कहते हैं लड़कियां लड़कों से कम नही होतीं। बस जरूरत होती है तो उन्हें मौके की, जिससे वे अपनी काबिलियत सभी को दिखा सकें। आजकल की लड़कियां लड़कों के बराबर कदम मिलाकर चल रही हैं। हर क्षेत्र में लड़कियां अपना परचम लहरा रही हैं। चाहे सेना की भर्ती हो, डॉक्टर हो, पायलट हो, या आईएएस हो लड़कियां हर जगह पहुंच रही हैं। अब तो लड़कियां कृषि के भी क्षेत्र में आगे जा रही हैं।
ऐसी हीं कहानी है एक महिला कृषिका प्रतिमा आदिगा की। बेंगलुरु की प्रतिमा जिन्होंने 19 साल तक कन्नड़ चैनल के कुकिंग शो में शेफ का काम किया है, आज वो गार्डेनिंग कर रही हैं। प्रतिमा अपने घर के तीसरे और चौथे मंजिले पर अपनी जरूरत की सारी सब्जियों की खेती करती हैं। सिर्फ आलू और प्याज के लिए ही उन्हें बाजार जाना पड़ता है। प्रतिमा बताती हैं कि उन्होंने कन्नड़ चैनल के कुकिंग शो में तो काम किया हीं है, साथ हीं फ्रीलांसिंग प्रोजेक्ट और करीब 2600 एपिसोड में काम कर चुकी हैं। लेकिन अपने इस कार्य के कारण वे अपने परिवार को समय नहीं दे पाती थीं इसलिए उन्होंने अपने उस काम से लंबी छुट्टी ली और परिवार के साथ समय बिताया। साथ रहकर और समय व्यतीत कर के उन्हें ये समझ में आया कि वे सब जो खाते हैं स्वच्छ नहीं बल्कि रसायनयुक्त है। फिर उन्होंने अपने परिवार को रसायनमुक्त भोजन देने के लिए छत पर हीं गार्डनिंग शुरू कर दी।
प्रतिमा के पति सिविल इंजीनियर हैं। लेकिन उन्हें प्रकृति से बहुत प्यार है और गार्डनिंग का भी शौक रखते हैं। इसलिए उन्होंने 15 साल पहले ही अपना घर बनवाते वक्त गार्डेनिंग के लिए बड़ा स्पेस खाली छोड़ा था और आज उस जगह का उपयोग प्रतिमा कर रही हैं। सबसे पहले प्रतिमा ने 22 पौधे लगाए। लेकिन जैसे-जैसे उपज अच्छी होती गई तो वे पौधों की संख्या भी बढ़ाती गईं और आज प्रतिमा 350 से भी ज्यादा गमलों और ग्रो बैग्स में पौधे उगा रही हैं। साथ हीं वे सस्टेनेबिलिटी और होम कंपोस्टिंग का भी ध्यान खुद हीं रखती हैं। वे पौधों के लिए खाद किचेन के वेस्ट पदार्थों से ही तैयार करती हैं।
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प्रतिमा इस काम की ट्रेनिंग दूसरों को भी देती हैं। उन्होंने अपनी सोसाइटी में 130 लोगों का एक ग्रुप बना रखा है, जिसका नाम है “कॉम्पोस्टर्स इन राजाजीनगर”। जिसमें लोगों को कंपोस्टिंग की ट्रेनिंग देती हैं। उस ग्रुप के सभी सदस्यों ने ट्रेनिंग लेकर कंपोस्टिंग का काम भी शुरू कर दिया है। बहुत से लोगों ने तो सब्जियां भी उगानी शुरू कर दी है। साथ हीं वे रिसाइकलिंग का भी काम करते हैं, जैसे- गमले की जगह पुराने बाल्टी और डब्बे का इस्तेमाल, खाद के लिए किचेन के वेस्ट पदार्थों का इस्तेमाल, इत्यादि।
प्रतिमा बताती हैं कि वे पौधे उगाने के लिए बीज का इस्तेमाल करती हैं। वे कई विदेशी बीजों को भी इस्तेमाल में लाती हैं और ऐसे ही अलग-अलग मौसम में अलग-अलग सब्जियां उगाती हैं। उनके गार्डन में- खीरा, गाजर, गोभी, ब्रोकली, तोरई, शलजम, अदरक, नींबू, शकरकंद, खरबूज, बैंगन, पैठा, लौकी, पत्तेदार सब्जियां तथा फूल भी उगाए जाते हैं। गार्डनिंग के इन 4 सालों में उन्होंने अब तक 35 किलो कद्दू, 20 किस्म के बिन्स, 10 किस्म के शकरकंद उपजाए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अपने गार्डन में हल्दी भी उगा रखी है। पिछले वर्ष लगभग 4 किलो हल्दी उगाए गए और 1 किलो के पाउडर भी बनाए गए। तो इस तरह उन्हें और उनके परिवार को जैविक सब्जियों के साथ जैविक मसाले भी मिल रहे हैं। इस लॉकडाउन में उनके परिवार को सब्जियों के लिए कभी सोचना नहीं पड़ा।
प्रतिमा बताती हैं कि उन्हें गार्डेनिंग के लिए प्रोत्साहन अपने पिता से मिला और आज इस काम में उनके पति और बेटा भी उनकी सहायता करते हैं। वे कहती हैं कि गार्डेनिंग करके उनका मूड फ्रेश रहता है क्योंकि उन्हें और उनके परिवार को शुद्ध भोजन मिल रहा है। वे चाहती हैं कि हर इंसान अपनी जरूरत की सब्जियां खुद हीं उगाये ताकि वो और उसका परिवार स्वस्थ रह सके।
प्रतिमा द्वारा किए गए जैविक खेती करने और समूह बनाकर इस जैविक खेती वाली पहल से जोड़ने हेतु The Logically प्रतिमा जी की कोटि-कोटि प्रशंसा करता है।