आज की कहानी एक ऐसी मां और बेटो की जोड़ी की है, जिन्होंने मशरूम की खेती को एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया है। पंजाब की रहने वाली एक मां ने मशरूम की खेती की शुरुआत की और इनके चारों बेटों ने उसे अपनी क्षमता से एक ब्रांड के रूप में पहचान दिलाई। पंजाब के अमृतसर जिले के धरदेव गांव के मनदीप सिंह को आज पूरा पंजाब जानता है। यह रंधावा मशरूम नाम की ब्रांड के तहत बड़े स्तर पर मशरूम का उत्पादन और कारोबार करते हैं।
रंधावा मशरूम(Randhawa mushroom) की शुरुआत
मंदीप सिंह बताते हैं कि मशरूम उत्पादन की शुरुआत उनकी मां ने की थी। उनके पिताजी पंजाब पुलिस में नौकरी किया करते थे और उस समय उनकी माँ स्वेटर बुना करती थी ।पर जैसे जैसे लोगों में रेडीमेड स्वेटर का क्रेज बढ़ा, वैसे-वैसे हाथ से बुने स्वेटर की मांग कम होती गई। तब उनकी मां ने यह काम छोड़कर मशरूम उत्पादन करने का सोचा और इस तरह से उन्होंने 1989 में मशरूम की खेती की शुरुआत की, जिसे आगे आज उनके चार बेटे बढ़ा रहे हैं।

चारो भाई की अलग-अलग ज़िम्मेदारी
मनदीप कहते हैं कि उनका परिवार 30 वर्षों से मशरूम की खेती कर रहा है। उनके चारों भाई की इसमें अलग-अलग भूमिका है। उनके भाई मंजीत का काम प्रोडक्शन संभालना है, हरप्रीत सिंह का काम स्पॉन बनाना और प्रोसेसिंग का है तो वही मंदीप का काम मार्केटिंग, बैंकिंग, मीडिया संबंधित मामलों को संभालना है। इनके एक भाई ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं पर वह जब भी यहां आते हैं तो वह इन तीनों के काम में हाथ बढ़ाते हैं।
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आज करोड़ो का टर्नओवर हैं
मंदीप के अनुसार रंधावा मशरूम के तहत हर दिन 8 क्विंटल मशरूम उत्पादन होता है जिसमें बटन, ओयस्टर, मिल्की मशरूम जैसी 12 किस्म के मशरूम का उत्पादन और कारोबार होता है। इनका वार्षिक टर्नओवर 3.5 करोड़ रुपए का है।

जब कृषि वैज्ञानिकों ने 4-5 साल मशरूम उत्पादन को मना किया
मनदीप बताते हैं कि उनके इस सफर में एक कठिन समय भी आया था जब 2001 में वेट बबल नाम की बीमारी इनके मशरूम में लग गई थी। तब कृषि वैज्ञानिकों ने इन लोगो को सलाह दी कि 4 से 5 साल तक मशरूम उत्पादन नहीं करें और उसे कहीं दूसरी जगह करें। मनदीप कहते हैं कि वह इतने साल रुक नहीं सकते थे इसलिए उन लोगों ने यह निश्चय किया कि घर से 2 किलोमीटर दूर बटाला अमृतसर हाईवे पर इनकी जो 4 एकड़ की जमीन है, उस पर मशरूम उत्पादन किया जाए। यहां पर हर बार से भी अच्छी मशरूम उत्पादन हुई पर परेशानी उसे बाजार में बेचने में आई। इन्हें मशरूम के लिए कोई ढंग का खरीदार नहीं मिल पा रहा था और जो मिल रहा था वह इसकी बहुत ही कम पैसे दे रहा था। तब इन्होंने अपना आउटलेट शुरू करने का निश्चय किया जिससे इन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल सके।
अत्याधुनिक तरीके से मशरूम उत्पादन
मनदीप बताती है कि पहले वह लोग हट सिस्टम से मशरूम उत्पादन किया करते थे, जिससे सिर्फ ठंड में ही मशरूम उत्पादन संभव था। फिर इन्होंने इंडोर कंपोस्टिंग मेथड से मशरूम उत्पादन शुरू किया, जिसमें एसी रूम में मशरूम उत्पादन किया जाता है। इससे सालों भर मशरूम उत्पादन हो सकता है। अभी मनदीप के पास 12 मशरूम ग्रोइंग रूम है। वही बीजों को तैयार करने के लिए यह लोग टिशु कल्चर तकनीक अपनाते हैं। इन लोगों को मशरूम बेचने के लिए अब कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता है। इनके फॉर्म पर ऐसी सुविधा है जिससे यही पर यह लोग रिटेल और होलसेल मशरूम बेच सकते हैं। मशरूम की कीमत यह लोग खुद तय करते हैं ना कि कोई खरीददार। अगर बात बनी तो खरीदार मशरूम खरीदते हैं, नहीं तो यह लोग गांव के ही प्रोसेसिंग यूनिट में इसे भेज देते हैं।

महिलाओं को रोजगार देते हैं
मनदीप कहते हैं कि इनके काम में 100 से भी अधिक स्टाफ है। जिसमें से 98 फ़ीसदी महिलाएं है इस काम में छोटी से छोटी बारीकियों पर बहुत ध्यान देना पड़ता है और यह काम महिलाओं से अच्छा कोई नहीं कर सकता। इनके सारे स्टाफ की देखभाल की जिम्मेदारी इनकी मां पर है।
मशरूम के अन्य उत्पाद भी बनाते हैं
रंधावा मशरूम के तहत मशरूम के अलावा इससे बने उत्पादों का भी कारोबार होता है। इसमें मशरूम के बने आचार, बिस्किट, सूप पाउडर, भुजिया आदि जैसे उत्पाद बनाए और बेचे जाते हैं। आज मनदीप के उत्पादो की मांग अमृतसर के अलावा पठानकोट गुरदासपुर बटाला जालंधर जैसे शहरों में भी है। इसके अलावा इनकी उत्पाद थर्ड पार्टी के जरिए दुबई भी जाते हैं। मनदीप को इनकी मार्केटिंग के कारण 2017 में आईसीएसएआर द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

भविष्य की योजना
मंदीप अपने भविष्य की योजना के बारे में बताते हैं कि आने वाले महीनों में यह लोग ग्रुप ऑन डिमांड के तहत पंजाब की बड़े-बड़े शहरों में होम डिलीवरी की सुविधा मुहैया कराने जा रहे हैं। जिससे इनकी कमाई में इजाफा होगा।
मंदीप सिंह(Mandip singh) किसानों से अपील करते हैं कि उन्हें पारंपरिक खेती के अलावा एक ऐसी फसल भी लगानी चाहिए जिससे उनकी आय में वृद्धि हो। वह सुझाव देते हैं कि बच्चों को स्कूल में शुरू से ही कृषि के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे कि वह बड़े होकर कृषि को भी एक पेशे के रूप में लें और तरक्की करें और देश के विकास में मदद करें।
