Wednesday, December 13, 2023

इस घर मे लगे हैं 7000 से भी अधिक प्रजाति के फूल, जोधपुर के रविन्द्र काबरा ने अपने घर को बनाया ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’

जोधपुर के मेड़ती गेट स्थित कुमाचन हाउस(Kumachan House at Medti Gate, Jodhpur) निवासी रवींद्र काबरा (Ravindra Kabra) ने पौधों के प्रति अपने लगाव को समझते हुए अपने हाउस-गार्डन को ही ऐसा रुप दे दिया है कि अब वो किसी ‘फूलों से भरी घाटी’ से कम नही लगता है।

देश-विदेश की विभिन्न प्रजातियों के 7000 पौधों का खज़ाना लिये रवींद्र काबरा द्वारा बनाई गई ‘गोकुल – द वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ आज एक पर्यटक स्थल के रुप में पहचानी जाने लगी है। यहां आप रंग-बिरंगे खुशबू वाले पौधों के साथ-साथ हर्बल पौधों की अद्भूत वैराइटिज़ को देखकर हिपनोटाइज़ हुए बिना नही रह पाएंगे। भारत ही क्या बाहरी मुल्कों के लोग भी इस ‘फ्लावर्स वैली’ को देखने आते हैं।

flower farming

पेड़-पौधों को अपनी संतान जैसा समझते हैं रवींद्र काबरा

बेशक ही ‘वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ शब्द सुनकर आपके दिमाग में जिस स्थान के बारे में सबसे पहले ख्याल आता होगा वो कश्मीर या हिमाचल जैसी पहाड़ी जगहों या किन्ही खूबसूरत वादियों के बीच स्थित फूलों से महकती घाटी से संबंध रखता होगा। लेकिन, जोधपुर के मेड़ती गेट स्थित कुमाचन हाउस में रहने वाले रवींद्र काबरा बागवनी के प्रति अपने शौक के कारण घर में ही स्थित अपने गार्डन में पौधों को न केवल शौकिया और प्रोफेशनल तौर पर लगाते हैं बल्कि अपने बच्चों की भांति ही एक-एक पौधे की देखभाल भी करते हैं। पौधौं के प्रति अपने इसी लगाव के कारण उन्होने अपने गार्डन को खूशबूदार फूलों से भरी एक घाटी का रुप दे डाला है।

Rabindra Kabra flower farming

अपने दादा जी की स्मृति में काबरा ने बनाई है ‘गोकुल – द वैली ऑफ फ्लॉवर्स’

पिछले 50 सालों से बागवानी कर रहे रवींद्र काबरा की पौधों में दिलचस्पी तब से उत्पन्न हुई जब वे मात्र 10 साल के थे और अपने दादा गोकुलचंद काबरा के साथ गार्डन में जाया करते थे। उसी दौरान उन्होंने भी गार्डनिंग करना सीखा। इसीलिए, अपने दादा जी की स्मृति में बड़ी मेहनत से तैयार किये गये इस गार्डन को रवींद्र ने ‘गोकुल – द वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ नाम दिया है।

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व्यवसाय में लगातार मिल रही असफलता के कारण डिप्रैसड हो चुके रवींद्र को गार्डनिंग ने नया जीवन दिया

रवींद्र काबरा कहते हैं – “पूर्व में मेरी एक स्टील फैक्ट्री थी, एक इलैक्ट्रॉनिक आइटम्स का शोरुम भी था लेकिन दुर्भाग्यवश किसी भी काम में सफलता नही मिली और इन परिस्थितियों ने मुझे डिप्रैशन में पहुंचा दिया उस दौरान मेरे भीतर से जीवन जीने की इच्छा ही ख़त्म हो गई थी। तकरीबन तीन साल ऐसे ही गुज़र गये फिर अचानक जैसे मेरे भीतर से एक आवाज़ आई कि क्यों न अपने पैशन को ही साकार रुप देना शुरु किया जाये और मैंने छोटे स्तर पर लोगों के गार्डन को मेंटेन करना शुरु कर दिया। लगभग एक साल बाद मुझे जोधपुर में ही ‘अंसल ग्रुप डेली’ की तरफ से एक बड़ा प्रोजेक्ट मिला। इसके साथ-साथ मैनें अलग-अलग शहरों में सरकारी और डिफेंस प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया। तत्पश्चात मैंने एज़ लैंडस्केप कंसलटैंट अपना काम शुरु किया। कहना गलत न होगा मानों इन पौधौं की वजह से ही मुझे आज नवजीवन मिला है”

Rabindra Kabra flower farming

‘गोकुल – द वैली आफ फ्लॉवर्स’ में आपको मिलेंगे दुर्लभ प्रजातियां के पौधे

रवींद्र के गार्डन में हर मौसम में खिलने वाले फूल पाये जाते हैं। यहां हॉलैंड के ट्यूलिप के अलावा 250 प्रजातियों के गुलाब के फूल अलग-अलग रंगों में, अडेनियम, लीलियम, आइरिस, हाइड्रेन्जिया, एजेलिया, हेलोकॉर्निया, डेफोडिल्स, ऑर्किड, कार्नेशन, डोम्बिया व बोगनवेलिया सहित कई देशी-विदेशी प्रजातियां है। इनके अलावा, खुशबू वाले पौधों में स्वर्णचंपा, हरा चम्पा, जूही, चमेली, मोगरा। औषधीय पौधों में दालचीनी, तेजपता, लौंग, पीपरमेंट तुलसी सहित कई प्रजातियां है। ये दुर्लभ व नई प्रजाति के पौधे देश-विदेश से मंगवाते हैं। प्रतिदिन सुबह 7 बजे से 11 बजे तक गार्डन में रहकर इनकी सार-संभाल कर रहे काबरा लोगों को नि:शुल्क बागवानी भी सिखा रहे हैं।

Rabindra Kabra flower farming

‘गोकुल – द वैली आफ फ्लॉवर्स’ की लोगों द्वारा प्रशंसा ही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हैः रवींद्र

अपने गार्डन के एक-एक पौधे की देखभाल को अपनी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी समझते हुए काबरा कहते हैं- “इन पौधों की वजह से मेरे जीवन में जो बदलाव आये और जो सफलताएं मिली हैं उनका बखान करना बेहद मुश्किल है। मेरी एकमात्र कोशिश यह रहती है कि लापरवाही की वजह से एक भी पौधा मरने न पाये, इन पौधों की देखभाल में लगे अन्य कर्मियों के साथ मैं खुद भी काम करता हूं, ताकि उनसे खुद भी सीखूं और अपने अनुभवों से उन्हे भी सिखा सकूं, ईश्वर की बेहद कृपा है कि उन्होंने मुझे इस काम के लिए चुना है”