अपनी जिंदगी में कुछ कर गुजरने की इच्छा सभी के पास होती है परंतु यह इच्छा तभी पूर्ण होती है जब आप अपने सपने को साकार करने के लिए मेहनत करते और लगन लगाते हैं। जब आप अपने सपने को हकीकत में बदलना चाहते हैं तो उसके लिए जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर आप अपने सपने की उड़ान भर सकते हैं और सफलता हासिल कर सकते हैं।
आज हम एक ऐसे शख्स की बात करेंगे जिन्होंने अपने मेहनत के दम पर सफलता हासिल किए। आपको बता दें कि वह एक किसान की बेटी हैं जिनकी आज देश-विदेश में चर्चा हो रही है। आईए हम आज उनके बारे में बताएं जिन्होंने अपनी सफलता की उड़ान भरी और अपनी कामयाबी की उस ऊंचाई तक पहुंच गए जहां तक उन्होंने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा था।
• राजेश्री राजेश देवतालू
राजेश्री राजेश देवतालू (Rajeshree Rajesh Devtalu) महाराष्ट्र (Maharashtra) के नांदुरा (Nandura) के एक गांव की रहने वाली हैं। वह मात्र 24 साल की हैं। उनका पालन-पोषण अपने गांव से ही हुआ। उनके पिता खेती के साथ-साथ एक किराना दुकान चलाते थे और मां गृहिणी थी। राजेश्री तीन भाई-बहन थे जिसमें राजेश्री बड़ी बहन थी और दो इनसे छोटे भाई थे। राजेश्री बताती हैं कि हम 10वीं तक की पढ़ाई अपने गांव से ही की। उन्हें बचपन से साइंटिस्ट बनने का सपना था। जिसके लिए उन्होंने अपने भविष्य के बारे में कुछ बड़ा करने का सोंच रखा था।
वे कहती हैं कि मुझे अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा करना था जिसे लोगों को मदद मिले। जब मैं दसवीं क्लास में पढ़ती थी तब एपीजे अब्दुल कलाम (A P J Abdul Kalam) और अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के बारे में काफी कुछ जान चुकी थी और मुझे साइंस और मैथ में काफी ज्यादा रुचि थी। मेरे सपने को साकार करने के लिए साइंस सब्जेक्ट का होना अत्यंत आवश्यक था जिसके लिए मैं साइंस पढ़ने में काफी रुचि रखती थी और मैं जी तोड़ मेहनत करके पढ़ाई करती थी।
जब मैंने दसवीं की परीक्षा पास कर ली तब आगे की पढ़ाई करने के लिए अपने गांव से निकलकर अकोला चली गई और वहां से हमने ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई खत्म की। इसके बाद हमने एनआईटी नागपुर (NIT, Nagpur) से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की परंतु इंजीनियरिंग में हमारा सब्जेक्ट इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक ब्रांच मिला। इस सब्जेक्ट में मुझे रुचि नहीं थी और मुझे पढ़ाई करने में मन भी नहीं लग रहा था। मैं क्लास करने तो प्रतिदिन जाती परंतु मैं वहां जाकर के बेमन में बैठी रहती और कुछ सोचती रहती थी। क्योंकि मुझे इंटरेस्ट कुछ और बनने में था। मैं अपनी जिंदगी में कुछ और ही करना चाहती थी जो उस ब्रांच में रह करके कभी नहीं होता। फिर मुझे एक आईबीलैब्स के बारे में पता चला। मैं फिर वहां जाकर के वर्कशॉप करने लगी।
• रोबोट बनाने में बढ़ी रुचि
राजेश्री बताती हैं कि जब मैं आईबी लैब्स में गई तो वहां जाकर की मुझे काफी अच्छा महसूस हुआ क्योंकि मुझे बचपन से जो सपना था वह लग रहा था कि अब पूरा हो जाएगा। जब मैं इस लैब में आई तो मुझे यहां काम करने में काफी मजा आ रहा था क्योंकि इस लैब में रोबोट बनाए जा रहे थे। अब मैं यहां मन लगाकर के रोबोट के बारे में काफी बारीकी से रिसर्च करने लगी। मैंने खुद को यहां इस प्रकार ढाल लिया कि अब मुझे इसी जगह से अपनी कैरियर की शुरुआत करनी है और आगे चलकर कुछ बड़ा करना है। राजेश्री कहती है कि इस लैब में हमारे दोनों सब्जेक्ट जिसे पढ़ने में मुझे काफी रुचि थी वह दोनों साइंस और मैथ सब्जेक्ट वहां मौजूद थे।
