भारत की 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जहां मूलभूत आवश्यकताओं के साथ ही एक सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था की घनघोर कमी है। सरकारी स्कूल की टूटी दीवारें, नदारद शिक्षक और काले रंग का श्यामपट्ट जो अब ‘भूरा’ हो चुका है, बहुत कुछ बयां करता है।
जब बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है तब शायद हम यह नहीं सोचते हैं कि भविष्य के निर्माण के लिए हम आने वाली पीढ़ियों को किस तरह तैयार रहे हैं और क्या हम वास्तविक तौर पर यह मानने के लिए राजी हैं, कि इस व्यवस्था के साथ हमारा राष्ट्र एक उचित मुकाम हासिल करने के लिए तैयार है ?
ना चाहते हुए भी भारत में सामान्य रूप से उचित शिक्षा सभी को नहीं मिल पाती है, जिसमें मुख्य रुप से गरीब तबके के बच्चे और लड़कियां प्रभावित रहती हैं। इन तमाम नकारात्मक डाटा और लुढ़कती हुई व्यवस्था के बावजूद एक ऐसा जगह है जहां कुछ लड़कियों ने साथ मिलकर शिक्षा का अलख जगाया और अभी लगभग 400 बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रही हैं।
कैसे हुई शुरुआत
साल 2017 में ग्रामीण शिक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए पाठशाला की शुरुआत की गई जिसके तहत गांव के बच्चों को वो हर सुविधा देने की कोशिश की गई जो एक शहरी बच्चे को अच्छा खासा कीमत चुकाने के बाद मिलता है। इस मुहिम को सुचारू रूप से चलाने के लिए बिहार,छपरा की लगभग 10 लड़कियों ने अपने पैर जमाने शुरू किये और अपनी निरंतर प्रयास से आज वो एक उचित मुकाम पर पहुंच गई हैं जहां लोगों के भरोसे के साथ ही बच्चों का भविष्य भी मजबूत होते दिख रहा है । बिहार, छपरा के एक छोटे से गांव में बसा यह स्कूल अपने अनोखे प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध है। पाठशाला में बच्चों को पढाने के साथ ही लड़कियों के सर्वांगिक विकास पर काम किया जाता है , जिससे उन्हें शिक्षा के साथ ही आत्मनिर्भर बनने का मौका मिल सके !
लड़की होने के कारण झेलनी पड़ती थी परेशानी
गांव के लोगों में एक तरह की मानसिकता घर कर चुकी है की, किचन संभालने के अलावा लड़कियां कुछ और नहीं कर सकती । और इस मानसिकता के साथ लोगों का महिला शिक्षक पर भरोसा करना एक बड़ी बात थी। धीरे-धीरे दिन बीतते गए और इन लड़कियों ने अपनी अथक प्रयास से अनेकों मुकाम हासिल किये। स्कूल के विकास के साथ-साथ ऐसे अनेकों बच्चे बेहतर करने लगे जो शिक्षा के मामले में बिल्कुल शून्य थे।
पढ़ाने के साथ-साथ खुद भी करती हैं तैयारी
लड़कियों का यह समूह केवल पढ़ाने का ही कार्य नहीं करता बल्कि बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ ये खुद के विकास के लिए भी निरन्तर काम करती हैं और कंप्यूटर साक्षरता के साथ ही डिजिटल लिटरेसी पर भी अपने हुनर को आजमाती रहती हैं
शुरुआत में हुई परेशानियों के बाद, इनके प्रयास से आप गांव का माहौल पूरी तरह बदल चुका है और अब वह लोग भी अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए भेजते हैं जो कभी यह कह कर टाल देते थे की-खाना बनाने के अलावा इनका काम ही क्या है इन्हें तो किचन में रहना चाहिए और घर संभालना चाहिए।
अब अनेकों लड़कियां जुड़ रही हैं मुहिम से
पाठशाला के प्रयास से अब गांव की अनेकों लड़कियां प्रभावित हो चुकी हैं और वह भी अपने घर से निकल कर पढ़ने के लिए सजग बन चुकी है।
इतने कम समय में एक छोटे से अभियान की शुरुआत के साथ ही चंद लड़कियों के प्रयास ने ग्रामीण क्षेत्र के सूरत को पूर्ण तरह से बदल दिया है जो सराहनीय और वंदनीय है।The Logically की तरफ से हम अपने पाठकों से अपील करते हैं कि अपने घर और आसपास की लड़कियों के साथ, शैक्षणिक स्तर पर किसी भी तरीके से भेदभाव ना करें और उन्हें लड़कों के समानांतर मौका दें जिससे वो खुद को साबित करने में सक्षम हो।