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आगरा की 80 साल की वृद्ध माँ जिन्हें दोनों बेटों ने छोड़ दिया, सड़क किनारे मात्र 20 रुपये में खिलाती हैं रोटी सब्जी

जिन बच्चों का जन्म देकर, उसके लालन-पालन और फिर उसके बेहतर भविष्य के लिए दिन-रात मेहनत करने वाले माता-पिता को कितना दुखद होता है जब उनके संतान उन्हें उदासीन कर देते हैं, उन्हें खुद से पृथक कर देते हैं, इस दुख की संसदीय कल्पना की जा सकती है।

एक वृद्ध माता-पिता जिससे कार्य नहीं होता है इसके बावजूद भी उन्हें जीवन को चलाने के लिए ठेला लगाना पड़ता है, लोगों के जूते पॉलिश करने पड़ते हैं या फिर अन्य इसी तरह के कार्य करने पड़ते हैं। यह दृश्य देख कर बहुत दुख होता है। जो माता-पिता अपना पूरा जीवन अपने बच्चे का भविष्य बनाने में गुजार देते हैं वही बच्चे अपने माता-पिता के बुढापे का सहारा नहीं बनते है। जिस माता-पिता ने पाल-पोष कर बड़ा किया, बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी की, उन्हें हीं उनके बच्चे दो वक्त की रोटी नहीं खिला पाते हैं। जिसकी वजह से सङकों के किनारे अन्य लोगों को उन्हें सेवा करना पड़ता है।

women making food

आज आपको ऐसी ही एक मां के बारें में बताने जा रहें है जिसके 2 बेटे हैं लेकिन किसी बेटे ने भी मां को अपने साथ नहीं रखा। मजबूरन वो मां आज लोगों को खाना बनाकर खिलाती है, लेकिन आमदनी बहुत कम है।

हम बात कर रहें है आगरा के सड़क के किनारे रोटी बनाकर खिलाने वाली अम्मा की। यह अम्मा लोगों को सिर्फ 20 रुपये में दाल, रोटी, चावल, और सब्जी खिलाती हैं। अम्मा का नाम भगवान देवी है और उनके पति का देहांत हो चुका है। रोटी वाली अम्मा के 2 बेटे हैं लेकिन दोनों बेटे अम्मा को अपने साथ नहीं रखते हैं। जीवन का गुजारा करने के लिए अम्मा को लोगों को भोजन करा कर अपना पेट भरना पड़ता है। यह कितनी दुखद बात है, बेटा होते हुए भी एक वृद्ध मां को सड़क के किनारे लोगों को भोजन खिलाना पड़ता है।

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मजबूरी में पेट भरने वाली अम्मा का कामकाज कोरोना महामारी की वजह से 7 महीने से ग्राहकों के नहीं आने के कारण चौपट हो गया है।

रोटी वाली अम्मा करीब 14-15 वर्षों से यह काम कर रही हैं। अम्मा के पास भोजन करने के लिए रिक्शे वाले और मजदूर आते थे। लेकिन कोविड-19 की वजह से ग्राहकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। ग्राहकों के नहीं आने से अम्मा बहुत परेशान हैं, उनका जीवन गुजारना बहुत कष्टमय हो गया है।

सड़क के किनारे काम करने की वजह से अम्मा को कई बार हटाया भी जाता है। रोटी वाली अम्मा कहती हैं कि, “कोई मेरा साथ नहीं दे रहा है। बार-बार जगह से हटा दिया जाता है, मैं कहां जाऊँ। अगर मुझे एक दुकान मिल जाती तो मैं अच्छे से अपना काम चलाकर अपना गुजारा कर लेती।”

ममता की प्रतिमूर्ति कहीं जाने वाली मांओं में से एक मां की ऐसी दर्दनाक स्थिति पर The Logically दुख व्यक्त करता है तथा रोटी वाली अम्मा के क्षेत्र में रहने वाले या जो वहां तक पहुंच सकते हैं उनसे मां की मदद करने हेतु अपील करता है।

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