हमलोगों ने कई बार ऐसा अनुभव किया होगा कि जिंदगी में परिस्थितियां ऐसे कई अवसर भी देती हैं, जिससे लोग अपनी जिंदगी को संवारने के लिए अच्छा काम कर सकते हैं। महिलाओं के लिए एक बेहतरीन परिस्थिति का मिलना भी एक बहुत बड़ी बात होती है, क्योंकि महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
आज हम बात करेंगे एक ऐसी महिला की, जिसने अपने संघर्ष के बदौलत एक अवसर पाया और उसे रोजगार में बदलकर अपनी आजीविका चलाने का काम भी किया है और आज के समय में अच्छी कमाई करने के साथ हीं साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार प्रदान करने के लिए सशक्त बना रही हैं।
तो आइए जानते हैं उस बहादुर महिला से जुड़ी सभी जानकारियां :-
कौन है वह महिला?
हम पुष्पा झा (Pushpa Jha) की बात कर रहे हैं, जो मूल रूप से बिहार (Bihar) के दरभंगा जिला के बलभद्रपुर गांव की रहने वाली हैं। उनकी उम्र 43 साल है तथा उनके पति पेशे से शिक्षक है। आज के समय में इनकी पहचान मशरुम के खेती के साथ हीं साथ महिलाओं को मशरुम के खेती के लिए प्रशिक्षित करने वाली महिला के रुप में है।
मशरूम की खेती से पहले हुई प्रशिक्षित
पुष्पा झा (Pushpa Jha) के पति पेशे से एक शिक्षक थे। उनके पति को किसी ने मशरुम के खेती के बारे में कोई जानकारी दी, इसके बाद उनका झुकाव मशरुम के खेती के तरफ हुआ। उन्होंने इसके बारे में अपने पत्नी को बताया क्युकिं वह जानते थे कि उनकी पत्नी भी चाहती थी कि घर पर खाली बैठे रहने के बजाय कुछ काम करूं। फिर दोनो ने समस्तीपुर के पूसा विश्वविद्यालय से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने का फैसला किया। ट्रेनिंग के समय सीटे पूरी हो चुकी थी, जिसके कारण उनलोगों को काफी परेशानी हुई। अंततः दोनों का दाखिला हुआ और दोनों ने एक साथ छह दिनों की ट्रेनिंग पूरी की।
शुरु की मशरुम की खेती
समस्तीपुर के पूसा विश्वविद्यालय से मशरुम के खेती की ट्रेनिंग के बाद पुष्पा झा (Pushpa Jha) तथा उनके पति जब घर लौट रहें थे उसी दौरान उनलोगों ने कुछ मशरूम खरीदा था और उसका स्वाद उन्हें काफी पसंद आया। इसके बाद उन्होंने मशरूम की खेती करने का फैसला किया। वे लोग पूसा विश्वविद्यालय से ही 1000 बैग लाए और दो कट्ठे के अपने खेत में झोपड़ी बनाकर मशरूम की खेती शुरू कर दी। एक बैग में करीब 800 से 1000 ग्राम मशरूम थे। इस तरह उनलोगों ने मशरुम का उत्पादन शुरु किया।
कठिन रहा डगर
मशरुम के खेती की शुरुआत के बाद पुष्पा झा (Pushpa Jha) तथा उनके पति को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। शुरुआत में उन्हें कई सालों तक अनुभव ना रहने तथा मशरुम का डिमांड कम रहने के कारण नुकसान का सामना करना पड़ा। कई बार तो गाँव के लोगों द्वारा उन्हें ताने सुनने को मिलते थे। एक समय में गाँव के कुछ लफंगों ने तो उनका मशरुम की खेती वाला झोपड़ी हीं जला दिया था। ऐसे तमाम परेशानियों को झेलने के करीब पाँच साल बाद उनकी स्थिति समान हुई। आज के समय में बिहार में मशरूम का काफी डिमांड है, जिसके कारण अब उनकी भी आमदनी काफी अच्छी हो गयी है।
पोषक तत्वों से भरपुर है मशरूम
मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर आहार के तौर पर जाना जाता है। इसमें भरपुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर होता है। इसमें बहुत कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जिससे आपका वजन और ब्लड शुगर लेवल भी नियंत्रित रहता है इसलिए लोगों के बीच इसकी मांग भी बहुत है।
अब हो रही है अच्छी कमाई
पुष्पा झा (Pushpa Jha) वर्ष 2010 से हीं मशरूम की खेती कर रही हैं। उन्हें शुरूआती पाँच साल तो नुकसान का सामान करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी उन्होंने संघर्ष जारी रखा। आज के समय में उनके पास हर दिन करीब 10 किलो मशरूम का उत्पादन होता है, जिसे वह 100 से 150 रुपये प्रति किलो की दर से बेचती हैं। इस तरह, उन्हें हर दिन कम से कम 1000-1500 रुपये की कमाई आसानी से हो जाती है।
अब महिलाओं को दे रही हैं, मशरूम के खेती की ट्रेनिंग
पुष्पा झा (Pushpa Jha) को कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा ट्रेनिंग देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। उन्हें जहाँ से भी आमंत्रण मिलता है, वे वहां जाती हैं और मुफ्त ट्रेनिंग भी देती हैं। उन्होंने वर्ष 2015 से महिलाओं को ट्रेनिंग देने की शुरुआत की थी। मशरूम के खेती के लिए फ्री ट्रेनिंग देने के साथ हीं साथ वे बीज भी देती है। इतना हीं नहीं वह जरूरतमंद महिलाओं की मशरुम के खेती के लिए आर्थिक मदद भी करती हैं। उनका कहना है कि वह 2015 से अभी तक 20 हजार से भी ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दे चुकीं हैं।
सशक्त बन रही हैं महिलायें
पुष्पा झा (Pushpa Jha) के द्वारा मशरुम की खेती के लिए दिए जाने वाले प्रशिक्षण से ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सशक्त हो रही हैं तथा मशरुम के खेती की तरफ भी ध्यान दे रही है। उनके द्वारा प्रशिक्षित हो चुकी कुछ महिलाएं ऐसी भी है, जो मशरूम की खेती के माध्यम से ना केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी उदाहरण बन रही हैं।