वह आगे बताती हैं कि यहां एक अच्छा सा प्रोजेक्ट पर काम करने को मिल गया था। फिर आगे जब मैं सेकेंड ईयर में थी तब मुझे एक रोबोटिक्स (Robotics) पर पेपर प्रेजेंट करने का शानदार मौका मिल गया जो ऑस्ट्रेलिया (Australia) में था। इस पर मैंने लोगों को जमीन पर चलने वाला उड़ने वाला और दीवार पर चिपकने वाला रोबोट के बारे में जानकारी दी। क्योंकि हमारे देश भारत में कई मजदूर है जो ऊंची-ऊंची बिल्डिंग पर चढ़ कर के पेंट करते हैं, दीवारों पर चढ़ते है जिससे उन लोगों की जान का काफी खतरा बना रहता है। इसीलिए मैंने मजदूरों के जान को बचाने के लिए इस रोबोट के बारे में लोगों को काफी बारीकी से बताया ताकि मजदूर अपना काम आसानी और निडरता के साथ करें।
• अमेरिका में इंटर्नशिप करने का मिला मौका
राजेश्री बताती हैं कि मैं अपने काम को काफी बारीकी और लगन के साथ कर रही थी। जब मैं कॉलेज के थर्ड ईयर में थी तब मुझे यहां एक और शानदार मौका मिला। जिसमें मुझे अपनी जूनियर को स्कोर रोबोट (Score Robot) के बारे में बताना था। यह मौका देखकर मुझे अंदर से काफी खुशी हुई और मैं खुद को ज्यादा उत्साहित महसूस करने लगी। मेरा हौसला और भी बढ़ने लगा जिसके बाद मुझे आगे इसी साल अमेरिका में इंटर्नशिप करने का भी मौका मिल गया।
अमेरिका (America) में मैंने एटलास रोबोट (Atlas Robot) पर काम किया जो काफी शानदार और बेहतरीन था जिसे हमारा केरियर काफी चमकदार होने वाला था। यह एटलास रोबोट इंसानों की तरह काम करता है जो वर्तमान में इसे काफी एडवांस रोबोट कहा गया है। मुझे इस एटलास रोबोट के प्रोग्रामिंग पर काम करना था इस एटलास रोबोट में काफी दिलचस्पी से काम किया इसने हमने रोबोट के हाथ कैसे उठाने हैं, उसे कैसे चलाना है, उसका दिमाग कैसे काम करता है आदि रोबोट के इन सभी प्रोग्राम पर काम किया। इसके बाद मेरा ग्रेजुएशन साल 2020 में खत्म हुआ परंतु उसी समय कोविड की समस्या आ गई जिसके चलते हैं मुझे घर पर ही बैठना पड़ा कोविड के आने की वजह से काफी समस्या झेलनी पड़ी।
• नौकरी मिलने के बाद बनी को-फाउंडर
राजेश्री बताती हैं कि कोविड की वजह से मुझे घर में बैठना पड़ रहा था जो काफी मुश्किल वक्त था। मेरा सपना था कि हम रोबोटिक्स कि दुनिया में कुछ अलग करें जिसके लिए हमने अमेरिका जाकर के मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करूंगी और मैं रोबोटिक्स में और भी कुछ अलग करूंगी। परंतु कोविड ने मेरे सारे सपने पर पानी फेर दिया लेकिन मैंने फिर भी हर नहीं मानी और मैं अपना कदम आगे बढ़ाती चली गई। इसके बाद मुझे घर बैठे ही एक नौकरी मिल गई। हमें एक वेक्रोस (VECROS) की कंपनी में नौकरी मिल गई। इस कंपनी ने मेरे काम को देखने के बाद मुझे इस कंपनी का को-फाउंडर बना दिया। अभी फिलहाल मैं इस कंपनी के साथ मिलकर एक रोबोट और ड्रोन बनाने का काम कर रही हूं। जब वेक्रोस कंपनी ने मेरे काम को देखा तो काफी पसंद आया जिसकी वजह से उसने मुझे अपने कंपनी का को-फाउंडर बना दिया।
• भेदभाव की खिलाफ खोला मोर्चा
