हमारे देश में आज जैविक खादों से खेती करने का प्रचलन काफी बढ़ रहा है। यहां किसान अपने नए- नए प्रयोग करके जैविक खादों से खेती कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं राजेन्द्र भट्ट जो अपनी नौकरी छोड़कर जैविक खेती करने का फैसला किया।
राजेन्द्र भट्ट महाराष्ट्र के बदलापुर के बेंदशिल गांव के रहने वाले हैं। राजेन्द्र भट्ट ने आईआईटी से डिप्लोमा किया है। डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। राजेन्द्र भट्ट जब 35 वर्ष के थे तब उन्होंने नौकरी छोड़ दी और खेती करने का फैसला किया। राजेन्द्र भट्ट के इस फैसले को सुनकर उनके दोस्तों ने उनका बहुत मजाक उड़ाया परन्तु घर वालों ने राजेन्द्र भट्ट पर विश्वास किया। उनके घर वालों ने कहा कि तुम खेती करो और इस खेती करने में जो मदद चाहिए हम करेंगे। जब राजेन्द्र भट्ट नौकरी कर रहे थे तब उनकी मुलाकात किसानों से हुई थी और इन्हे जैविक खेती के बारे में पता चला था। राजेन्द्र भट्ट बताते हैं कि उनके पूर्वज किसान थे। उनके दादाजी की सारी जमीन महाराष्ट्र के कुल-कायदा एक्ट में चली गई थी। खेती करने के लिए राजेन्द्र भट्ट के पास जमीन नहीं थी। इसलिए उन्होंने पढ़ाई और नौकरी की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया। परन्तु राजेन्द्र भट्ट के घर वाले चाहते थे कि उनके घर में भी कोई खेती करे।
राजेन्द्र भट्ट ने साल 1990 में करीब डेढ़ एकड़ जमीन खरीदी परन्तु ये जमीन काफी बंजर थी। खेत तक पहुंचने के लिए उन्हें दो नाले पार करने पड़ते थे। बारिश के मौसम में वह नाला काफी पानी से भर जाता था। जिससे उन्हें अपने खेत तक जाने में काफी दिक्कत होती थी। जब नाला पानी से भर जाता था तब वे तैरकर उस नाले को पार करते थे। राजेन्द्र भट्ट ने प्राकृतिक और जैविक खेती के बारे में काफी अध्ययन किया। उन्होंने पूरे देश भर में घूम कर किसानों से ट्रेनिंग ली और उसके बाद उन्होंने अपने जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया।
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राजेन्द्र भट्ट को पूरा विश्वास था कि अगर फसलों को अच्छे से देख-रेख की गई तो इस जमीन पर भी फसल उग सकते हैं। राजेन्द्र भट्ट ने अपनी कड़ी मेहनत, परिश्रम और लगन से खेती की। आज राजेन्द्र भट्ट के पास करीब 5 एकड़ जमीन है। जिसमें 187 तरह के पेड़-पौधे लगे हुए हैं। इसमें फल, सब्जी, अनाज और औषधीय पेड़-पौधे भी लगे हैं। राजेन्द्र भट्ट बताते हैं कि उनके घर में खाने के लिए जो चीजें हैं उसमें से 80% उनके फार्म में ही उगती हैं। वे बताते हैं कि मेरा लक्ष्य सिर्फ खेती करना नहीं है बल्कि एक इको-सिस्टम बैलेंस करना है। इसके लिए राजेन्द्र भट्ट ने बहुत अलग-अलग तरीके भी अपनाए हैं।
राजेन्द्र भट्ट बताते हैं कि उन्होंने खेती करने के लिए जंगल की खेती का मॉडल अपनाया। उन्होंने अपने फार्म निसर्ग मित्र फार्म में अलग-अलग तरह के पेड़ लगाए। राजेन्द्र भट्ट कहते हैं कि मैंने बाहरी लाइनों में बड़े पेड़ लगाए, फिर क्लाइंबर, फिर छोटे पेड़, फिर उनके नीचे झाड़ियां और फिर घास लगाए। उन्होंने क्यूबिक मैथड से खेती की जैसे कि उन्होंने आम के नीचे पांच फसल लगाए। फिर नारियल के नीचे 15 फसल लगाए। नारियल के नीचे मसालों के पौधे हैं।
राजेन्द्र भट्ट बताते हैं कि मेरे फार्म में साल भर में एक बार जुताई की जाती है। वो भी सिर्फ धान की फसल लगाने के लिए बाकी फसलें बिना जुताई के ही लगाए जाते हैं। वो कहते हैं कि फसलों के बचे अवशेष को मिट्टी में हीं छोड़ देते हैं जिससे यह प्राकृतिक खादों का काम करे।
राजेन्द्र भट्ट कहते हैं कि हमारे फार्म में वर्षा जल संचय होता है। मेरे फार्म में कुल चार बोरिंग है। जिसमें दो बोरिंग ग्राउंडवॉटर रिचार्ज के लिए है और दो बोरिंग ड्रिप इरिगेशन करते हैं जिससे पानी की बर्बादी ना हो सके। राजेन्द्र भट्ट पानी को लेकर काफी चौंकन्ने रहते हैं। वो ऐसे फसल लगाते हैं जिसकी पूर्ति एक फसल के पानी से हीं हो जाए।
राजेन्द्र भट्ट ने पिछले 6 सालों से खेती करने वाले किसानों का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्होंने अभी तक 117 ट्रेनिंग सेशन किए हैं जिसके हर सेशन में 10 लोग रहते हैं। राजेन्द्र भट्ट ने अपने फार्म में एग्रो-टूरिज्म भी शुरू किया है। इस एग्रो-टूरिज्म में कृषि छात्र, आयुर्वेद के छात्र और वाइल्डलाईफ फोटोग्राफर आते हैं।
राजेन्द्र भट्ट ने जिस तरह अपनी सूझ-बूझ से कृषि करके बेहतरीन सफलता पाई है और लोगों को भी उसका गुर सिखा रहे हैं वह बेहद हीं प्रेरणादायक और उन्नत कार्य है। The Logically राजेंद्र भट्ट जी की भूरि-भूरि प्रशंसा करता है।
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