भारत में हम हर साल सुनते हैं कि गर्मी में इसके कुछ हिस्सो में पानी की किल्लत हो जाती हैं। कुछ हिस्से सूखाग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे ही पानी की कमी से जूझता एक गांव था देशवंडी गांव। यह गांव दो साल पहले तक सूखाग्रस्त घोषित था।पर आज एक रिटायर्ड प्रोफेसर अशोक सोनवणे (Ashok sonwane) के प्रयासों का फल है कि आज यह गांव जिला परिषद द्वारा सूखामुक्त घोषित हो चुका है।
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रह चुके अशोक सोनवणे ( Ashok sonwane) नासिक एक प्राइवेट कॉलेज से 2017 में रिटायर्ड हुए। यह KTHM कॉलेज के एनएसएस कार्यक्रम पदाधिकारी हुआ करते थे और अपनी जल संरक्षण के प्रयास के कारण इन्हें कई जगह लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता था। इसी तरह 2018 में नासिक से 30 किलोमीटर दूर सिन्नार तालुका के पास देशवंडी गांव में इन्हें लेक्चर के लिए आमंत्रित किया गया था। जहां पर इन्हें बातचीत के दौरान पता चला कि उस इलाके में पानी की कमी है। यह हर साल सूखाग्रस्त हो जाता है और युवाओं से बातचीत के दौरान पता चला कि यहां दिसंबर के महीने से ही टैंकर बुलाने की ज़रूरत पड़ती हैं।
60km सफर कर जाते थे बारिश के पानी का संरक्षण के लिए काम करवाने
युवाओं से बातचीत के दौरान अशोक सोनवणे ने उन्हें बारिश के पानी का संरक्षण करने का सुझाव दिया। अशोक सोनवणे ने खुद 60 km का सफर तय कर वहां जाकर एक दर्जन युवाओं के साथ उस इलाके में बारिश के पानी को जमा करने का प्रयोग शुरू किया।
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ग्राम पंचायत ज़मीन देने को तैयार नही था
जल संरक्षण इस बेहतरीन काम में अशोक सोनवणे के रास्ते में परेशानी बना ग्राम पंचायत। ग्राम पंचायत से इजाजत लेने उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बहुत समझाने के बाद ग्राम पंचायत से इन्हें गांव के पास ही खाई की खुदाई करने के लिए 32 हेक्टेयर जमीन दी गई और वहां के लोगों ने सहयोग करने के इरादे से अपने औजार इन्हें दिए। इन्हें इसके लिए खुदाई भीषण गर्मी में करनी पड़ी क्योंकि बारिश के मौसम में आसपास के किसान खेती करते हैं।
प्रयास में सफलता मिलने पर ग्राम पंचायत ने और ज़मीन दी
2018 में पहली मॉनसून में 500mm बारिश हुई और इससे इनकी बारिश के पानी के संरक्षण के इस प्रयोग में इन्हें सफलता प्राप्त हुई। जिसे देखकर ग्राम पंचायत ने इन्हें और जमीन प्रदान की। इसके बाद अशोक सोनवणे ने दो पहाड़ियों के साथ 100 हेक्टेयर में नालियों की खुदाई करवाई। जिससे इलाके के भूजल में वृद्धि हुई।
अशोक सोनवणे बताते है कि इस पूरे काम में लगभग 80,000 रुपये तक का खर्च आया। जिसमें से अशोक सोनवणे ने भी कुछ पैसे दिए थे और उसमें कुछ पैसे लोगों ने दान देकर या चंदा इकट्ठा करके जमा किया था।
दो साल से टैंकर बुलाने की ज़रूरत नही पड़ी
जल संरक्षण करने के दौरान मिट्टी में कटाव ना हो इससे बचाने के लिए उन्होंने घास और कांटेदार झाड़ियां लगवाई और इस मेहनत का फल यह हुआ कि 1500 आबादी वाले इस गांव में दो साल से पर्याप्त पानी है और वहां पर टैंकर बुलाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। जल संरक्षण के इस प्रयास से ब्रिटिश काल के जो 32 बैराज थे वह फिर से पुनर्जीवित हो गए। यह वाटर कैनाल का काम करते हैं जिससे कि पानी का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
गांव हुआ सुखामुक्त घोषित
जिला प्रशासन ने इस गांव को सूखा मुक्त घोषित कर दिया है और जो ब्रिटिश काल से 32 बैराज थे वह फिर से पुनर्जीवित हो गए। यह वाटर कैनाल का काम करते हैं जिससे कि पानी का प्रवाह निरंतर बना रहता है।