हां मुझे अपनी कहानी बतानी जरूरी है । जरूरी इसलिए भी है कि रंग-रूप के आधार पर बने सामाजिक देश को मैं सबके सामने लाना चाहती हूं ! मैं बताना चाहती हूं की केवल मोटापा के चलते मुझे जिंदगी में कैसे संघर्ष करने परे ,मैं बताना चाहती हूं कि हम अपने बच्चों को कैसे शिक्षा दे रहे हैं जो रूप वर्ण और शारीरिक संरचना के आधार पर दूसरों की बेइज्जती करते वक्त बिल्कुल नहीं सोचते। मेरा नाम ज़ोया है और तब मैं आठवें क्लास में थी , मुझे याद है मेरा वजन 80 KG के करीब था फिर भी मैं खुश थी। मुझे नहीं पता था की अधिक वजन होना भी एक अभिशाप से कम नहीं । हर दिन स्कूल के बच्चे यहां तक कि मेरे बहुत करीबी दोस्त भी मेरे वजन और रूप को लेकर मुझे चिढ़ाते रहते थे। इन सब कारणों को लेकर मैं इतनी परेशान थी कि मैं अपना पढ़ाई भी ढंग से नहीं कर पाती थी । मैं इतनी मजबूर थी कि इस समस्या के बारे में किसी को बोल भी नहीं पा रही थी यहां तक कि अपने पैरंट्स को भी नहीं बोल पा रही थी क्योंकि मेरे हिसाब से इसमें बोलने लायक कुछ था भी नही। स्कूल में बीते रहे हर दिन मुझे काटने लगे थे । मैं अपने दोस्तों से आंख नही मिलाना चाहती थी , उनसे नज़र बचाकर ख़ुद को महफूज़ समझती थी । लेकिन हर रोज़ के तानों ने मुझे डिप्रेशन का शिकार बना दिया जिसके कारण कई बार मेरे ज़हन में आत्महत्या करने का भी खयाल आया। हर रोज़ की परेशानियों से मैं क्लिनिकली डिस्टर्ब हो गई और बाइपोलर डिसऑर्डर , डिप्रेशन और कई बार अटैक का भी शिकार हुई ।मैं छोटी-छोटी बातों को लेकर रोना शुरू कर देती थी , हर वक्त कमरे के अंधकार में रहना मुझे महफूज़ लगने लगा था । मैं बहुत ज्यादा नकारात्मक हो गई थी। बहुत दिनों कि खुद से लड़ाई के बाद मुझे लगा की इस तनाव से निकलने के लिए मुझे ही कुछ करना पड़ेगा । ऐसा कोई नहीं है जो मुझे इस परेशानी से निकाल पाए फिर मैंने खुद के सेहत पर ध्यान देना शुरू किया मैं जिम जॉइन की, दौड़ने जाने लगी और घर में भी एक्साइज करना शुरू कर दी। काफी मशक्कत के बाद मैंने 40 किलो का वजन कम किया और मोटापे से पूरी तरह छुटकारा पाने में सफल हुई। हालांकि मोटापा कोई बीमारी नहीं है । लेकिन इसके शिकार काफी बच्चे हो जाते हैं और हमारे समाज की सबसे बुरी बात यह है कि हम हम उन छोटे बच्चों को मदद करने की बजाय उन्हें चिढ़ाने का मौका ढूंढ लेते हैं । जिससे वो डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं । मैं सभी लोगों से दरख्वास्त करती हूं की छोटे उम्र के बच्चे आपके ताने को सहने में सक्षम नहीं होते हैं यह आपके लिए मजाक हो सकता है लेकिन उन बच्चों के लिए बहुत बड़ी बड़ी बात है । कोशिश कीजिए की इन बच्चों को अधिक प्यार दे ताकि उनका हौसला मजबूत रहें। जोया के प्रयास को Logically नमन करता है और अपने पाठकों से ऐसे बच्चों का विशेष ख्याल रखने की अपील करता हैं।
मेरी कहानी :मोटापा के कारण लोगों के ताने सुनकर मैं सुसाईडल हो चुकी थी : पुरे समाज ने मुझे डिप्रेशन का शिकार बना दिया था
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Prakash Pandey
Prakash Pandey is an enthusiastic personality . He personally believes to change the scenario of world through education. Coming from a remote village of Bihar , he loves stories of rural India. He believes , story can bring a positive impact on any human being , thus he puts tremendous effort to bring positivity through logically.
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