हम जानते हैं कि, आज के दौर में हमारे देश की महिलाओं ने अपने सफलता के बदौलत यह साबित कर दिखाया है कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। जी हां, आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जहां महिलाओं ने अपनी चमक और प्रतिभा का जलवा न बिखेरा हो। भारतीय महिलाओं ने राजनीति, कला, सिनेमा, संगीत के अलावा कारोबार के क्षेत्र में भी अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं- (Moirangthem Muktamani Devi)
आज हम एक ऐसी महिला की बात करने वालें है, जो अपनी काबिलियत के बूते करोड़ों की कपंनी चला रही हैं और उन्हें हमारे देश का सम्मानित आवर्ड पद्यम श्री भी प्राप्त है।
कभी नही थे बेटी के लिए जूते ख़रीदने के पैसे, आज हैं करोड़ों की कपंनी की मालकिन
हम मोइरंगथेम मुक्तामणि देवी (Moirangthem Muktamani Devi) की बात कर रहे हैं, जो मणिपुर (Manipur) से ताल्लुक रखती हैं। इनका जन्म मणिपुर में दिसंबर 1958 में हुआ था। इनके पिता बचपन में हीं गुजर गए थें। इनकी मां ने अकेले इनका पालन-पोषण किया और 16-17 साल की उम्र में हीं मुक्तामणि की शादी हो गई। अब इनके चार बच्चे हैं।
परिवार को चलाने के लिए किया खेतों में भी काम
मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi) अपने परिवार का खर्च उठाने के लिए बहुत सारे काम किया करती थीं। वे दिन में खेतों में काम किया करती थी तो शाम को सब्जियां बेचा करती थी और फिर रात में झोले और हेयरबैंड्स बनाती थीं।
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कैसे आया कंपनी स्टार्ट करने का ख्याल? (Initiative of Mukta Shoes industry)
मुक्तामणि देवी ने बताया कि, एक बार उनकी दूसरी बेटी के स्कूल के जूते का सोल फट गया और इनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे उसे दूसरा जूता दिला सकें। फिर इन्होंने उसे ऊन के सोल बनाकर दिए लेकिन इनकी बेटी उस जूते को स्कूल पहनकर जाने से डरती थी कि कहीं टीचर उसे डांट ना दे। फिर मजबूरीवश वो उन जूतों को पहनकर स्कूल गई तब टीचर ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा कि ये जूते किसने बनाया? तब इनकी बेटी ने बताया कि मेरी मां ने, फिर किया टीचर ने कहा कि उन्हें भी एक जोड़ी चाहिए।
मुक्तामणि आगे कहती हैं कि, स्कूल में हुई इस घटना के बाद उन्होंने इसप्रकार के और भी कई जूते बनाए, जिसे इनके रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों द्वारा खूब पसंद किया गया।
फिर 1990-91 में इन्होंने अपने नाम पर हीं मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री बनाई और कंपनी के प्रोडक्ट्स का प्रमोशन एग्ज़ीबीशन और ट्रेड फ़ेयर्स के ज़रिए किया।
लोगों ने किया इनके डिजाइन को खूब पसंद (Mukta shoes industry)
मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi) ने बहुत मेहनत कर एक से एक जूते बनाए और इनकी इस मेहनत ने रंग लाया। लोगों ने इनके द्वारा बनाए गए इन जूतों के डिजाइन को खूब पसंद किया, जिससे धीरे-धीरे इन जूतों की मांग बढ़ने लगी।
अन्य लोगों को भी सिखाया जूते बनाना
मुक्तामणि देवी ने अब-तक हज़ार से ज़्यादा लोगों को जूते बुनना सीखा दिया है। इसके अलावें इन्होंने अपनी कंपनी में कई लोगों को रोजगार भी दिया है।
बता दें कि, मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi) जूतों के डिज़ाइन की पूरी ज़िम्मेदारी खुद हीं संभालती है और बाकी कामों को कई पुरूष और महिलाएं मिलकर करते हैं। इनकी कंपनी में जूतों के सोल बनाने का काम पुरुषों का है तथा जूते का बुनाई का काम महिलाएं करती हैं।
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एक जोड़ी जूते को बनाने में लगभग तीन दिन का लगता है समय
मुक्तामणि देवी ने बताया कि, एक जोड़ी जूते को बनाने में लगभग तीन दिन लग जाते हैं तथा एक दिन में एक कारीगर कम से कम 100 से 150 सोल बनाता है और उन्हें एक सोल का 50 रुपये दिया जाता है। वहीं, महिलाओं को एक जूता बुनने पर 30 से 35 रुपये मिलते हैं।
मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi) के बेटे क्षेत्रीमायूम देवदत्त सिंह का कहना है कि, जूते की बुनाई करना इतना आसान नहीं है। इसमें सबसे ज़्यादा समय और मेहनत लगती है। हमारी कंपनी एक जूता बुनने के लिए एक महिला को एक दिन का 500 रुपये देती है और एक दिन में हमारी कंपनी में 10 जूते तैयार कर लिए जाते है। पहले हम एक जोड़ी जूता 200 से 800 रुपये में बेचा करते थे लेकिन बदलते वक़्त के साथ हमने जूतों के दाम और डिज़ाइन दोनों में बहुत बदलाव किए हैं। इसलिए अब वही जूता 1000 रुपये का कर दिया है।
विदेशों में भी किए जाते हैं जूते एक्सपोर्ट
इनके ( Moirangthem Muktamani Devi) कंपनी में सभी उम्र के लोगों के लिए जूते बनाए जाते हैं और इन जूतों को केवल पूरे भारत में हीं नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया, यूके, मेक्सिको और अफ़्रीकी जैसे कई अन्य देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं।
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