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महाराष्ट्र की राहीबाई कभी स्कूल नही गईं, बनाती हैं कम पानी मे अधिक फ़सल देने वाले बीज़: वैज्ञानिक भी इनकी लोहा मान चुके हैं

हमारे देश के किसान अधिक पैदावार के लिए खेतों में कई तरह के रसायनों को डालते हैं। यह रसायन मानव शरीर के लिए बहुत घातक होता है। रसायनयुक्त खाद्य पदार्थों के सेवन करने का अर्थ है जहर का सेवन करना। इसके सेवन करने से बीमारियां भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। रसायनों के सेवन करने से हमारा शरीर तेजी से बिमारियों का शिकार हो रहा है। ऐसे में आज की कहानी एक महिला की है जिसने बीमार पोते की वजह से जैविक खेती करने का निश्चय किया। इसके साथ हीं उस महिला ने कम पानी में अधिक फसल देने वाला बीज बैंक का निर्माण भी किया है। आईए जानते हैं उस महिला के बारे में।

राही बाई सोम पोपरे महाराष्ट्र के अहमद नगर के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं। उनकी उम्र 56 वर्ष है। वह एक आदिवासी परिवार से संबंध रखती हैं। उनकी किसानी सफर की शुरुआत 20 वर्ष पूर्व उस वक्त हुई थी जब उनका पोता रसायन के प्रयोग से उपजी जहरीली सब्जियों का सेवन करने से बीमार हो गया था। तब राही बाई ने जैविक खेती करने की ठानी। उन्होंने बीजों का एक ऐसा बैंक बनाकर तैयार किया है जो किसानों के लिए बहुत मददगार साबित हुआ। राही बाई पुरानी परंपराओं की तकनीकों और परिवारिक ज्ञान के साथ ऑर्गेनिक फार्मिंग के क्षेत्र में नया मिसाल दे रही हैं।

Rahi Bai

राही बाई शिक्षा के लिए कभी विद्यालय नहीं गईं लेकिन वह अपने ज्ञान का लोहा वैज्ञानिकों को भी मनवा चुकी हैं। राही बाई को ‘सीड मदर’ ने नाम से भी जाना जाता है। राही बाई द्वारा तैयार बीज बैंक के बीज कम सिंचाई में भी किसानों को अच्छी फसल देते हैं। बीजों को सहेजने का कार्य पुस्तैनी था। राही ने इसी कार्य को आगे बढ़ाया और एक नया इतिहास रच दिया।

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राही बाई ने बताया कि, उनकी शादी 12 वर्ष के उम्र में हो गई थी। वे कभी स्कूल नहीं जा सकीं। लेकिन कृषि विज्ञान के तरफ हमेशा उनका रुझान रहा। 20 वर्ष पूर्व राही बाई ने बीजों को इकट्ठा करने का कार्य शुरु किगा था। उन्होंने बीजों को सहेजने का कार्य शुरु किया और बेटे को भी हाइब्रिड बीजों की जगह सहेजे हुए बीजों से हीं खेती करने का सुझाव दिया। ऐसे हीं धीरे-धीरे इसकी शुरुआत हुई, महिलाएं भी इस कार्य से जुड़ने लगी। बीजो का बैंक तैयार होने पर पड़ोस के गांव ने राही बाई को सम्मानित भी किया। वर्तमान में महाराष्ट्र और गुजरात में पारंपरिक बीजों की अत्यधिक मांग है। राही बाई और अन्य दूसरी महिलाएं भी परम्परागत तरीके से मिट्टी की सहायता से बीजों को सहेजने का कार्य कर रही हैं।

Source- Dainik Bhaskar

राही बाई ने 50 एकड़ से अधिक की भूमि को संरक्षित किया है। उसमें 17 से अधिक प्रकार के फसलों को उगाया जाता है। राही बाई 35 हजार किसानों के साथ मिलकर कार्य कर रही हैं। इसके साथ ही वे किसानों को फसलों के अधिक पैदावार बढ़ाने के गुण भी सिखा रही हैं। राही बाई को राष्ट्रपति ने नारी शक्ति सम्मान से नवाजा भी है। इसके साथ ही बीबीसी ने 100 शक्तिशाली महिलाओं में राही बाई को भी शामिल किया है।

राही बाई ने बताया कि, “जहरीले खानपान का सेवन करने के कारण सभी लोग बहुत तेजी से बिमारियों का शिकार हो रहे हैं। हम अपनी जरुरत के अनुसार, फसलों को उगा सकते हैं। इसी कारण जो भी मेरे पास आता है मैं उसे परम्परागत बीज से फसल उगाने के गुण सिखाती हूँ।” लोगों का कहना है कि परंपरागत बीज की सहायता से अधिक उपज नहीं ली जा सकती है। लेकिन राही बाई का कहना है कि परंपरागत बीज से कम पैदावार जहरीली फसल की अधिक पैदावार के अपेक्षा अधिक बेहतर है। इससे हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और बिमारियां भी कम होगी। राही बाई ने बताया कि उनकी बीजों को किसी भी प्रकार के फर्टिलाइजर या पेस्टीसाइड की आवश्यकता नहीं होती है।

वीडियो में देखे रही बाई की कहानी

The Logically राही बाई को बीजों के संरक्षण, ऑर्गेनिक फार्मिंग तथा लोगों को भी जैविक खेती करने की गुण सिखाने और उन्हें जागरूक करने के लिए नमन करता है।

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