की जॉब को छोड़ खेती करने का फैसला लिया.

शीर्ष मीडिया संस्थानों (Leading Media Organization)  के साथ किया काम

उन्होंने जी न्यूज, इंडिया न्यूज और न्यूज 18 जैसे मीडिया संस्थानों में काम किया था और अपने रिजाइन के वक्त, वह थे। साथ ही, वह रक्षा मंत्रालय से भी मान्यता प्राप्त रक्षा संवाददाता भी थे।

क्यों चुनी खेती की राह

राजस्थान के बीकानेर जिले के देसली गांव के रहने वाले रवि बिश्नोई ने इस कदम के विषय में बताया कि  मुझे जॉब इनसिक्योरिटी महसूस हो रही थी. इसलिए मैं कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे मुझे जीवन में एक स्थायित्व मिले. इसके लिए खेती से बेहतर जरिया कुछ नहीं हो सकता था..

बंजर जमीन से शुरू किया अपनी खेती का सफर

रवि बिश्नोई के पास गांव में 20 बीघा जमीन थी. ये ऐसी ज़मीन थी जिसपर कभी खेती नहीं हुई थी और यह बिल्कुल वीरान पड़ी थी. रवि बिश्नोई ने  अपनी नौकरी छोड़ (Left Job), इसी जमीन पर खेती शुरू किया और लोगों के सामने एक मिसाल पेश करने का प्रयास किया.

ऐसे किया पैसों का इंतजाम

जाहिर सी बात है कि जीवन में किसी भी नई चीज को शुरू करने के लिए निवेश Investment की जरूरत होती है. आपको बता दें कि उनका खेत बीहड़ था. बीकानेर में उनके पास एक 30×60  का प्लॉट था. इस प्लाट को उन्होंने बेच दिया जहां से उन्हें 15 लाख रुपये मिले. पैसे अभी भी पर्याप्त नही पड़ रहे थे तभी उनके पिताजी ने अपने पास से 5 लाख रुपये दिए. अब उनके पास 20 लाख रुपए की पूंजी आ चुकी थी और इसी पैसे उन्होंने अपनी खेती के सफर को शुरू किया.

Organic farming by News reporter Ravi Bishnoi

कठिन दौर

जब उन्होंने जॉब छोड़ा तब Income आनी बंद हो गई. शुरुआत में बचत के कुछ पैसे थे उसी से घर खर्च चल रहा था लेकिन  जब सेविंग्स (Saving)  खत्म हुई खुद के साथ-साथ परिवार का भी हौसला टूटने लगा. लेकिन उसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने फैसले पर अडिग रहे.

सब्सिडी subsidy की समस्या

अब जो चुनौती आने वाली थी वो सब्सिडी की थी. इस संबंध में उन्होंने बताया कि आज सरकार किसानों को बढ़ावा देने के लिए कई सब्सिडी देती है, लेकिन इसमें काफी वक्त लगता है. मैं अपनी नौकरी छोड़ चुका था (Left Job)। शुरुआत में कुछ पैसे थे, इसलिए परेशानी नहीं हुई लेकिन जैसे-जैसे सेविंग्स खत्म होने लगी मुश्किलें बढ़ने लगी.

परम्परागत खेती की जगह वैज्ञानिक खेती की राह पकड़ी

रवि बिश्नोई की नज़र खेती की हर चुनौती पर थी. वो इस बात भली प्रकार से समझ रहे थे कि परंपरागत तरीके से खेती करके ज्यादा आगे नहीं बढ़ा जा सकता है. इसलिए उन्होंने वैज्ञानिक खेती पर जोर दिया.

उन्होंने  खेती में डीएपी और यूरिया के बदले गोबर की खाद और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करना शुरू किया. इसलिए इन सभी संसाधनों को जुटाने और जल्दी खेती शुरू करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी. यही कारण था कि उन्हें अपना बीकानेर वाला प्लाट बेचना पड़ गया.

