कहा जाता है कि सफलता पानें के लिए जो सबसे ज़रुरी चीज़ है वो है दृढ़ संकल्प और आपके हौसलों की उड़ान। अगर आपमें ये बाते हैं तो दुनिया की कोई और ताकत आपको आगे बढ़नें से नही रोक सकती। और तो और यदि आप किसी रुप में शारीरिक अक्षम भी हैं तो वह कमी भी आपकी ताकत बनकर आपके हौसलों को बुलंद करती है। इसका सार्थक उदाहरण हैं भारतीय पैरा एथलीट (para-athlete) के. वाई. वेंकटेश (K. Y. Venkatesh) जिन्हें इसी साल गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्मश्री पुरुस्कार (Padam Shree award) से सम्मानित किया गया है।
Achondroplasia से ग्रसित हैं के. वाई. वेंकटेश
Achondroplasia जो कि एक शारीरिक विकास में कमी से संबंधित विकार (growth disorder) है के चलते के. वाई. वेंकटेश की शारिरिक वृद्धि 4 फुट 2 इंच पर आकर ही थम गई थी, जिसकी वजह से कर्नाटक के वेंकटेश को तमाम उम्र कईं कठिनाईंयों का सामना करना पड़ा लेकिन, जीवन व अपनें बौने कद से हार न मानते हुए अपने हौसलों के बल पर विजय हासिल की और पैरा-एथलीट खेलों में अपना योगदान देनें का संकल्प करते हुए 50 साल पुरानें बहुक्रियाशील पैरास्पोर्ट (multi-facted parasports ) को चुना।
कईं रिकार्डस् और पुरुस्कार के लिए जानें जाते हैं के. वाई. वेंकटेश
इस गणतंत्र दिवस भारत के अति सम्माननीय पद्मश्री पुरुस्कार से नवाज़े गये भारतीय पैरा-एथलीट के. वाई. वेंकटेश (K. Y. Venkatesh) लिम्का वर्ल्ड रिकार्ड विजेता रह चुके हैं।1994 में, बर्लिन में पहली अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (Internation Paralympic Committee, IPC) द्वारा आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कईं पदक हासिल किये जो कि उनके सफलता की ऊचाईंयों की एक शुरुआत मात्र थे। इसके बाद तो उन्होनें एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन जैसे कई खेलों में जीत हासिल कर पदक जीतना शुरु कर दिया। 5 साल बाद के. वाई. वेंकटेश नें शॉट-पुट के लिए एक बहु-विकलांगता चैम्पियनशिप(multi-disability championship) में अपना पहला इंटरनेशनल गोल्ड मेडल जीता।
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कईं अवसरों पर बढ़ाया भारत का मान
साल 2002 में, एलजी विश्व कप खेलों( LG World Cup Games) में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए के. वाई. नें बैडमिंटन के लिए एक सिल्वर मेडल, शॉटपुट, डिस्कस थ्रो, और भाला फेंक में तीन गोल्ड मेडल प्राप्त किये। 2004 में ओपन ट्रेक और फील्ड गेम्स(Open Track and Field Games) में कई खेलों का हिस्सा बनते हुए उन्होनें कई बार जीत हासिल की। वहीं 2005 में, उन्होनें 4th World Drawf Games (बौनों के बीच होनें वाली प्रतिस्पर्धा) पर आधारित विभिन्न खेलों में 6 पदक हासिल कर कईं विश्व रिकार्ड कायम किये। 2006 के यूरोपीयन ओपन चैम्पियनशिप (European Open Championship) में बैडमिंटन स्पर्धा में अपनी दावेदारी हासिल करते हुए उन्होनें ब्रोन्ज मेडल लिया। असके अलावा स्वीडिश ओपन ट्रेक और फील्ड गेम्स(Swedish Open Track and Field Games) के चलते हॉकी स्पर्धा में 2 गोल्ड और 1 ब्रोन्ज मेडल पाया।
परिवार से हमेशा मिला सहयोग
वेंकटेश कहते हैं कि उनके पिता एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं । छह भाई-बहनों में सबसे छोटे वेंकटेश को हमेशा उनके परिवार का सपोर्ट मिला। 1993 में पहली बार मैसूर में स्थानीय खेलों के दौरान प्रतियोगिता में हिस्सा लेनें को उनके परिवार नें ही प्रोत्साहित किया।
अवार्ड घोषणा पर सरप्राइज़ थे वेंकटेश
Times of India से हुई बातचीत में वेंकटेश कहते हैं – “हालांकि पूर्व में मैनें पद्मश्री के लिए नामाकंन ज़रुर किया था लेकिन, इस बार मैनें सोचा कि अवार्ड के लिए प्रैफरेंस कोरोना वारियर्स को ही दी जाएगी पर जब मैनें अपना नाम देखा तो मुझे आश्चर्य ज़रुर हुआ लेकिन मैं बेहद खुश भी हुआ”
भारत में पैरा-एथलीट खेलों को बढ़ावा देना चाहते हैं के. वाई. वेंकटेश
2012 में रिटायर हो चुके 51 वर्षीय के. वाई. वेंकटेश वर्तमान में विकलांग लोगों के लिए विभिन्न खेलों के विस्तार पर काम कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (Internation Paralympic Committee, IPC) मान्यता प्राप्त कोचिंग देने से पूर्व के. वाई. वेंकटेश पैरा-एथलीटस् के लिए कर्नाटक पैरा बैडमिंटन एसोसिएशन के चीफ रह चुके हैं जिसके चलते उन्होनें व्हीलचेयर बॉस्केटबॉल में तकनीक पर काम किया। भारतीय सरकार द्वारा के.वाई. को कई बार इंटरनेशनल प्रोग्राम में एस्कॉर्ट के रुप में भी भेजा गया। ऐसे में कहना गलत न होगा कि जिस तरह से के. वाई. वेंकटेश नें पूरे विश्व के सम्मुख भारत का नाम ऊंचा किया है इसके लिए वे बेशक ही पद्मश्री के हकदार हैं।