इस आधुनिक युग मे हर चीजों में बदलाव हो रहा है। चाहे वह तकनीकी चीजें हों या अन्य कुछ भी। पहले किसान हल के माध्यम से खेतों की जुताई करते थे। लेकिन आज खेती में उपयोग के लिए कई आधुनिक चीजों का निर्माण हो चुका है जिससे किसान को आराम भी है और फायदा भी। इतना सब कुछ होने के बाद भी हमारे किसान कुछ ना कुछ नई चीजे ढूंढ़ते हैं जो उनके द्वारा निर्मित हो। उन्हीं में से एक किसान पंजाब के हैं जो पराली से होने वाली परेशानियों को मिटाने के लिए कार्यरत हैं और इससे लाभ भी कमा रहे है।
किसान रमनदीप और गुरबिंदर
रमनदीप सिंह और गुरबिंदर सिंह (Ramandip Singh And Gurbindar Singh) जो कि पंजाब (Punjab) के निवासी हैं। इन्होंने पराली की समस्याओं से निजात पाने के लिए जो कार्य किया है वह सभी के लिए लाभदायक और प्ररेणा है। हम इस बात को जानते हैं कि किस तरह पराली के जलाने से दिल्ली में सांस लेना मुश्किल हो गया था। ऐसे बहुत से किसान हैं जो गेंहू की सीधी बिजाई के लिए पराली को खेतों में मिलाते हैं। लेकिन यह किसान अपनी खेती में उस तरीके का उपयोग कर आलू उगा रहे हैं।
2 वर्षों से कर रहें हैं कार्य
पराली ना जले इसके लिए रमनदीप और गुरबिंदर आलू की खेती में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। उनको इस तकनीक से बेहद मुनाफा भी मिल रहा है। वे अपने बारे में नहीं बल्कि अन्य किसानों के बारे में भी सोचते हैं इसीलिए इन्होंने चिप्स निर्मित एक निजी कंपनी के साथ मिलकर आलू की खेती का शुभारंभ किया है। किसानों को अपना आलू उचित मूल्य और सही वक्त पर बेच पाएं इसके लिए उन्होंने चिप्स कम्पनी का साथ लिया है। कृषि विज्ञान केंद्र खेड़ी के माध्यम से भी किसानों को गेहूं की खेती और आलू की खेती की सीधी बिजाई के तरीके बताए जा रहे हैं।
हैप्पीसीडर चलाने का लिया है प्रशिक्षण
रमनदीप और गुरबिंदर ने यह जानकारी दी कि उन्होंने खेतों में बुआई के लिए हैप्पीसीडर चलाने का प्रशिक्षण लिया है। किसान पहले पराली को भूमि में टुकड़े-टुकड़े करके गेहूं की बुआई करते हैं जब अच्छी पैदावार हो जाती थी तो वह उसे हीं आलू की खेती के लिए अपनाया करते हैं । पराली को मिट्टी में निम्न की सहायता से मिलाया जाता है। जो है रोटावेटर, मल्चर, पलटावे हेल। यह प्रक्रिया कर उसमें आलू के बीजों को डाल दिया जाता है।
यह भी पढ़े :- भूतपूर्व सैनिक ने शुरू किया खेती, इनके खेत मे एक फ़ीट तक लम्बी मिर्च उग रही है, सब्जी बेच 80 हज़ार रुपये महीने में कमा रहे हैं
70-80 क्विंटल होती है उपज
जब पराली को आलू में मिश्रित किया जाता है तब वह फसल का कार्य करती है। इसके लिए मिट्टी में कठोरता मौजूद चाहिए जिससे आलू के लिए पराली सही साबित हो। कम्पनियों के माध्यम से बीज ट्यूबर मिलता है ताकि आलू की बिजाई अच्छी हो। इस तकनीक के माध्यम से आलू का उत्पादन 1 एकड़ में 70-80 क्विंटल होता है। किसान बताते हैं कि 3 माह में आलू तैयार हो जाता है।
जिस पराली को बेकार समझकर उसे जला दिया जाता है और परिणामस्वरूप प्रदूषण फैलता है उसे रमनदीप और गुरबिंदर द्वारा उपयोग कर अच्छी खेती कर मुनाफा कमाने का तरीका बेहद हीं प्रेरणादायक है। The Logically रमनदीप और गुरबिंदर जी को उनके इस कार्य व उस कार्य से अन्य किसानों में जागरूकता फैलाने के लिए नमन करता है।