राजस्थान के मौसम की चुनौती से ऐसे निपटा

खेती में मौसम की चुनौती और समस्या सबसे ज्यादा तकलीफ देह होती है. सारे जगह की मौसमी समस्याएं अलग अलग होती हैं जैसे पश्चिमी राजस्थान में किसानों को अत्यधिक गर्मी और आंधी – इन दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

अब उन्हें इस बात की फिक्र सता रही थी कि इस मौसम के वातावरण में ऐसा क्या उगाया जाए जिससे फसल को नुकसान भी न हो और मुनाफा भी ज्यादा हो.

इसलिए उन्होंने ऐसे पौधों को तलाशना शुरू किया, जो तेजी से बढ़ता हो और उससे कमाई भी हो जाए.

इसके लिए उन्होंने एक्सपर्ट से सलाह लेने का फैसला लिया.इसी कड़ी में जयपुर में रहने वाले फैमिली फॉरेस्ट्री के मशहूर जानकार डॉ. श्याम सुंदर ज्ञानी की सलाह ली. उनकी सलाह पर अमल करते हुए उन्होंने अपनी खेत की सीमाओं पर सहजन और खेजड़ी के 2000 से अधिक पौधे लगा दिए. जिसमें अभी करीब 1000 पौधे कारगर हैं. दोनों पौधों की खासियत यह है कि ये काफी तेजी से बढ़ते हैं और औषधीय गुणों से भरपूर हैं. आपको बता दें कि उनके पास करीब 500 पौधे जामुन, आंवला, अमरूद जैसे फलों के भी हैं.

इस युक्ति को अपनाने  के कारण उनके पौधे चार-पांच फीट के हो चुके हैं और आंधी भी इन पौधों पर ज्यादा असर नहीं कर पाएगी.

रवि ने अपनी खेती के लिए मशहूर कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर के जीरो बजट तकनीक को भी अपनाया, लेकिन ये तकनीक राजस्थान में रेतीली मिट्टी होने के कारण ज्यादा सफल नहीं हो पाई. जीरो बजट तकनीक उपजाऊ जमीन पर अधिक कारगर और सफल होती है.राजस्थान के रेतीली मिट्टी में इस मॉडल को सफल होने में थोड़ा वक्त लगेगा.  इसके लिए खेत में और अधिक पेड़-पौधे लगाने होंगे, ताकि मिट्टी शिफ्ट न करे.

इसके अलावा रवि ने अपनी खेती के लिए दो गाय भी खरीदी हैं. इससे परिवार के लिए दूध की पूर्ति होने  के साथ-साथ खेती के लिए खाद की पूर्ति भी होती है. वो गोबर का प्रयोग अलग तरीके से करते हैं. उन्होंने बताया कि  वह गोबर को सीधे खेत में न देकर, पहले इसे मिट्टी के अंदर दबा देते हैं और ऊपर से गोमूत्र का छिड़काव करते हैं. यह किण्वन क्रिया (Fermentation) फसलों पर दोगुना असर करता है.

सब्जियों की खेती पर जोर

रवि बताते हैं कि वह अपनी आधी जमीन पर गेहूं, सरसों जैसी फसलों की खेती करते हैं, तो आधी जमीन पर घीया, लौकी, तरबूज, खरबूज, खीरा जैसे सब्जियों को उगाते हैं. इसमें उन्हें उत्तर प्रदेश में सब्जियां उगाने वाले एक खास समुदाय से मदद मिलती है.

वह बताते हैं, “पहले साल ड्रिप इरिगेशन और पाइप वगैरह का इंतजाम कर, सब्जियों की खेती शुरू करने में करीब पांच लाख का खर्च आया. मुझे इससे कुल आय के रूप में 10 लाख की उम्मीद थी.  लेकिन, दोनों बार मार्च के दौरान देश में लॉकडाउन लग गया. इस दौरान ऐसी सब्जियों की मांग सबसे ज्यादा रहती है. लेकिन मंडियों में ठीक भाव नहीं मिले और हमें काफी नुकसान हुआ. इस तरह हम करीब 6.5 लाख तक ही पहुंच पाए.

