Sunday, December 10, 2023

इस गांव में गाय के गोबर के बदले मिलेगा गैस सिलेंडर, पूसा के एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की अनोखी पहल

बदलते समय के साथ लोगों की जीवनशैली में भी बदलाव आया है। एक तरफ जहां लोगों के काम को आसान बनाने के लिए तरह-तरह की मशीनें उपलब्ध हैं लेकिन आज भी ऐसे हिस्से जहां विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ है।

भले ही लोग आज गैस सिलेंडर का उपयोग कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों की बात करें, तो वहां आज भी लोग लकड़ी जलाकर खाना बनाने को मजबूर हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना को लागू किया था, जिसके तहत देश के करोड़ों गरीब परिवारों को भोजन बनाने के लिए चूल्हा और सिलेंडर उपलब्ध कराने का प्रावधान था। हालांकि बहुत से परिवारों ने पहली बार इसका लाभ उठाया परंतु पैसों की तंगी के कारण वह दूसरी बार सिलेंडर रिफिल नहीं करवा सकें। ऐसे हालात में गरीब परिवारों के लिए बिहार के मधुबनी जिले में एक प्रोजेक्ट तैयार की जा रहा है, जिससे इन्हें सिलेंडर रिफिल कराने में मदद मिलेगी। – pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

केंद्रीय कृषि विद्यालय (Agricultural University) समस्तीपुर पूसा का अद्भुत प्रोजेक्ट

बिहार के मधुबनी जिले के सुखैत गांव में लगभग 104 परिवार रहते हैं मगर उनके साथ भी पैसों की समस्या है। इन गरीब परिवारों के दुख को समझते हुए डॉ• राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा ने एक अद्भुत प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसमें गोबर के बदले गैस सिलेंडर देने का नियम है। इस प्रॉजेक्ट की शुरूआत मधुबनी जिले के सुखैत गांव से की गई है। – pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

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पायलेट प्रोजेक्ट से किसानों को मिलेगा रोजगार

सेंट्रल एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा के कुल गुरु डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव इस योजना के बारे में खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इस प्रॉजेक्ट द्वारा हम सुखैत गांव के किसानों को रोजगार भी दे पाएंगे। इससे उनके जीवन में काफी बदलाव भी आएगा। अगर लोगों द्वारा इस प्रॉजेक्ट में ऐसे ही सहयोग मिलते रहा तो धीरे -धीरे इसे प्रत्येक गांव में लागू किया जा सकता है। इतना ही नहीं इस प्रॉजेक्ट के साथ जुड़कर किसान ऐसे ही गोबर देते रहेंगे, तो उन्हें गैस सिलेंडर को रिफिल कराने के प्रत्येक महीने पैसे भी मिलते रहेंगे। – pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

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पायलेट प्रोजेक्ट की शुरुआत क्यों हुई?

मीडिया से बात करते हुए वरिष्ठ भूमि वैज्ञानिक डॉ शंकर झा ने इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया कि जब वह इस प्रोजेक्ट के लिए शोध कर रहे थे, तब उन्होंने गरीब परिवार के घरों में गैस चूल्हा तो देखा पर सिलेंडर में गैस नहीं था। इसका एक मात्र कारण आर्थिक तंगी था। बहुत से परिवार ऐसे भी थे जहां केवल महिलाएं थी, जो पूरे परिवार की जिम्मेदारियों को लेकर चल थी। उनके पति रोजगार के लिए शहर गए हुए थे। उनका कहना है कि आज भी यहां औरतों को भोजन बनाने के लिए लकड़ियों और उपले का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने लोगों के घरों से गोबर लेना शुरू कर दिया।

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हर घर से प्रत्येक दिन 20 से 25 किलो गोबर लेते है

पायलेट प्रोजेक्ट से जुड़े हुए सभी किसानों से प्रत्येक दिन लगभग 20 से 25 किलो गोबर लिया जाता है। गोबर लेने के लिए एक ठेला गाड़ी आती है, जिसमें गोबर के साथ ही साथ पुआल, घरेलु कचड़े और जलकुंभी भी लिया जाता है। – pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

गोबर से रोजगार की संभावना

इस योजना के तहत गोबर से 500 टन वर्मी कम्पोस्ट बनानी है परंतु पहली बार में केवल 250 टन खाद बनाने का कार्य शुरू किया गया। इस प्रॉजेक्ट में 60 फीसदी गोबर और 40 फीसदी अनुपयोगी सामग्री के साथ मिलाकर वानस्पतिक खाद तैयार किया जा रहा है। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी ने स्मोकल्स रूरल सेनिटाइजेशन प्रोग्राम के जरिए अब तक लगभग 28 किसान परिवार को सिलेंडर दिया जा चुका है। अगर देखा जाए तो पूरे गांव में अभी तक लगभग 56 परिवार इस प्रॉजेक्ट के साथ जुड़ चुके हैं। आने वाले दिनों में इस प्रॉजेक्ट के जरिए 500 टन वर्मी कंपोस्ट बनाकर किसानों को दिया जाएगा, जिससे लाखों रुपए बचाए जा सकेंगे। इसके अलावा किसान रोजगार के रूप में ऑर्गेनिक खेती भी कर सकेंगे और लकड़ियों पर भोजन भी नहीं बनाना पड़ेगा। आने वाले 5 वर्षों में यूनिवर्सिटी इस प्रोजेक्ट को गांव वालों को सौंप देगी।

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भविष्य में कार्य करने की रूपरेखा में आएगा बदलाव

यूनिवर्सिटी के कुलगुरु डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि आने वाले समय में वह इस प्रोजेक्ट को सभी पंचायतों, निजी कंपनियों और एनजीओ में लागू कराने के विषय में बातचीत कर रहे हैं।pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung

लोगो के जीवन में आया बदलाव

इस प्रॉजेक्ट से जुड़ने के बाद गांव वालो की जीवन में काफी कुछ बदलाव आया है। उनके लिए सबसे बड़ी खुशी है कि उन्हें हर महीने सिलेंडर लेने के लिए पैसों की चिंता नहीं करनी पड़ती है। इस योजना से जुड़ने वाले सुनील यादव का कहना है कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण सिलेंडर के पूरे पैसे कभी जमा नहीं हो पाते थे, इसलिए उन्हें आज भी लकड़ियों पर खाना बनाना पड़ता था मगर जब से वह इस योजना से जुड़े हैं, उन्हें बहुत सारी परेशानियों से छुटकारा मिल गया है। इस प्रॉजेक्ट में सुनील का भी सहयोग सराहनीय है क्योंकि उन्होंने ही वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए जमीन उपलब्ध कराई है। – pilot project of agriculture university for providing gas cylinder instead of cow dung