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एक किसान के घर से निकलकर बॉलीवुड के दिग्गज़ नामों में हुए शुमार, पंकज त्रिपाठी ने अपनी हुनर से मुकाम हासिल की

किसी ने क्या खुब कहा है, “मत कर यकिन हाथ की लकीरों पर, किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते हैं।” मनुष्य यदि चाहे तो वह अपने किस्मत के लिखे को बदल सकता है। इन्सान अपने मेहनत के आधार पर कुछ भी हासिल कर सकता है यहां तक की अपने किस्मत को भी बदलने की ताकत रखता है।

आज हम आपको बिहार के रहने वाले एक ऐसे ही कलाकर के बारे में बता रहें हैं जिसके हाथ की रेखा देखकर पंडित ने कहा था कि इसके हाथ में विदेश जाने की लकीर नहीं है। परंतु उस इन्सान ने मेहनत की और अपनी हाथ की रेखा को परिवर्तित कर दिया। वर्तमान में वह शख्स फिल्म जगत का सबसे मशहूर चेहरा है। यह शख्स ने अपने शानदार अभिनय से बड़े पर्दे पर एक लोकप्रिय चेहरा बन गया है।

Pankaj tripathi

आइये जानतें हैं उस योग्य शख्स के बारे में

पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) बॉलीवुड के सबसे वर्सटाइल, लोगों द्वारा पसंद किये जाने वाले तथा सम्मानित चेहरे हैं। फिल्म गैंग्स ऑफ़ वासेपुर (Gangs of Wasseypur) से पंकज त्रिपाठी ने लोगों का दिल जीत लिया है। पंकज ने वासेपुर के बाद मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स जैसे सीरीज के माध्यम से अपने आप को स्थापित किया। उनके इस कार्य को कोई नहीं भूल सकता है।

पंकज त्रिपाठी बिहार (Bihar) के गोपालगंज (Gopalganj) के बेलसंद गांव के निवासी हैं। पंकज के पिता एक किसान है। फिल्म जगत में जाने से पहले अपने पिता के साथ खेतों में कार्य करते थे। उनका जन्म गांव में हुआ और गांव मे ही वह पले बढ़े। पंकज गांव में ही रंगमंच और छोटे-बड़े नाटकों के माध्यम से लोगों के सामने अपने हुनर का प्रदर्शन करते। वे नाटकों में अधिकतर महिलाओं की भुमिका निभाये हैं। उसके बाद पंकज पढ़ाई-लिखाई के लिये पटना गये और वहां से उनके जीवन ने सिनेमा जगत का रुख लिया।

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पंकज जब 12वीं कक्षा में थे, उस वक्त अन्धा कानुन नाटक देखा। इस नाटक में एक्टर प्रणिता जयसवाल के काम ने पंकज को रुला दिया था। उसके बाद पंकज को थिएटर काफी आकर्षित किया। पटना में जहां भी कोई नाटक होता, वह वहां पहुंच जाते। वह साईकिल से नाटक देखने के लिये जाते थे। वर्ष 1996 में पंकज भी एक कलाकर बन गये।

न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत के दौरान पंकज ने बताया, “वह रात में एक होटल के किचन में कार्य करते और सुबह थिएटर में। एक-दो वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा। वह नाइट शिफ्ट से वापस आने के बाद 5 घंटे सोते थे उसके बाद दोपहर 2 बजे से शाम के 7 बजे तक थिएटर करते थे। फिर रात को होटल में 11 बजे से सुबह 7 बजे की शिफ्ट।” पंकज 14 वर्षों तक ऐसा जी संघर्ष करते रहे।

पंकज ऐक्टिंग सीखना चाहते थे परंतु उन्हें पता था कि उनके पिता इसके लिये पैसे नहीं देंगे। उस वक्त पंकज ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में नामांकन लेने का विचार किया। वहां नामांकन के लिये स्नातक की डिग्री जरुरी थी। पंकज ने इस चुनौती को भी पार कर लिया। उन्होंने हिंदी लिट्रेचर से स्नातक की उपाधि हासिल की। ये सब करने के साथ ही वह होटल का कार्य तथा थिएटर का कार्य भी करते रहे। उन्होंने अपने जुनून से ही इतनी सारी बाधाओं का सामना किया।

पंकज ने ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के साथ जुड़े तथा छात्र आंदोलन का भाग बनने के लिये जेल भी गये। जेल की दुनिया ने पंकज के लिये नये दरवाजे खोल दिये।

16 अक्तूबर 2004 को पंकज NSD से पास आउट होकर मुंबई (Mumbai) पहुंचे। उनके पॉकेट में 46 हजार रुपये थे। दिसंबर महीने तक उनके पास सिर्फ 10 रुपये ही बचे थे। उस समय उनकी पत्नी का जन्मदिन था और उनके पास केक या उपहार के लिये एक रुपया भी नहीं था।

पंकज ने बताया कि उनके बहुत बड़े सपने नहीं थे। वह छोटे रोल कर के रेंट चुकाना चाहते थे। लेकिन कहते है न मेहनत यदि सच्ची हो तो उसका फल अवश्य मिलता है। पंकज की मेहनत से उन्हें फिल्म वासेपुर मिली और आज वह जिस मुकाम पर है वह किसी सपने से कम नहीं है।

The Logically पंकज त्रिपाठी को अभिनय के प्रति जुनून और मेहनत के साथ-साथ उनके बेहतरीन अभिनय के लिये सलाम करता है।

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