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व्हीलचेयर के सहारे जिंदगी जीती रही लेकिन हौसला नही टूटा, दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल बनाई, पद्मश्री से सम्मानित हुईं

Padmashri k v rabiya incredible work for physically challenged children

एक व्यक्ति के लिए फिजिकली चैलेंज्ड होना बहुत बड़ी चुनौती है। इनमें अनेकों लोग अपने कार्यों को करने में समर्थ होते हैं तो कई असमर्थ हो जाते हैं। ज्यादातर लोग अपने छोटे-बड़े कार्योँ के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। यहां तक कि अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरी करने में असमर्थ हो जाते हैं, बदलते समय के अनुसार वह अपनों पर भी बोझ बन जाते हैं।

मजबूर शब्द का अर्थ हम बखूबी समझते हैं, कैसे व्यक्ति को मजबूर कहा जाता है। यदि कोई अपनों पर बोझ बन जाए तो इससे बड़ी मजबूरी कुछ हो ही नहीं सकती है। आज के जमाने में सबको खुद की ही पड़ी है, दूसरों की सुध लेने वाला कोई नहीं। कौन किस हालात में जी रहा है, इतना पूछने को किसी के पास समय ही नहीं है। ऐसे समयावभाव में भी एक दिव्यांग महिला सामाजिक कार्यकर्ता, जो खुद चलने में असमर्थ है, लोगों के सेवा में अपनी पूरी जिंदगी हे समर्पित कर दी है।

एक दिव्यांग होने के साथ जीना भी बहुत मुश्किल हो जाता है, लेकिन ऐसे हालात में अगर कोई दूसरे की मदद करता है तो उससे बड़ा मसीहा कोई और नहीं हो सकता। यहां तो हम सभी कार्यों को करने के लिए सक्षम है, फिर भी हार मान लेते हैं।

कौन हैं वह महिला

ख़ुद एक दिव्यांग होते हुए भी दूसरों की ज़िंदगी संवारने वाली इस मसीहा का नाम के.वी. राबिया (K.V. Rabiya) है, जो अपनी पूरी जिंदगी ही समाज सेवा में गुजारने का संकल्प ले चुकी हैं। वह खुद चलने में असमर्थ हैं, इसके बावजूद भी उनका हौसला कम नहीं होता। भले ही उनके पैर साथ नहीं देते लेकिन इरादे कभी कमजोर नहीं पड़ते। वह समाज के लिए एक मिसाल बनकर हजारों खोई हुई ज़िंदगी को वापस लौट आ रही हैं।

के.वी. राबिया (K.V. Rabiya) का जन्म 25 फरवरी 1966 को केरल (Kerala) के मल्लपुरम (Malappuram) जिले के वेल्लिलक्कड़ गांव में हुआ था। उनका बचपन भी पैरों तले नहीं गुजर पाया, वह जन्म के थोड़े समय बाद से ही पोलियो ग्रसित हो गई। उनके चलने का एकमात्र सहारा व्हीलचेयर ही रह गया। वह अपनी पूरी पढ़ाई व्हीलचेयर पर ही बैठे पूरी की और शिक्षिका बन गई।

दिव्यांग होने के बाद भी था समाज सेवा का जुनून

व्हीलचेयर पर बैठे होने के बाद भी उनमें लोगों की मदद करने का जज्बा कूट कूटकर भरा पड़ा है। वह शिक्षिका बनने के बाद सामाजिक कार्यों से भी जुड़ गई और समाज में सुधार लाने के लिए प्रयास करने लगी क्योंकि उनका बचपन से ही सपना था कि वह असहायों की मदद करें। आज उनकी कोशिश के बदौलत उनके गांव में बिजली, सड़क, पीने का पानी, बैंक, टेलीफोन आदि जैसी अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध है।

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शुरू की ‘चलनम’ नाम की संस्था

के.वी. राबिया केरल में एक “चलनम” (Chalanam) नाम की संस्था चला रही हैं, जिसके जरिए दिव्यांग बच्चों के लिए अनेकों स्कूल खोले गए हैं और उन्हें उच्च शिक्षा दी जा रही है। वह “महिला सशक्तिकरण” के लिए भी अनेकों कार्य कर रही हैं। अपने प्रयासों के बदौलत वह महिलाओं के लिए दुकानें और पुस्तकालय भी खोली हैं। इसके जरिए महिलाएं छोटे-मोटे रोजगार करने में सक्षम हो रही हैं। इतना ही नहीं राबिया शराब, दहेज, नस्लवाद और अंधविश्वास जैसे भी सामाजिक मुद्दों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ती हैं।

कैंसर और एक्सीडेंट से भी जिती जंग

राबिया एक तो बचपन से ही पोलियो ग्रसित थी लेकिन आगे भी उनकी जिंदगी में सुकून नहीं मिला, वह साल 2000 में कैंसर पीड़ित हो गई। काफी इलाज और कीमोथेरेपी के बाद वह कैंसर से तो जैसे-तैसे बाहर निकल पाई लेकिन फिर कुछ ही दिनों बाद वह दुर्घटना की शिकार हो गई। अपने ही घर में वह बाथरूम से गिरने की वजह से काफी घायल हो गई। पहले तो वह व्हीलचेयर पर भी रहकर अपनी जिंदगी जी रही थी लेकिन एक्सीडेंट के बाद वह सीधे बिस्तर पर ही आ गई। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उनका हौसला नहीं टूटा और आंदोलन जारी ही रखी।

अनेकों पुरस्कारों के साथ मिले पद्मश्री सम्मान

राबिया को उनके द्वारा किए गए इस महान कार्य के लिए साल 1994 में ‘केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय’ द्वारा “राष्ट्रीय युवा पुरस्कार” साल 2000 में ‘केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय’ द्वारा “कन्नकी स्त्री शक्ति पुरस्कार” मिला है। इसके साथ ही उन्हें राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा भी अन्य कई पुरस्कार मिले हैं। साल 2022 में के.वी. राबिया (K.V. Rabiya) को सर्वोच्च पुरस्कार पद्मश्री से भी नवाजा गया है।

के.वी. राबिया (K.V. Rabiya) की कहानी हम सब के लिए प्रेरणा स्रोत है। एक तरफ जहां हम पूरी तरह से सक्षम होते हुए भी खुद से ही हार मान लेते हैं, वही राबिया अक्षम होते हुए भी खुद के साथ दूसरों के लिए खुद को कभी अक्षम नहीं बनने दिया।

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