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पिता कबाड़ के लिए घर घर घूमते हैं, बेटे ने निकाल किया NEET, बनेगा डॉक्टर: फर्श से अर्श तक

कई युवा आर्थिक कमी और दिक्कतों की वजह से अपने लक्ष्य प्राप्ति के राह को छोड़ देते है। लेकिन यदि दृढ़ संकल्प के साथ कोशिश किया जाए तो लक्ष्य प्राप्ति की राह में आनेवाली सभी बाधाओं से पार पाया जा सकता है। कई युवा इसी दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं और संघर्षों का सामना करते हुए उंचाईयों के शिखर को छूते हैं।

आज की कहानी एक ऐसे छात्र की है जिसके पिता घर-घर घुमकर कबाड़ी का समान इकट्ठा करते है पर उसने आर्थिक संघर्ष के इस भीषण दौर से जूझकर नीट की परीक्षा में 620 अंक प्राप्त किया है और आगे चलकर वह डाक्टर बनने की राह पर अग्रसर है। वह डॉक्टर बनकर अपने परिवार को समाज में सम्मान दिलाना चाहता है। आइए जानते हैं उस नवयुवक के बारे में…

अरविंद कुमार उत्तरप्रदेश के कुशीनगर के बरडी के रहनेवाले हैं। उनके पिता का नाम भिखारी कुमार है और वे कबाड़ी का काम करते हैं। भिखारी कुमार साइकिल रिक्शे पर गली-गली घुमकर कबाड़ी खरीदते हैं और उसे ही बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। भिखारी कुमार 5वीं कक्षा तक ही पढे-लिखे हैं। गांव में काम नहीं होने के और परिवार की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वे घर-परिवार से सुदूर जमशेदपुर में जाकर काम कर रहे हैं। अरविंद के माता का नाम ललिता देवी है और वे अनपढ़ हैं। वे घर का काम-काज करती है। उनका सपना था कि बेटा पढ़-लिखकर एक डॉक्टर बने। बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए उन्होंनें खुद संघर्ष किया और बेटे को मेडिकल के प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए राजस्थान में कोटा भेजा और एलेन में दाखिला करवाया। पहले प्रयास में अरविंद की रैंक बढ़िया नहीं आई। उसके बाद अरविंद ने दुबारा से मेहनत किया और सफलता हासिल की।

Ragman son

अरविंद अपने परिवार को गांव में इज्जत दिलाने और पिता की शर्म को गर्व में बदलने के लिये एलेन कोटा रहकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी की। अरविंद कुमार डॉक्टर बनकर अपने माता-पिता का गौरव बनना चाहते थे। अरविंद ने नीट की परीक्षा में 620 अंक हासिल किया है। उन्होंने ऑल इंडिया में 11603 तथा OBC कैटेगरी में 4392 रैंक प्राप्त किया है। अब वे मेडिकल कॉलेज में दाखिले की तैयारी में जुट गए हैं।

अरविंद ने अपनी सफलता का श्रेय कोटा को दिया है। उन्होंने कहा कि, यदि वे कोटा नहीं जाते तो अपने आप को इतना नहीं निखार पाते। अरविंद एक समान्य स्टूडेंट थे। उन्हें 10वीं कक्षा में 48% तथा 12वीं कक्षा में 60% अंक प्राप्त किये थे। उनकी शिक्षा गोरखपुर के सरकारी स्कूल से हुई थी। वे अपनी पढ़ाई के लिए प्रतिदिन 8 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करते थे। कोटा में शिक्षा का माहौल मिला तो अरविंद अपने आप को अधिक निखारते चले गए। अरविंद ने बताया कि, इन्स्टीट्यूट में पढ़ाई में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। सभी छात्र को समान सुविधा दिया जाता है तथा सभी को उसकी टैलेंट के साथ न्याय किया जाता है।

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अरविंद की लगन और मेहनत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समान्य छात्र होते हुए भी इस उपलब्धि को हासिल किया है। 10वीं और 12वीं में इतने कम नम्बर हासिल करने के बाद डॉक्टर बनने का सपना देखा और उसे पाने के लिये उस राह पर भी चलने लगे।

अरविंद के अनुसार वह अपने गांव के पहले डॉक्टर होंगे। उन्होंने बताया कि उनके छोटे भाई अमित कुमार शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा है। अरविंद MBBS करने के बाद आर्थोपेडिक सर्जन बनने की चाह रखते हैं। अरविंद चाहते है कि उनके परिवार को सम्मान मिले। पहले उनके पिता को भिखारी कबाड़ी कहा जाता था लेकिन अब उन्हें डॉक्टर के पिता के रूप में पहचान मिलेगी।

अरविंद ने बताया कि कोटा में आकर एलन में प्रवेश लिया। वहां अरविंद ने अपनी परिवारिक स्थिति के बारें में बताया तो एलेन ने फीस में 75% की छूट भी प्रदान कर लिया। अरविंद को कम अंक प्राप्त होने के बावजूद भी शिक्षक ने कभी भी उनको कमजोर नहीं समझा। शिक्षकों ने हर समय अरविंद को मोटिवेट किया। उन्होंने अरविंद के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी भरपूर सहायता की। कोटा करियर सिटी का उद्देश्य है कि सभी छात्र का सपना पूरा हो। यहां का वातावरण ही ऐसा है कि सामान्य छात्र भी असामान्य हो जाता है।

अरविंद ने प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए जिस तरह अपनी काबिलियत से सफलता पाई वह आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए प्ररेणा है। The Logically अरविंद कुमार को उनकी सफलता के लिए बहुत बहुत बधाई देता है।

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