आजकल अधिकतर लोगों की रूची खेती की तरफ बढ़ते जा रही है। लेकिन खेती में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि हम खेती करें तो कैसे करें?? किस तरह के बीज या उर्वरक का उपयोग करें जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो?? अगर खेती के गुण आपको सीखना है तो आप हरियाणा के 60 वर्षीय किसान से सीख सकते हैं। यह सिर्फ खेती ही नहीं करते बल्कि जौ और बाजरे के बिस्किट बनाते हैं और पशुपालन से निकली घी से भी लाभ कमातें हैं। यह अपने उत्पादों को सोशल मीडिया के माध्यम से बेंचतें हैं।
60 वर्षीय राजपाल सिंह
राजपाल सिंह श्योराण (Rajpal Singh Shyoran) हरियाणा (Haryana) के हिसार (Hisar) जिले के एक छोटे से गांव से नाता रखते हैं। राजपाल खेतों में सरसों उगाते हैं और फिर उसका तेल बनाकर बेंचते हैं। उन्होंने सिर्फ खेती ही नहीं किया बल्कि यह पशुपालन भी करते हैं। वैसे तो यह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है सिर्फ 9वीं पास ही है। लेकिन अपने तरकीब के माध्यम से यह पढ़े लिखे लोगों के अपेक्षा कार्य कर रहें हैं। यह अपने सरसों के तेल को 2 सौ रुपये किलो के हिसाब से और धी को 2 हजार रुपये तक बेचते हैं। इनका नियम है कि जब तक कोई आर्डर नहीं देगा तब तक यह किसी को अपना उत्पाद नहीं देंगे। यह खुद के नाम से उत्पादों की ब्रांडिंग कर पैसे कमाते हैं। इन्होंने शुरुआती दौर में अन्य किसानों की तरह मंडियों में जाकर अपने उत्पादों को बेचा है।
5 वर्षों से कर रहें हैं जैविक खेती
आज से नहीं बल्कि राजपाल लगभग 5 वर्षों से जैविक खेती में लगे हैं। शुरुआती दौर में जब यह अपने सरसो को लेकर मंडी में जाया करते थे तो उन्हें बेचना बहुत मुश्किल हो जाता था। जैसे-तैसे कर यह सरसो को बेचकर घर आ जाते थे और फिर सोचते कि अब आगे क्या करूंगा??? उन्होंने देखा कि इस कार्य से इन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा तब इन्होंने सरसों को मंडी में ना ले जा कर कोल्हू के माध्यम से उसका तेल निकलवाया। अब इन्हें सरसों की अपेक्षा तेल से अधिक फायदा हुआ है। राजपाल ने यह जानकारी दी कि यह बिना मिलावट के घी तेल के साथ बाजरे और जौ के बिस्किट का भी उत्पादन करते हैं। इनके उत्पाद सिर्फ नेशनल स्तर पर ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल स्तर पर भी बिकते हैं। इनके तेल सिंगापुर (Singapore) और अमेरिका (America) के मॉल में भी जाते हैं।
हंडियो में पके घी को बेचतें हैं
यह सारे कार्य अपने हिसाब से करते हैं। यह पशुओं के दूध को ना बेचकर उनके मक्खन को हंडियो में पकाकर बेचते हैं। सबसे खास बात तो यह है कि इन्हें ये सब बेचने में ज्यादा दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता। यह सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से अपने उत्पादों को बेचते हैं। इनके जो रिश्तेदार और मित्र हैं, वे भी इनका उत्पाद खरीदते हैं। उन्होंने बताया कि इनके यहां ज्यादातर लोग कपास की खेती करते हैं जो हमारी मिट्टी के लिए बेहद हानिकारक होता है।
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इस उम्र लोग करतें हैं आराम, यह लगातार नया कार्य सीखने में लगें हैं
कुछ वर्ष इन्होंने अपनी जैविक खेती को जांच कराया तब इन्हें फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ( Food Safety And Standards Authority Of India) के जरिए लाइसेंस प्राप्त हुआ। अधिकतर लोगों को देखा जाए तो वह इस उम्र में अपने घर पर बैठकर आराम करते हैं। लेकिन राज्यपाल हर दिन कुछ ना कुछ नया सीखने की कोशिश में लगे रहते हैं। इनके यहां एग्री स्टार्टअप कोर्स शुरू हुआ है जिसमें 10 किसानों को शामिल किया गया है। इन 10 किसानों में एक राजपाल भी है।
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यह किसानों के बारे में बताते हैं कि अगर हम शुद्ध उत्पाद का निर्माण करें तो हमें उत्पादों को बेचने में दिक्कत नहीं होगी और साथ ही हमें हमारे अनुसार उचित मूल्य भी मिलेगा। अगर आप राजपाल सिंह श्योराण से उनकी खेती के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं या फिर आप यह खेती करना चाहते हैं तो आप इनके नंबर पर 9992023006 पर कॉल करके बात कर सकते हैं।