सब्जियां स्थानीय मंडियों में बिकने के साथ-साथ, पंजाब तक भी सप्लाई होती हैं.

किसान की चुनौतियां

रवि बिश्नोई बताते हैं कि किसानों की समस्याओं का पता अब मुझे चला जब मैंने खुद खेती शुरू की. जैसा कि आप सबको पता होगा कि खेती एक ऐसा काम है जिसमे मौसम ने अगर आपका साथ नही दिया तो आप कुछ नही कर सकते हैं. सारी मेहनत करने के बाद अगर बारिश हो जाए या कोई और भी मौसमी गड़बड़ी हो जाए तो सारी फसल बर्बाद हो जाती है.

 उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज देश में जैविक उत्पादों के लिए अलग मंडी नहीं है. नतीजन,आपको जैविक तरीके से उपजाई साग-सब्जियों को भी उसी दर पर बेचना पड़ेगा, जो केमिकल से उपजाए उत्पादों में मिल रहे हैं.

वह कहते हैं आज पेट्रोल-डीजल के दाम तेजी से बढ़ने के कारण, ट्रांसपोर्टेशन का खर्च 8 रुपए प्रति किलोमीटर से बढ़कर 14 रुपए हो गया है.  इसके अलावा, हर नाके पर वैन को 50-100 रुपए रिश्वत भी देनी पड़ती है, क्योंकि यदि आप नहीं देते हैं, तो वे आपकी गाड़ी को एक-दो घंटे के लिए रोक देंगे और आपकी सब्जी मंडी में समय पर नहीं पहुंचेगी और सब बेकार हो जाएगा. इन सारी चीजों का बोझ  किसानों को ही उठाना पड़ता है.

Organic farming by News reporter Ravi Bishnoi

ड्रिप इरिगेशन से लेकर सोलर सिस्टम तक

राजस्थान के अधिकांश किसान फ्लड इरिगेशन तकनीक के जरिए खेती करते हैं, जिससे पानी की काफी बर्बादी होती है और  सबको पता है कि राजस्थान में  पानी की काफी दिक्कत है.

इसलिए रवि ने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम अपनाया है. ट्यूबवेल चलाने के लिए 5 किलोवाट का एक सोलर पैनल भी लगाया है.

अगर हम सब संसाधन का उपयोग इसी होशियारी से करे तो बहुत सारी समस्याएं हल हो सकती हैं.

पत्नी और बच्चे भी हुए गांव में शिफ्ट

उनका ये फैसला सफल रहा और अब हालात ये हो गई है कि उनकी पत्नी बच्चों सहित गांव में ही शिफ्ट हो गए हैं. लॉकडाउन के दौरान वे रहने के लिए गांव आए. रवि जी ने बच्चों का दाखिला गांव के ही एक निजी स्कूल में करवा दिया.

आपको बता दें कि रवि यहीं नही रुकने वाले हैं. उनका एक लंबा Plan है. आपको बता दें कि इनका फार्म हाउस हाइवे 911 है जिसका नाम उन्होंने ‘ओम कृषि फार्म’ नाम दिया है.  उन्होंने यहां रहने के लिए तीन कमरे भी बनवाए हैं. खेतों के बीच, उनका यह घर यहां से गुजरने वाले यात्रियों के लिए, आकर्षण का एक खास केन्द्र है. कई यात्री रुक कर उनके फार्म हाउस पर घूमने के लिए भी आते हैं.

भविष्य में रवि का इरादा अपने फार्म हाउस को एग्रो-टूरिज्म के रूप में विकसित करने की है.  जहां शहर के लोग, जैविक उत्पादों के साथ ही गांव की आबोहवा का आनंद ले सकते हैं.