Wednesday, December 13, 2023

एक ऐसा समाज सुधारक जिसने भारत को कई सामाजिक कुरीतियों से आजादी दिलाई :राजा राम मोहन राय

आधुनिक भारत के जनक ,महान समाजसेवी, देशप्रेमी राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।

शिक्षा

राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी । उसके बाद उन्हें आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए पटना भेजा गया था । बचपन से ही राजा राम मोहन राय तीक्ष्ण बुद्धी के थे अतः मात्र 15 वर्ष की अल्प आयु में ही वे बंगाली , संस्कृत , अरबी और फ़ारसी सिख चुके थे । उनका वेदों और उपनिषदों को भी अध्ययन करने में गहन रुचि थी जिसका अध्ययन उन्होंने बनारस में किया । राजा राम मोहन राय ने न सिर्फ वेदों और उपनिषदों का अध्ययन किया बल्कि उन्होंने कुरान और बाइबिल का भी अध्ययन किया और वो अरबी और फ़ारसी भाषा के भी विद्वान बने । राजा राम मोहन राय 14 वर्ष की उम्र में ही साधु बनना चाहते थे लेकिन उनकी माँ ने उन्हें रोक लिया । युवावस्था में उन्होंने काफी भ्रमण किया । उन्होंने 1809 से 1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी भी की लेकिन उसके बाद नौकरी छोड़कर खुद को देश सेवा में खुद को अर्पित कर दिया !

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के जनक

भारत में जब अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार बढ़ता जा रहा था तब जन-जन तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की । भारत के इतिहास में प्रेस और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान अतुल्य है । प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उन्हें बेहद कठिन संघर्ष करना पड़ा था । बांग्ला फ़ारसी के अलावा उन्होंने अंग्रेजी और उर्दू का पत्रिका भी प्रकाशित किया । उनके कुछ प्रमुख प्रकाशन ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन’, ‘संवाद कौमुदी’, मिरात-उल-अखबार ,(एकेश्वरवाद का उपहार) बंगदूत आदि हैं । अंग्रेजी हुकूमत के दवाब के बाद भी वे निष्पक्ष रूप से लिखते रहे ।

सती प्रथा , बाल विवाह जैसी कई सामाजिक कुरीतियों का खात्मा

राजा राम मोहन राय शुरुआत से हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों के खिलाफ थे । वे ईश्वर को मानते थे लेकिन मूर्ति पूजा के विरोधी थे । 1816 में उनके घर में ऐसी हृदयविदारक घटना हुई जिसने उनके मन मस्तिष्क को झकझोर कर रख दिया । राजा राम मोहन राय के बड़े भाई की मृत्यु होने पर उनकी भाभी को भी उनके भाई की चिता पर जलाकर सती कर दिया गया । जिसके बाद से उन्होंने इस कुप्रथा के खिलाफ घूम-घूम कर प्रचार करना शुरू कर दिया । उन्होंने इस कुप्रथा के खिलाफ लंदन जाकर भी गवाही दी थी । सालों संघर्ष के बाद 1829 में भारत के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक की मदद से भारत में इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया । भारत में बहुत पहले से ही बाल विवाह की कुप्रथा चली आ रही थी । 12 -14 वर्ष की लड़कियों का विवाह 50 वर्ष के पुरुषों से कर दिया जाता था । जिसके कारण पुरुष की मृत्यु जल्दी हो जाती थी और उस लड़की को या तो सती प्रथा की भेंट चढ़ा दिया जाता था या फिर उन्हें आजीवन विधवा का नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ता था । उन्होंने बाल विवाह को खत्म करने हेतु सार्थक प्रयास किया । इसके अलावे वे अंधविश्वास, जातिवाद ,मूर्तिपूजा , पर्दा प्रथा के भी सख्त विरोधी थे और इसे समाज से दूर करने हेतु सदा प्रयासरत रहे ।

शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव में उनका अमूल्य योगदान

राजा राम मोहन राय शिक्षित समाज , शिक्षित देश के पक्षधर थे । उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा हीं समाज में मौजूद तमाम तरह की बुराइयों को समाप्त किया जा सकता है । उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था । लड़कियों को भी शिक्षा मिले इसपर उन्होंने पूरे देश को जागरूक किया । राजा राम मोहन पश्चिमी शिक्षा के भी समर्थक थे । शिक्षा में सुधार लाने के लिए उन्होंने 1827 ई० में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की तथा उसके बाद उन्होंने एक अंग्रेज यात्री की मदद से अंग्रेजी स्कूल भी खोला । अपने पूरे जीवन काल में वो महिलाओं को उसका अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ते रहे ।

आत्मीय सभा या ब्रह्म समाज की स्थापना

1815 ई० में उन्होंने ‘आत्मीय सभा’ की स्थापना की जो बाद में चलकर 1828 ई० में ब्रह्म समाज के नाम से जाना जाने लगा !
ब्रम्ह समाज का मुख्य उद्देश्य हिन्दू धर्म में ही भिन्न- भिन्न विचारों में बटे लोगों को एकसाथ जोड़ना , समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करना तथा मानवता के धर्म को जन-जन तक पहुँचाना था ।

राजा राम मोहन राय का सर्वस्व जीवन देश सेवा व मानव कल्याण में बीता । वो अनन्त काल तक हम सभी के बीच एक अमर बिचार के रूप में रहेंगे । ऐसे महान व्यक्तित्व को उनके जन्मदिवस पर Logically उन्हें शत्-शत् नमन करता है ।