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हज़ारों लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार किये, पद्मश्री भी मिला: लेकिन आज खुद इलाज के मोहताज हो चुके हैं

कुछ ऐसे कार्य होते हैं जिसे करना सबके वश की बात नहीं होती है। जब बात लावारिस लाशों की हो तब लोग उसे छूना तो दूर उसे देखना भी पसंद नहीं करते हैं। आज बात ‘लावारिस लाशों के मसीहा’ कहे जाने वाले एक ऐसे ही बुजुर्ग की। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के रहने वाले 83 वर्षीय मोहम्मद शरीफ ने अब तक 25 सालों में 25000 से भी अधिक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करवाया है।

 Mohammed shareef bedridden

गौरतलब हो कि पिछले साल उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। अजय मोहम्मद शरीफ की हालत यह है कि वह बिस्तर पर बिल्कुल बेसुध अवस्था में बीमार पड़े हैं उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं है और उनकी आंखें खुद मदद का बाट जोह रही है।

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मोहम्मद शरीफ के परिवार के सदस्य कहते हैं कि पद्मश्री के लिए नामित किए जाने के बाद वह पेंशन के रूप में कुछ राशि की उम्मीद कर रहे थे लेकिन पद्मश्री घोषणा के 1 साल के बाद भी उन्हें सम्मान नहीं मिल पाने के कारण कोई भी राशि अब तक उपलब्ध नहीं हो पाई है जिसके कारण इनके इलाज में काफी दिक्कत आ रही है। मोहम्मद शरीफ के बेटे एक निजी ड्राइवर के रूप में काम करते हैं जिसके बदले उन्हें प्रति महीना ₹7000 मिलते हैं उनके बेटे का कहना है कि ₹4000 तो पिताजी के इलाज में ही खर्च हो जाते हैं ऐसे में उनके लिए घर चलाना बेहद हीं मुश्किल कार्य हो रहा है।

मोहम्मद शरीफ के बेटे सागर का कहना है कि 30 जनवरी 2020 को एक पत्र मिला था जिसमें केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने कहा था कि जल्द ही पुरस्कार की तिथि बताई जाएगी लेकिन 1 साल बाद भी उन्हें यह सम्मान नहीं मिल पाया है जब सांसद लल्लू सिंह ने यह बात सुनी तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए उन्होंने परिवार वालों को आस बंधाया और खुद इस मामले को देखने की बात कही।

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