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प्रोफेसर शांता सिन्हा: पिछले 30 वर्षों के प्रयास से 10 लाख बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल से बचा चुकी हैं

शांता सिन्हा(Shanta sinha) आज किसी पहचान की मोहताज नही हैं। एक ख्याति प्राप्त बालश्रम विरोधी भारतीय कार्यकर्ता, बालश्रम आयोग की पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष और पद्म श्री से सम्मानित शान्ता सिन्हा की कई और भी उप्लब्धिया हैं। आन्ध्र प्रदेश की इस महिला ने बालश्रम से लड़कर नही बल्कि सबको समझाकर यह लड़ाई जीती।

7 जनवरी 1950 में आन्ध्र प्रदेश के वेल्लोर में सात भाइयो की इकलौती बहन शान्ता सिन्हा(Shanta sinha) का जन्म हुआ था। इन्होने अपनी आठवी तक कि पढ़ाई सेंट एनस हाई स्कूल , सिकंदराबाद से की और नवी से बारहवीं तक की शिक्षा किस हाई स्कूल फ़ॉर गर्ल्स से प्राप्त की। 1972 में उस्मानिया विश्विद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर्स की पढ़ाई की और आन्ध्र प्रदेश के नक्सली आंदोलन में पीएचडी के लिए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में दाखिल लिया। पीएचडी की पढ़ाई के दौरान इन्होंने अपने सहपाठी से विवाह किया। 1979 में इन्होंने हैदराबाद केंद्रीय विश्विद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर के तौर पर नौकरी शुरू की।

mv foundation

एमवी फाउंडेशन की शुरआत

1991 में इन्होंने एमवी फाउंडेशन(M V foundation) की शुरुआत की। शान्ता सिन्हा ने बालश्रम के खिलाफ अपनी लड़ाई का विचार अपब परिवार से साझा किया और अपने दादा जी के नाम पर ममीडिपुड़ी वैंकटरगैया फाउंडेशन रखा। इन फाउंडेशन का लक्ष्य बाल मजदूरी को खत्म कर बच्चो को स्कूल भेजना था।

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शान्ता सिन्हा ने अपने इस काम की शुरुआत रंगारेड्डी ज़िले के ग़रीब गांव से की।

एमवी फाउंडेशन के सामने चुनौतियां

बालश्रम के खिलाफ से लड़ाई आसान नही थी पर शान्ता सिन्हा ने इससे लड़ने के लिए सबको शांति से समझाने का रास्ता चुना। उनके फाउंडेशन के सदस्य गांव में जाकर गांव वालों से बात कर के उनकी परेशानी जानने की कोशिश करते और उन सबको बालश्रम के परिणामो के बारे में बताते। शुरू में गांव वालो का कहना था कि पढ़ाई अमीरों के बच्चो के लिए हैं। अगर बच्चा कमाता हैं तो इनके घर में दो जून की रोटी आती हैं। पढ़-लिख के वह क्या कर लेगा। फाउंडेशन के सदस्य गांववालो के इस मानसिकता को बदलने की कोशिश करते।

एमवी फाउंडेशन की उपलब्धियां

एमवी फाउंडेशन (M V foundation)की मेहनत रंग लाई और आज 168 गांव बालश्रम से मुक्त हैं। 20 साल में एमवी फाउंडेशन ब्रिट कोर्स क्लास शिविर के माध्यम से कम से कम 60,000 बच्चो को मुख्य शिक्षा से जोड़ा हैं। आज इसमे 3,000 शिक्षक सहयोग दे रहे हैं। आज एमवी फाउंडेशन से 86 हज़ार स्वयंसेवक जुड़े हैं। अपने काम के वजह से 1998 में शान्ता सिन्हा को पद्म श्री (Padma shree) से सम्मानित किया गया। 1999 में इन्हें अल्बर्ट शंकर अंतराष्ट्रीय पुरस्कार और 2003 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार (Ramon magsaysay award)से सम्मानित किया गया।

शान्ता सिन्हा जैसी महिलाएं आज सब के लिए एक प्रेरणा हैं। इन्होंने अपने लिए ना सोच कर दुसरो के लिए सोचा और इन्हें रास्ता दिखाया। बालश्रम जैसी कुरीति के खिलाफ उन्होंने जिस तरह अपनी आवाज़ बुलंद की वह क़ाबिले तारीफ हैं।

मृणालिनी बिहार के छपरा की रहने वाली हैं। अपने पढाई के साथ-साथ मृणालिनी समाजिक मुद्दों से सरोकार रखती हैं और उनके बारे में अनेकों माध्यम से अपने विचार रखने की कोशिश करती हैं। अपने लेखनी के माध्यम से यह युवा लेखिका, समाजिक परिवेश में सकारात्मक भाव लाने की कोशिश करती हैं।

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