Wednesday, December 13, 2023

MBA की पढ़ाई करने के बाद भी नहीं की नौकरी, अब पराली से मशरूम का उत्पादन कर सालाना 20 लाख रुपये कमाती है

देश के कई राज्यों में धान की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। धान की फसल काटने के बाद अगली फसल की बुवाई के लिए किसान पराली को जला देते हैं, जो पर्यावरण के काफी नुक्सानदायक होते हैं। ऐसे में इस समस्या के निजात पाने के लिए ओड़िशा की एक महिला ने एक पहल की है। दरअसल, ओड़िशा (Odisha) के बारगढ़ जिले की रहनेवाली जयंती प्रधान (Jyanti Pradhan) बेकार पराली से मशरूम की खेती और वर्मीकम्पोस्ट तैयार करके सालाना 20 लाख रुपये की कमाई कर रही है।

जयंती फार्मिंग में बनाना चाहती थीं करियर

किसान परिवार से सम्बंध रखने वाली जयंती प्रधान (Jyanti Pradhan) MBA की पढ़ाई की है। उनके पिता की इच्छा थी कि वे पढ़-लिखकर कुछ अच्छा करें। पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए उन्होंने MBA की शिक्षा ग्रहण की लेकिन कारपोरेट सेक्टर में काम करने में रुचि नहीं थी। वह खेती में अपना भविष्य बनाना चाहती थी इसलिए MBA की पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी नहीं की।

कैसे आया मशरूम की खेती करने का विचार

जयंती ने बताया कि, उनके क्षेत्र में धान की खेती अधिक होने के बावजूद भी किसानों को अच्छी आमदनी नहीं होती है। ऐसे में उन्होंने ऐसी फसल की खेती करने का विचार किया जिससे कमाई भी अच्छी हो और दूसरों को भी रोजगार मिल सके। वह आगे कहती हैं कि पराली एक बहुत गंभीर समस्या है। उनके यहां के किसान पराली को खेतों में जलाते हैं या उसे फेंक देते हैं। तब उन्होंने पराली के बारें में जानकारी जुटाई तो पता चला कि मशरूम की खेती में पराली का इस्तेमला किया जाता है।

दरअसल, मशरूम के उत्पादन के लिए बेड तैयार किया जाता है, जिसमें पराली का उपयोग किया जाता है। उसके बाद विचार विमर्श करके जयंती ने साल 2003 में अपने क्षेत्र के नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर पैडी स्ट्रा मशरूम की खेती करना आरम्भ किया। Odisha’s Jyanti Pradhan Earning Rs 20 Lakhs annually from Paddy Straw Mushroom Farming.

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कैसे करती हैं मार्केटिंग?

मशरूम उगाने के बाद अब जरुरत थी उसकी मार्केटिंग की। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले उन्होने कुछ माह तक आसपास के सभी ग्रामीण लोगों को फ्री में मशरूम बांटा। उसके बाद जैसे-जैसे लोगों को मशरूम पसंद आया वे ऑर्डर करने लगे। बढ़ती डिमांड देखकर उन्होंने लोकल मार्केट में मार्केटिंग करनी शुरु की। उन्होंने रिटेलर्स से कांटैक्ट की, जो मशरूम की मार्केटिंग करते थे। इस प्रकार धीरे-धीरे ये काम बढ़ते गया। फिलहाल वह मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं। इसके लिए उन्होने वॉट्सएप्प ग्रुप बनाया है जहां लोग अपने-अपने ऑर्डर प्लेस करते हैं।

शादी के पति ने भी दिया साथ

साल 2008 में सरकारी नौकरी में कार्यरत बीरेन्द्र प्रधान से जयंती प्रधान की शादी हो गई। बीरेन्द्र जयंती के काम से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने देखा कि वह अच्छा कर रही हैं तो उनके काम में उनका साथ देने के लिए वे अपनी नौकरी छोड़ खेती करने लगे। वह कहती हैं कि, मशरूम उत्पादन के दौरान वह पराली का इस्तेमाल वर्मीकम्पोस्ट बनाने में करती हैं। इससे उन्हें खाद के लिए कहीं और निर्भर रहने की जरुरत नहीं होती है और पराली की समस्या से भी निजात मिल जाता है।

महिलाओं को देती हैं मशरूम उगाने की ट्रेनिंग

जयंती महिलाओं को भी पैडी मशरूम उगाने और उसके प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण देती हैं। इसके लिए उन्होंने एक ग्रूप बनाया है जिसमें 100 से अधिक महिलाएं सम्मिलित हैं। ट्रेनिंग लेने के बाद ये सभी महिलाएं मशरूम से अलग-अलग उत्पाद बनाकर जयंती को देती हैं जिसे वह बिक्री के लिए बाजार में सप्लाई करती हैं। बता दें कि, ग्रुप में शामिल महिलाएं प्रतिवर्ष 200 क्विंटल से अधिक मशरूम का उत्पादन करती हैं।

Odisha's Jyanti Pradhan earning rs 20 lakh annually from Paddy Straw Mushroom Farming

बनाती हैं एक दर्जन से अधिक प्रोडक्ट

जयंती ने 35 लोगों को रोजगार दिया जो मशरूम के उत्पादन और प्रोसेसिंग में उनका हाथ बंटाते हैं। वह बताती हैं कि मशरूम का प्रोसेसिंग करके कई प्रकार के उत्पाद जिसमें आचार, पापड़ जैसे एक दर्जन से अधिक उत्पाद शामिल हैं, बनाकर लोकल बाजार में बिक्री हेतु भेज दिए जाते हैं। Odisha’s Jyanti Pradhan Earning Rs 20 Lakhs annually from Paddy Straw Mushroom Farming.

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पैडी स्ट्रा मशरूम की खेती कैसे करें?

पराली से तैयार होने वाले मशरूम को पैडी स्ट्रा मशरूम (Paddy Straw Mushroom Farming) कहा जाता है। इसकी खेती के लिए मशरूम के बीज (स्पान), पानी, अधिक मात्रा मे पराली, बांस और प्लास्टिक की आवश्यकता होती है। पैडी स्ट्रा उगाने के लिए सबसे पहले पराली का छोटा-छोटा बंडल बनाकर उसे एक रात के लिए भिगोकर रखा जाता है। उसके बाद मशरूम उगाने के लिए बांस से ऐसी जगह बेड तैयार किया जाता है, जहां अच्छी हवा आती हो। अब उसमें तीन से चार परतों में पराली डालकर डालकर उसके ऊपर मशरूम के बीज को ऊपर से डालकर फैला दिया जाता है। उसके बाद अब प्लास्टिक की मदद से उसे ढ़क दिया जाता है। 8 से 10 दिन बाद ही आप देखेंगे कि मशरूम तैयार हो चुका है।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग (Integrated Farming) रही हैं जोर

जंयती (Jyanti Pradhan) और उनके पति बिरेन्द्र (Birendra Pradhan) मशरूम उगाने के साथ-साथ अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग की तरफ भी रुख कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने बारगढ़ और कालाहांडी में यूनिट लगाई है। बारगढ़ में वे मशरूम कल्टीवेशन और वर्मीकम्पोस्ट बनाने के साथ ही नर्सरी भी शुरु किए हैं। वहीं कालाहांडी में मछली पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन के साथ-साथ सब्जियों की ओर्गेनिक खेती करते हैं। मछली पालन के उन्होंने 5 एकड़ की भूमि पर तालाब खुदवाया है।

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