हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था ज्यादातर कृषि पर ही टिकी हुई है। किसान अपनी आय को बढाने के लिए अपने खेतों में नए-नए तरीके से खेती करते हैं जिससे वह अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। किसान अपनी खेतों में जैविक तरीके से खेती करते हैं जिसे लोगों को शुद्ध अनाज और खेतों की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है।
आज हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपने खेतों में जैविक तरीके से खेती किए। उन्होंने अपने खेतों में जैविक तरीके से खेती करने में काफी मेहनत और प्रयासों के बाद आज सफलता प्राप्त की। उनके इस सफलता को देखकर भारत सरकार ने हुकुमचंद पाटीदार जी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
हुकुमचंद पाटीदार (Hukumchand Patidar) राजस्थान (Rajasthan) के झालावाड़ (Jhalwad) जिले के मानपुर (Manpur) गांव के रहने वाले हैं। हुकुमचंद पहले से ही मन बना चुके थे कि हम अपने खेतों में जैविक तरीके से खेती करेंगे इसके बाद इन्होंने साल 2003 में अपने गांव मानपुर में एक हेक्टेयर अपनी खेतों में जैविक खेती करने की शुरुआत किया। इन्होंने अपने खेतों में गेहूं की फसल बोई और जब फसल तैयार हुआ तो इन्हे काफी नुकसान सहना पड़ा। क्योंकि पहले जब यह गेहूं के फसल की खेती करते थे तो यही एक हेक्टेयर जमीन में 40 क्विंटल गेहूं उपज होता था। परंतु जब वह इसी एक हेक्टेयर में जैविक तरीके से खेती करना शुरु किए तो इन्हें मात्र 22 क्यूंटल गेहूं की उपज हुई। हुकुम चंद को पहले साल ही नुकसान सहना पड़ गया। हुकुमचंद के गांव के लोग इन्हें काफी कुछ बोलने लगे परंतु इन्होंने लोगों के बातों पर ध्यान ना देते हुए अपना प्रयास जारी रखा। हुकुमचंद पहले ही विचार कर लिए थे कि कुछ भी हो जाए वह अपने खेतों में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तमाल नहीं करेंगे।
इसके बाद हुकुमचंद (Hukumchand) ने फिर से अपने खेतों में जैविक तरीके से फसल बो दिए परंतु इस बार उन्हें सफलता हासिल हुई और धीरे-धीरे खेतों में उत्पादन बढ़ाने लगा। और साथ ही साथ इनके जैविक फसल का दाम बाजारों में काफी अच्छा मिलने लगा। इनकी इस सफलता को देखकर के वहां के और भी किसान इन्हीं के मार्ग पर चलने लगे और वे लोग भी अपनी खेतों में जैविक खेती करने लगे।
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हुकुमचंद (Hukumchand Patidar) अपने खेतों में मेथी, धनिया, लहसुन और गेहूं का फसल जैविक तरीके से उपजाने लगे। इसके बाद हुकुम चंद ने स्वामी विवेकानंद जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र को जैविक प्रमाणीकरण संस्था से पंजीकृत करवा लिए। इन्होंने अपनी खेतों में ही गोवर खाद जीवामृत हरी खाद, पंच गव्य गोबर खाद जैसी कई सारी चीजें खुद से तैयार करने लगे। उन्होंने वर्मी कंपोस्ट इकाई भी लगाई है। वे बताते हैं कि हमारे खेतों में तैयार होने वाले जैविक खाद यहां के किसानों को दी जाती है। जिसमें 16000 किलो खाद तैयार किया जाता है तो उसमें से 4000 किलो खाद किसानों को दे दी जाती है। हुकुम चंद बताते हैं कि इस केंद्र से लगभग 28 देशों के लोग अनुसंधान के लिए आ चुके हैं इसके साथ-साथ सोलर राज्यों में जैविक कृषि फार्म तैयार हो गया है। हुकुम चंद बताते हैं कि राजस्थान में पहला जैविक खेती एक्सीलेंस सेंटर भी खुल गया है और यहां सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर जब भी खेती का प्रशिक्षण हो गया है। वे बताते हैं कि हमारे इन मेहनत और प्रयासों की वजह से आज यहां 500 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर जैविक तरीके से खेती की जा रही है।
हुकुमचंद पाटीदार (Hukumchand Patidar) जी को भारत के कृषि विश्वविद्यालय और कॉलेज में जैविक खेती का पाठ्यक्रम तैयार करने वाली समिति में शामिल किया गया है। हुकुम चंद जी के साथ-साथ इस समिति में और भी 14 लोग शामिल है। इन कॉलेजों में अब तक के सिर्फ कृषि विश्वविद्यालय में उद्यानिकी और वानिकी तरीके के अलग-अलग पाठ्यक्रम थे परंतु अब इन कॉलेजों में जैविक खेती के बारे में भी अलग-अलग पाठ्यक्रम को शामिल किया जाएगा।
हुकुमचंद पाटीदार जी के जैविक तरीकों से उत्पादित स्नूकर मांग सिर्फ देशों में ही नहीं विदेशों से भी किया जा रहा है। हुकुमचंद अपने जैविक फसलों को अपने देश के बाहर न्यूजीलैंड, फ्रांस ऑस्ट्रेलिया जर्मनी जापान और कोरिया जैसे देशों में अपने जैविक उत्पादन को भेज रहे हैं और इनसे काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां तैयार किया हुआ मसाला भी जर्मन स्विट्जरलैंड, जापान जैसे देशों में भेज रहे हैं। इसके साथ-साथ हुकुमचंद अपने देश के राज्यों में भी अपने जैविक फसल को दे रहे हैं। ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में भी हुकुमचंद जी के जैविक उत्पाद की मांग काफी तेजी से हो रहा है। हुकुमचंद पाटीदार जी को जैविक फसलों की कीमत बाजारों में काफी अधिक मिलती है।
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हुकुमचंद पाटीदार जी (Hukumchand Patidar) को जैविक तरीके (Organic Method) से खेती करते हुए और इनके जैविक सफलताओं को देखते हुए भारत सरकार ने 26 जनवरी 2019 को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।