राजेश्री बताती हैं कि हमारी सफलता की कहानी हमारे बताने जितना आसान नहीं है। इस सफलता के पीछे हमने काफी कठिनाईयों को झेला है और यहां तक कि भेदभाव जैसी समस्या का भी सामना की हूं। वे बताती हैं कि जब वह बारहवीं क्लास में थी तब मुझे इन सभी चीजो का मतलब नहीं पता था क्योंकि उस समय मैं लड़कियों के स्कूल में पढ़ा करती थी। परंतु जब कॉलेज में गई तो तब मुझे पता चला कि लड़का और लड़कियों में काफी भेदभाव किया जाता है जिसकी वजह से लड़कियां टेक्निकल फील्ड में रिसर्च के मामले में काफी पीछे रह जाती हैं और आगे चलकर वह कुछ नहीं कर पाती।
जब मैं लैब में गई तो वहां देखा कि लड़कियों के लैब खुलने का टाइम कुछ अलग था और लड़कों के लिए कुछ अलग होता था। जिसमें लड़कियों को सिर्फ दिन में ही सिखाया जाता था। जिसकी वजह से हम लोग रिसर्च के मामले में ज्यादा कुछ नहीं सिखाती थी। हमें ज्यादा टाइम नहीं मिल पाता था और लड़कों को लैब में जाने के लिए या वहां सीखने के लिए किसी भी वक्त आने-जाने की छूट थी। चाहे वह दिन हो या रात उसका कोई टाइम टेबल नहीं था। इन सभी चीज को देखते हुए मैंने लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव को काफी बारीकी से देखा जिसके लिए हमने एक मोर्चा भी निकाला और खुद के लिए और लड़कियों के लिए हमें रात में 10 बजे समय को बढ़ाकर के 12 बजे करवाया इस टाइम को बढ़ाने में अब लड़कियां काफी अच्छे से समय दे पाती थीं और चीजों को काफी बारीकी से जानती थी और रिसर्च करती थी।
• अन्य लड़कियों के लिए सपना
राजेश्री कहती हैं कि आज हमारे बचपन का सपना साकार हो गया परंतु हम अपने इस सपने को साकार करने के बाद जब खुद के सफर को पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे काफी गर्व महसूस होता है। मैं जब खुद को देखती हूं तो ऐसा लगता है कि एक गांव की लड़की अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों में घूम ली है, जो कभी मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। परंतु आज हमें एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल हो गई है। इसके साथ-साथ अब हमारा यही सपना है कि देश के हर घर में एक रोबोट रहे और देश के सभी लड़कियां रोबोट बनाएं। इससे यहां के लोगों को काम में आने वाले परेशानियों से छुटकारा मिल सके और काम काफी आसान हो जाए।
अक्सर यह देखा जाता है कि जब किसान अपनी खेतों में काम करते हैं तो उनके फसल में कीड़े-मकोड़े लग जाते हैं जिसकी वजह से उनकी फसल खराब हो जाती है और उन्हें काफी नुकसान सहना पड़ता है। इन कीड़े-मकोड़े से बचने के लिए एक ऐसा ड्रोन बनाया जाए कि वह किसानों के फसलों में लगी कीड़े-मकोड़े के बारे में जानकारी दे। हमारे देश में सुरक्षा में भी ड्रोन अपना योगदान दें। राजेश्री कहती हैं कि मैं ऐसे ड्रोन को बनाने में अपना काफी योगदान दूंगी जिसे लोगों को सहायता और मदद हो सके।
• प्रेरणा
राजेश्री उन सभी लड़कियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं जो अपनी कठिन परिश्रम और लगन से कामयाबी के उस ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं जहां पहुंचने के लिए कभी सपने देखा करती थी। अगर लड़कियां अपने लक्ष्य को पाना चाहती हैं तो उन्हें अपने सपने को साकार करने के लिए जी तोड़ मेहनत और लगन करना चाहिए जिसे वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।